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25 सितंबर 2008

रफ्ता-रफ्ता बदल रही श्रद्धानंद बाजार की तस्वीर

दिल्ली का दिल, यानी पुरानी दिल्ली। और पुरानी दिल्ली में बसा खाद्य तेल और घी का बाजार- श्रद्धानंद मार्केट। कंधे से कंधा टकराना, जुगाली करते बैल, हटा बाबू जी-हटा जा भाई साहब की आवाजें और तेलों की महक। बाजार में यह नजारा आम होता है। बंटवार के बाद पाकिस्तान से जो लोग आए, उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने नई दिल्ली और पुरानी दिल्ली रलवे स्टेशन के बीच व्यापार करने के लिए जगह दी थी। तब लोग यहां पटरी लगा कर सामान बेचते थे। बाजार की स्थापना 1951 में हुई। 62 साल के सरदार अजीत सिंह यहां तेल के एक प्रमुख व्यापारी हैं। 1968 से वह इस धंधे में हैं। 1947 में उनके पिता स्वर्गीय सरदार अतर सिंह ने यहां पटरी पर सामान बेचना शुरू किया था। बाजार बना तो उन्हें सात फुट चौड़ी व 14 फुट लम्बी एक दुकान किराए पर मिली। तब किराया महज दो रुपये प्रति माह था। समय के साथ किराया बढ़ा और बढ़ते-बढ़ते 24 रुपये रुपये प्रति माह हो गया।पहले यहां माल ऊंटों पर लाया जाता था। बाद में उनकी जगह बैलगाड़ी व तांगे ने ले ली। अब ट्रकों, टैंकरों और रेलगाड़ियों से सामान लाया जाता है। हालांकि मार्किट में भीड़-भाड़ होने के कारण अंदर गलियों में अब भी हाथ ठेले ही चलते हैं। मेन रोड पर भी बैलगाड़ी से सामान उतारते पल्लेदार मिलेंगे। पिछले 40 सालों में सरदार अजीत सिंह ने यहां काफी कुछ बदलते देखा है, अगर कुछ नहीं बदला है तो वो हैं पल्लेदार। ये पल्लेदार मिनटों में गाड़ी लोड करते हैं और मिनटों में ही खाली कर देते हैं। सरदार अजीत सिंह ने बताया कि आज भी यहां दुकानों का किराया 16 से 24 रुपये है। एक फर्क जरूर आया है। पहले दुकानों का मालिकाना हक बदलने में एमसीडी को 1000 रुपये देने पड़ते थे, अब इसके लिए 25 हजार रुपये देने पड़ते हैं। श्रद्धानंद रोड और इसके आसपास तेल-तिलहन और घी की करीब 100 दुकानें हैं। आपको यहां स्कूटर, बाबा, कलश, इंजन, पी-मार्का, ध्रुव जैसे खाद्य तेल और पनघट, झूला, मुरली, अंबुजा जैसे रिफाइंड तेल के सभी ब्रांड थोक भाव में मिल जाएंगे।यह बाजार नई दिल्ली रलवे स्टेशन से महज एक किलोमीटर और पुरानी दिल्ली से डेढ़ किलोमीटर के फासले पर है। अंतर्राष्ट्रीय बस अड्डे से इसकी दूरी करीब तीन किलोमीटर है। राजधानी के दूसरे इलाकों से यहां आने का सबसे बढ़िया साधन है मेट्रो रेल। चावड़ी बाजार, अजमेरी गेट, चांदनी चौक व तीस हजारी के मेट्रो स्टेशनों से इसकी दूरी चंद मिनटों की है। समय के साथ बदला तो बहुत कुछ, नहीं बदलीं तो मूलभूत सुविधाएं। गंदगी का आलम ये है कि आपको जगह-जगह नाक पर रूमाल रखना पड़ेगा। जहां-तहां कूड़े का ढेर। पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं। एमसीडी व दिल्ली सरकार को यहां के व्यापारियों से करोड़ों की कमाई तो हो रही है, लेकिन सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं है। सरआम अपराध की खबरें भी अक्सर सुनने को मिलती रहती हैं। लाहोरी गेट थाना बाजार के बीच में है, इसके बावजूद यहां नशेड़ियों व उठाइगीरों का बोलबाला रहता है। नबी करीम तांगा स्टैंड के पीछे हजारों झुग्गी-झोपड़ी हैं, जहां सर आम नशे का कारोबार होता है।पार्किग की कोई जगह न होने के कारण आपको जहां-तहां आड़ी-तिरछी गाड़ियां मिल जाएंगी। जब यहां व्यापार शुरू हुआ तो दिल्ली के आसपास के लोग ही तेल व घी खरीदने यहां आते थे। आज यहां रोजाना लाखों लोग दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश से कारोबार के सिलसिले में आते हैं। वर्तमान में यहां से लगभग पूर भारत में व्यापार हो रहा है। एक तरह से कहा जाये तो दिल्ली बाजार में खुलने वाले घी व तेल के भावों को देखकर ही अन्य राज्यों के भाव तय होते हैं। एक और व्यापारी हेंमत गुप्ता ने बताया कि दूसरे शहरों को व्यापारी पहले चिटठी के माध्यम से माल मंगवाते थे। उसके बाद लैंड लाइन फोन का जमाना आया और अब मोबाइल और इंटरनेट के जरिए बुकिंग होती है। 1960 में दिल्ली वैजिटेबल ऑयल ट्रेडर्स एसोसिएशन (डिवोटा) का गठन किया गया। तब 30-40 व्यापारी ही इसके सदस्य थे। अब यह संख्या बढ़कर करीब 400 हो गई है। भारत में हर साल तेल-तिलहन पर दो सम्मेलन रबी व खरीफ सीजन में किये जाते हैं। इसमें डिवोटा का अहम योगदान होता है। (Business Bhaskar.......R S Rana)

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