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24 फ़रवरी 2009

..कर्नाटक और उत्तराखंड भी बेहाल

बेंगलुरु/देहरादून February 23, 2009
कर्नाटक की चीनी मिलों को इस समय गन्ने की कमी से गंभीर संकट का सामना करना पड़ रहा है। वर्तमान पेराई सत्र अक्टूबर 2008 से सितंबर 2009 में वहां पर गन्ने की 40-60 प्रतिशत कमी हो गई है।
इसका परिणाम यह हुआ है कि चीनी मिलों को नियत अवधि के 2-3 महीने पहले ही पेराई का काम बंद करना पड़ रहा है। साउथ इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के मुताबिक इस सत्र के दौरान 15 चीनी मिलों ने 165 लाख टन गन्ने की पेराई की है, जो पिछले साल की तुलना में 40 प्रतिशत कम है।
गन्ने के उत्पादन में कमी की प्रमुख वजह यह है कि किसान अन्य फसलों की ओर आकर्षित हुए हैं। किसानों को पिछले गन्ना सत्र में कम कीमतें मिली थीं। इस साल उन्होंने चीनी की बजाय खांडसारी उत्पादन को ज्यादा तरजीह दी।
इस साल राज्य में चीनी का उत्पादन पिछले साल की तुलना में 41 प्रतिशत गिरकर 17 लाख टन रहने का अनुमान है। शुगर रिकवरी का प्रतिशत भी कम होकर 10.3 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो पिछले साल 10.8 प्रतिशत थी। इस साल के दौरान उत्पादकता में भी कमी आई है।
उत्तराखंड में पांच चीनी मिलों के पेराई सीजन के बीच में ही बंद होने से इस बात की आशंका बढ़ गई है कि चालू वर्ष में चीनी उत्पादन 50 प्रतिशत तक घट सकता है। गन्ने के रकबे के कम होने के बाद के आकलन से पता चलता है कि गन्ने के उत्पादन में भी 20 से 30 फीसदी की कमी आई है।
चीनी का उत्पादन घटने की प्रमुख वजह भी यही है। किसानों का भुगतान बकाया होने से भी किसानों की दिलचस्पी गन्ने की खेती में कम हुई है। गन्ना आयुक्त गिरिजा शंकर जोशी ने कहा कि राज्य के कुल 10 चीनी मिलों में पांच पहले ही बंद हो चुकी हैं तथा दो और गन्ने की कमी के कारण बंद होने की कगार पर हैं।
पिछले साल राज्य में 40.45 लाख टन गन्ने का उत्पादन हुआ था, इस साल इसमें 50 प्रतिशत की कमी आने के आसार हैं। जोशी ने बताया कि संशोधित अनुमानों के अनुसार इस वर्ष चीनी का उत्पादन 21 लाख क्विंटल तक पहुंच सकता है।
इस सीजन में पेराई की अवधि भी औसत 90 दिनों की रह गई है। पिछले साल, पेराई 120 दिनों तक चली थी। लेकिन, गन्ने की खेती में किसानों की कम होती दिलचस्पी काफी महत्वपूर्ण है। उधम सिंह नगर, हरिद्वार और नैनिताल जिले के किसान पहले ही अन्य फसलों का रुख कर चुके हैं। साल 2008-09 में 630 लाख टन उत्पादन होने का अनुमान है। (BS Hindi)

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