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23 अगस्त 2008

मक्‍का में तेजी के लिए रिकार्ड निर्यात जिम्‍मेदार या वायदा व्‍यापार?

नई दिल्‍ली, 21 अगस्‍त। मक्‍का के भावों में पिछले तीन सालों में करीब 250 से 300 रूपये प्रति क्विंटल की भारी तेजी आ चुकी है, जबकि चालू वर्ष में मक्‍का का रिर्काड 28 लाख टन का निर्यात हो चुका है। ऐसे में ये चर्चा करना जरूरी है कि क्‍या मक्‍का के भावों में तेजी का कारण वायदा व्‍यापार है या रिकार्ड निर्यात। अगर बात की जाये इस दौरान, आई अन्‍य जिंसों में तेजी की तो तस्‍वीर काफी हद तक साफ हो जाती है? मक्‍का के अलावा अन्‍य मोटे अनाजों बाजरा, ज्‍वार व जौ के भावों में भी इस दौरान करीब 300 से 400 रूपये प्रति क्विंटल की भारी तेजी आई है। बाजरे व ज्‍वार का वायदा कारोबार नहीं हो रहा है तो भी इनके भावों में तेजी आई है जबकि जौ का भी चालू वर्ष में रिकार्ड निर्यात हुआ है।
मक्‍का का वायदा कारोबार जनवरी 2005 में शुरू हुआ था जबकि उस समय दिल्‍ली बाजार में इसके भाव 620-630 रूपये प्रति क्विंटल थे जबकि चालू वर्ष में जुलाई माह में इसके भाव बढ़कर 930-935 रूपये प्रति क्विंटल हो गये थे। मक्‍का के भावों में आई तेजी के प्रमुख कारणों में रिकार्ड निर्यात के साथ न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य में बढ़ोत्‍तरी व घरेलू मांग में इजाफा होना भी है। ज्ञात हो कि 2004-05 में मक्‍का का न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (एमएसपी) 525 रूपये प्रति क्विंटल था जबकि वर्तमान में इसका न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य 620 रूपये प्रति क्विंटल है तथा खरीफ की आने वाली मक्‍का का एमएसपी कृषि लागत एवं मूल्‍य आयोग ने 840 रूपये प्रति क्विंटल घोषित करने की सिफारिश की है।
मक्‍का के भावों में आई तेजी के कारण पिछले दिनों इसके वायदा कारोबार पर रोक लगाने की मांग जोर-शोर से उठी थी, तो केन्‍द्र सरकार ने पोल्‍ट्री उद्योग को सप्‍लाई सुगम करने हेतु 3 जुलाई को मक्‍का के निर्यात पर 15 अक्‍टूबर तक रोक लगा दी। महंगाई की दर में हफते-दर-हफते इजाफा हो रहा है तथा महंगाई पर लगाम लगाने हेतु सरकार के पास विकल्‍प बहुत ही सीमित है। आगामी माह में खरीफ फसलों की आवकें शुरू हो जायेगी। नई फसल की आवकों तक अगर मौसम फसलों के अनुकूल रहा, तो महंगाई पर कुछ हद तक काबू पाने की उम्‍मीद है।
ज्ञात हो कि महंगाई पर लगाम लगाने की कवायद में सरकार के निर्देश से मार्च 2007 में फारवर्ड मार्किट कमीशन (एफएमसी) ने गेहूं, चावल, उड़द व तुअर के वायदा कारोबार पर रोक लगाई थी जबकि चालू वर्ष के मई माह में एफएमसी द्वारा आलू, सोया तेल व रबर तथा चने के वायदे पर चार महीने के लिए रोक लगा दी गई। सरकारी सूत्रों के अनुसार सितम्‍बर माह में आलू, सोया तेल, रबर व चने के वायदा पर लगी रोक हट सकती है लेकिन जानकारों की राय में रोक हटने के आसार कम हैं। जब से उक्‍त जिंसों को वायदा बाजार से हटाया गया है तब से भावों को देखा जाये तो पता चलेगा कि इस दौरान इनके भावों में गिरावट के बजाय तेजी ही आई है।
वायदा कारोबार और हाजिर कीमतों में संबंध के अध्‍ययन हेतु पिछले वर्ष गठित अभीजित सेन कमेटी ने 29 अप्रैल को केन्‍द्र सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि इस बात के कोई स्‍पष्‍ट प्रमाण नहीं मिलें है जिसके आधार पर इस बात की पुष्टि की जा सके कि कृषि जिंसों का वायदा कारोबार हाजिर बाजार की कीमतों में वृद्वि के लिए उत्‍तरदायी है। (R S Rana)

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