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24 जनवरी 2009

जीएम बीजों की मंजूरी प्रक्रिया गलत

प्रसिद्ध मॉलिक्यूलर बायोलाजिस्ट डा. पुष्प भार्गव ने कहा है कि जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी (जीईएसी) द्वारा आनुवांशिक रूप से परिवर्तित (जीएम) बीजों के उपयोग की अनुमति देने की प्रकिया में भारी खामियां है। जिससे हमारी खेती, जमीन की उर्वरता और मानव स्वास्थ्य पर ऐसा नुकसान हो सकता है जिसकी भरपाई करना मुश्किल होगा। डा. भार्गव उच्चतम न्यायालय द्वारा जीईएसी के कायरें की जांच के लिए गठित दो सदस्यीय पैंनल के सदस्य हंै। भार्गव ने एक संवाददाता सम्मेलन में बताया कि जीईएसी द्वारा जीएम बीजों को अनुमति देने की प्रक्रिया में अनेक खामियां है। किसी भी जीएम सीड को अनुमति देने से पहले कम से कम 30 महत्वपूर्ण परीक्षण अनिवार्य हैं। इसके विपरीत जीईएसी केवल तीन परीक्षण ही करती है। कई महत्वपूर्ण प्रयोग नहीं किये जाते। इसके अलावा कंपनियों द्वारा दिए सैंपल की ही जांच की जाती है। जबकि जीईएसी को खुद सैंपल एकत्रित करने चाहिए । किसी भी विषाणु के विकास की सही जानकारी के लिए जरूरी है कि परीक्षण की अवधि लंबी हो। जबकि कमेटी बहुत ही कम अवधि में प्रयोग खत्म कर देती है। भार्गव ने आरोप लगाया कि देश में बहुराष्ट्रीय कंपनियों, राजनीतिज्ञों और नौकरशाही मिलकर देश की जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे है। उन्होंने प्रधानमंत्री से मांग की है कि जीएम बीजों का देश में उपयोग तुरंत रोक देना चाहिए। उन्होंने जीएम बीजों की जांच के लिए एक राष्ट्रीय प्रयोगशाला की स्थापना की भी मांग की है।इसी मौैके पर भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष कृष्ण वीर चौधरी ने कहा कि बहुराष्ट्रीय कंपनिया देश के कृषि क्षेत्र पर नियंत्रण करने का प्रयास कर रही है। जीएम बीजों का प्रसार इसी का हिस्सा है। अभी बहुराष्ट्रीय कंपनियां देश के 40 फीसदी बीज मार्केट पर काबिज हैं। जीएम बीजों गे जरिये वे पूरे बाजार और हमारी फसलों पर हावी हो जाना चाहती हैं। अमेरिका में इंस्टीट्यूट फॉर रिसपांसिबल टेक्नलॉजी के निदेशक प्रोफेसर जेफ्री स्मिथ ने बताया कि जीईएसी की ही तरह अमेरिका में फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) द्वारा जीएम बीजों को अनुमति दी जाती है। (Business Bhaskar)

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