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20 नवंबर 2008

मंदी ने लूटी स्टेनलेस स्टील बर्तन उद्योग की चमक

नई दिल्ली November 19, 2008
सदर बाजार स्थित डिप्टीगंज स्टेनलेस स्टील बर्तन बाजार इन दिनों खाली नजर आ रहा है। शादी-ब्याह का मौसम है, लेकिन दुकानों से ग्राहक नदारद हैं।
मंदी के कारण बर्तन से जुड़े कच्चे माल की कीमत 35-60 फीसदी तक गिर चुकी है तो कारोबार 60 फीसदी तक। कमोबेश यही नजारा वजीरपुर स्थित बर्तन निर्माण औद्योगिक इकाइयों का है। यहां अब सिर्फ नाम के लिए ही काम हो रहा है। बर्तन निर्माताओं के पास कोई ऑर्डर नहीं है। उनके निर्यात में 75 फीसदी की कमी आ चुकी है। रुपये के मुकाबले डॉलर की मजबूती के कारण चीन से होने वाला आयात भी लगभग बंद है। गत मंगलवार को स्टील के आयात पर 5 फीसदी का शुल्क लगाने से भी कारोबारियों को कोई फायदा नजर नहीं आ रहा है।डिप्टीगंज स्टेनलेस स्टील बर्तन एसोसिएशन के चेयरमैन राकेश जैन कहते हैं, 'पुराने माल काफी मात्रा में पड़े हैं। अभी और मंदी की संभावना है। इसलिए कोई माल उठाने को तैयार नहीं है।' डिप्टीगंज में स्टील बर्तन की लगभग 250 दुकानें हैं और सामान्य स्थिति में इस बाजार में रोजाना लगभग 25 करोड़ रुपये का काराबोर होता है।दुकानदार कहते हैं कि 180 रुपये प्रति किलोग्राम की दर खरीदे गए बर्तन को उन्हें 150 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचना पड़ रहा है। फिर भी ग्राहक उसे खरीदने को राजी नहीं है। क्योंकि तेजी के दौरान स्क्रैप की कीमत 70 रुपये प्रति किलोग्राम थी तो फ्लैट स्टील की कीमत 80 रुपये प्रति किलोग्राम। अब स्क्रैप 30 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर है तो फ्लैट स्टील 53 रुपये प्रति किलोग्राम। ऐसे में ग्राहक को 150 रुपये प्रति किलोग्राम वाले बर्तन महंगे लग रहे हैं। दुकानदारों के मुताबिक बाजार में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि अभी स्टील में और गिरावट होगी। इस कारण भी उठाव नहीं हो पा रहा है। दूसरी तरफ वजीरपुर बर्तन निर्माण औद्योगिक इकाइयों में भी इन दिनों नाममात्र का ही उत्पादन हो रहा है। यहां 150 से अधिक बर्तन बनाने वाली औद्योगिक इकाइयां हैं और सामान्य स्थिति में इस इलाके में प्रतिमाह 10,000 टन से अधिक बर्तन का निर्माण होता है।लेकिन पिछले एक माह के दौरान यह आंकड़ा 4000 टन भी नहीं रह गया है। वजीरपुर से पूरे देश भर में बर्तन की आपूर्ति के साथ खाड़ी के देश, यूरोप एवं अफ्रीकी देशों में बर्तन का निर्यात किया जाता है।वजीरपुर स्माल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष सीताराम बंसल कहते हैं, 'आयातक अपना ऑर्डर लगातार रद्द कर रहे हैं तो घरेलू बर्तन कारोबारी बकाया नहीं दे पा रहे हैं। ऐसे में काम करने को कुछ भी नहीं बचा है।' औद्योगिक इकाइयां इन दिनों 110 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बर्तन बेच रहे हैं जबकि एक माह पहले तक यह कीमत 155-160 रुपये प्रति किलोग्राम थी। दिल्ली स्टेनलेस स्टील कटलरी संघ के पदाधिकारी विजय मलिक कहते हैं, 'स्थिति ऐसी हो गयी है कि फैक्ट्री चलाने के बजाय बंद करने में ज्यादा फायदा नजर आ रहा है। अब तो फैक्ट्री 6-8 घंटे ही चल रही है।'बाजार में इन दिनों चीन से बर्तनों का आयात भी रुक गया है। चीन में भारत के मुकाबले स्टील 10 फीसदी तक सस्ती है लेकिन एक डॉलर का मूल्य लगभग 50 रुपये के स्तर पर पहुंचने के कारण आयातकों को कोई फायदा नजर नहीं आ रहा है। जैन कहते हैं कि आयात शुल्क लगाने से निकल पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। अगर सरकार उनके उत्पाद शुल्क में कमी करती है तो स्टेनलेस स्टील के बर्तन कारोबारियों को कुछ राहत मिल सकती है। फिलहाल बर्तन निर्माताओं को 16.5 फीसदी की दर से उत्पाद शुल्क देना पड़ता है। (BS Hindi)

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