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24 फ़रवरी 2009

उत्तर प्रदेश में चीनी मिलें संकट में

लखनऊ February 23, 2009
फसल क्षेत्र में भारी कमी के चलते देश भर में चीनी का कटोरा कहे जाने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में इस बार संकट खड़ा हो गया है। चीनी मिलों का पेराई सत्र बीते सात सालों में पहली बार निर्धारित 90 दिन की मियाद पूरी करने से पहले ही दम तोड़ता नजर आ रहा है।
जहां बीते साल अप्रैल और कुछ मिलों में तो मई तक पेराई हुयी थी वहीं इस साल फरवरी के दूसरे सप्ताह में ही 132 में से 45 मिले बंद हो गयी हैं। चीनी का कुल उत्पादन पिछले साल के मुकाबले आधा रह गया है। उत्पादन के आंकड़े बता रहे हैं कि इस साल उत्तर प्रदेश मे चीनी दशक के सबसे ऊंचे भाव पर मिलेगी।
पहले से ही कम चीनी उत्पादन की आशंका के देखते हुए राज्य सरकार ने उत्पादन का लक्ष्य संशोधित कर दिया था। बीते साल जहां प्रदेश की मिलों ने 73.9 लाख टन चीनी का उत्पादन किया था वहीं इस साल लक्ष्य को ही घटाकर 62 लाख टन कर दिया गया है।
गन्ना सप्लाई की पतली हालत देखते हुए सरकार ने जनवरी के महीने में पहले लक्ष्य को घटाकर 50 लाख टन और फिर बाद में 45 लाख टन कर दिया। राज्य सरकार से मिले आंकड़ों के मुताबिक फरवरी की 10 तारीख तक 31.13 लाख टन चीनी का उत्पादन किया गया है।
गन्ना विकास विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सारी कवायद के बाद भी इस साल चीनी का उत्पादन 42 लाख टन तक हो जाए तो गनीमत होगी। गन्ना सप्लाई को देखते हुए यह तय है कि लगभग सारी चीनी मिलें मार्च के दूसरे सप्ताह आते-आते पेराई बंद कर देंगी।
चीनी बेल्ट कहे जाने वाले जिलों जैसे पीलीभीत, बरेली, शाहजहांपुर, माुफरनगर और सहारनपुर जैसे जिलों की मिलों को गन्ना मिल पा रहा है पर पूर्वांचल में हालत खासी खराब है। उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों में बलरामपुर चीनी मिल्स लिमिटेड समूह की मिलों को ही गन्ने की सप्लाई ठीक से मिल पा रही है।
बाकी मिलों और खास कर सरकारी की हालत खस्ता है। गौरतलब है कि बीते साल जहां 28.50 लाख हेक्टेयर में गन्ने की बुआई की गयी थी वहीं इस साल यह घटकर 21.40 लाख हेक्टेयर ही रह गया है। गन्ने की बुआई के हिसाब से यह क्षेत्रफल बीते पांच सालों में सबसे कम है। थोक और खुदरा बाजारों में भी चीनी की कीमतें आसमान छू रही हैं।
गन्ने का रकबा
वर्ष रकबा (लाख हेक्टेयर में) 2005-06 23.092006-07 26.622007-08 28.502008-09 21.40 (BS HIndi)

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