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30 जनवरी 2009

विदेश में मांग घटी, काजू का धंधा मंदा

पणजी : ब्राजील और वियतनाम से पहले ही काफी प्रतिस्पर्धा झेल रहे देश के काजू किसानों की समस्या को वैश्विक मंदी ने और अधिक बढ़ा दिया है। बाजार के अनुमान के अनुसार, देश भर में करीब तीन लाख काजू किसान हैं। भारत टूटे काजू का सबसे बड़ा निर्यातक है, मांग कम होने के कारण उत्पादकों को प्रॉफिट मार्जिन कम करना पड़ रहा है। इसके बावजूद कम दरों पर काजू आयात करना बेहतर विकल्प साबित हो रहा है। काजू एक्सपोर्ट प्रमोशनल काउंसिल ऑफ इंडिया (सीपीईसीआई) के आंकड़ों के मुताबिक, 2006-07 के 11.5 लाख टन के मुकाबले 2007-08 में काजू निर्यात घटकर 11 लाख टन रह गया है, लेकिन आने वाले साल में इसमें और गिरावट की आशंका है। एक बड़ी काजू निर्यात फर्म के मैनेजिंग पार्टनर सुरेश जयंत का कहना है, 'काजू को लग्जरी आइटम की तरह माना जाता है। इस कारण अगर खराब स्थिति आती है तो सबसे ज्यादा असर काजू के कारोबार पर पड़ेगा।' भारत मुख्यतौर पर अमेरिका और यूरोप को काजू का निर्यात करता है, लेकिन ये दोनों ही मंदी से त्रस्त हैं। इस कारण काजू निर्यातक एशिया के विकसित देशों जैसे जापान, इजरायल और सऊदी अरब पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। काजू के निर्यात से भारत को अच्छी खासी विदेशी मुद्रा मिलती है और नकदी फसलों के निर्यात में इसका स्थान दूसरा है। निर्यात के अलावा भारत सबसे ज्यादा उपभोग करने वाले देशों में भी शामिल है। इससे कारोबारियों को बाजार से बने रहने की उम्मीद है। हालांकि, देश में 2007-08 में काजू उत्पादन में छह फीसदी की बढ़ोतरी हुई। 2006-07 के 6.2 लाख टन के मुकाबले इस बार उत्पादन बढ़कर 6.6 लाख टन हो गया, लेकिन ट्रेडरों का कहना है कि इस दौरान निर्यात में भी अच्छी खासी बढ़ोतरी हुई। 2006-07 में देश ने 5.9 लाख टन काजू का निर्यात किया था, लेकिन 2007-08 में निर्यात बढ़कर 6.5 लाख टन हो गया। एक काजू टेडर का कहना है, 'घरेलू बाजार में काजू खरीदने के मुकाबले इसका आयात सस्ता है।' आयातित कच्चे काजू नट की कीमत 45 से 48 रुपए प्रति किलो पड़ती है। इसके मुकाबले भारतीय किस्म 50-55 रुपए प्रति किलो पड़ता है। जयंत का कहना है, 'बात जब काजू की होती है तो लोगों को गुणवत्ता के बारे में पता नहीं होता है। कम कीमत ही बिक्री को बढ़ाती है।' गोवा काजू ट्रेडर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट ए एस कामत का कहना है कि उच्च गुणवत्ता वाली भारतीय काजू के अभाव में कीमतों में अंतर है। उन्होंने कहा, 'हमारे पास बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए उत्पादकता बढ़ाने की तकनीक है, लेकिन दुर्भाग्य से इसका इस्तेमाल विदेशों में होता है, अपने देश में नहीं।' (ET Hindi)

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