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25 अक्तूबर 2008

समर्थन मूल्य को लांघ सकता है कपास का बाजार भाव : जे. एन. सिंह

सवाल-जवाब : जे. एन. सिंह, संयुक्त सचिव, कपड़ा मंत्रालय
चंदन किशोर कांत / October 23, 2008
मौजूदा सीजन में कपास उत्पादन में थोड़ी बढ़ोतरी का अनुमान है।
कपास के उत्पादन, इसकी उत्पादकता और अगले 6 महीने में इसकी कीमत को लेकर हमारे संवाददाता चंदन किशोर कांत ने कपड़ा मंत्रालय में संयुक्त सचिव जगदीप नारायण सिंह से बातचीत की। प्रस्तुत है उसके प्रमुख अंश :मौजूदा सीजन में कितना कपास पैदा होने का अनुमान है?कॉटन एडवाइजरी बोर्ड के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, वर्तमान सीजन में कपास की करीब 3.22 करोड़ गांठ पैदा होने के अनुमान हैं। रकबे में कमी के बावजूद उत्पादकता बढ़ने से ऐसा होने जा रहा है।अगले 6 महीनों में कपास की कीमतों को लेकर मंत्रालय के क्या अनुमान हैं?कपास की कीमतें बताने वाले कॉटलुक इंडेक्स के अनुसार बीते दो महीनों में इसकी कीमतों में करीब 20 फीसदी की कमी हुई है। हालांकि, कपास की वैश्विक मांग इसके उत्पादन से करीब 20 लाख टन ज्यादा रहने की उम्मीद है। देश में इसकी कीमत फिलहाल नरम चल रही है लेकिन उम्मीद है कि आने वाले दिन में इसकी कीमत घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से थोड़ी ज्यादा रहेगी। इस साल दुनिया में कपास उत्पादन में कमी अनिश्चितताओं से भरी है। कुछ रिपोर्टों में बताया गया कि अपर्याप्त ऊर्जा के चलते मिलें लगातार बंद हो रही हैं। जिसका नतीजा है कि कपास की खपत कम रह रही है। ऐसे में आपको क्या लगता है, इस बार कपास की खपत प्रवृत्ति कैसी रहेगी?यह कुछ हद तक सही है। पिछले साल के अगस्त की तुलना में 2008 के अगस्त महीने में सूती धागे का उत्पादन करीब 5 फीसदी कम रहा है। इस साल तो अभी सीजन की शुरुआत ही हुई है। ऐसे में यह कहना बड़ा मुश्किल है कि क्या बिजली की किल्लत पूरे साल बनी रहेगी? यदि ऐसा हुआ तो तय है कि कपास की घरेलू खपत थोड़ी होगी। आपको क्या लगता है कि इस साल भी कपास की निर्यात प्रवृत्ति 07-08 की तरह जारी रहेगी?लगभग। पिछले साल की ही तरह इस साल भी कपास का निर्यात लगभग समान गति से जारी रहेगी, ऐसी उम्मीद है। इस बार घरेलू मांग भी बढ़ोतरी की कोई उम्मीद नहीं है लिहाजा सरप्लस कपास का निर्यात करना उचित रहेगा। भले ही इसकी घरेलू कीमत एमएसपी से ज्यादा हो या कम। कपास की वैश्विक मांग परिदृश्य विशेषकर चीन में, का आकलन करना बड़ा मुश्किल हो रहा है। इसकी मांग तो अमेरिका और यूरोप में उपभोक्ताओं के व्यवहार पर निर्भर करेगी। (BS Hindi)

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