कुल पेज दृश्य

26 अगस्त 2009

मानसून की बेरुखी से धान की बुवाई का रकबा 68 लाख घटा

देश के अधिकांश हिस्से में सूखे जैसे हालात बनने से धान की रोपाई में भारी कमी आई है। मानसून की बेरुखी से चालू खरीफ सीजन (2009-10) में धान की रोपाई पिछले साल की तुलना में 68।61 लाख हैक्टेयर में कम हुई है। रोपाई के बाद भी पर्याप्त वर्षा न होने से चावल उत्पादन में 200 लाख टन तक की कमी आने की आशंका है। सरकार ने भी अब मान लिया है कि चावल का उत्पादन 100 लाख टन कम रह सकता है। उत्पादन में कमी का असर घरेलू बाजार के साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में चावल की कीमतों पर पड़ना तय है। कृषि मंत्रालय द्वारा मंगलवार को जारी ताजा बुवाई आंकड़ों के मुताबिक अभी तक देश में 272.83 लाख हैक्टेयर में धान की रोपाई हो पाई है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 341.44 लाख हैक्टेयर से कम है। रोपाई में सबसे ज्यादा कमी उत्तर प्रदेश में 21.82 हैक्टेयर, बिहार में 15.04, झारखंड में 10.18 और आंध्रप्रदेश में 4.54 लाख हैक्टेयर में हुई है। धान के अलावा तिलहन और गन्ने की बुवाई भी क्रमश: 14.16 और 1.29 लाख हैक्टेयर घटी है। तिलहनों की कुल बुवाई पिछले साल के 168.26 लाख टन के मुकाबले घटकर 154.10 लाख हैक्टेयर में ही हुई है। इसी तरह से गन्ने की बुवाई 43.79 लाख हैक्टेयर के मुकाबले घटकर 42.50 लाख हैक्टेयर में ही हुई है। गन्ने की पैदावार में कमी के कारण ही इस समय चीनी की कीमतों में भारी तेजी का रुख बना हुआ है। दलहन की बुवाई में तो हल्की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन बुवाई के बाद पर्याप्त वर्षा नहीं होने के कारण दालों के प्रति हैक्टेयर उत्पादन में भी गिरावट आ सकती है। दलहन की बुवाई चालू सीजन में 88.69 लाख हैक्टेयर में बुवाई हो चुकी है जोकि पिछले वर्ष के 82.58 लाख हैक्टेयर के मुकाबले ज्यादा है। मोटे अनाजों ज्वार, बाजरा और मक्का की बुवाई पिछले साल के 182.51 लाख हैक्टेयर के मुकाबले 177.31 लाख हैक्टेयर में हुई है। कॉटन की बुवाई पिछले साल की समान अवधि के 84.53 लाख हैक्टेयर से बढ़कर 94.93 लाख हैक्टेयर में हुई है। मानसून की बेरुखी से उत्पादन बुरी तरह प्रभावित होने की आशंका है।सूखा सहने वाले धान का परीक्षणकेंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (सीआरआरआई) का कहना है कि उसके वैज्ञानिकों द्वारा विकसित सहभागी धान इस साल के सूखे में परीक्षण के दौरान खरा उतरेगा। इस किस्म का धान सूखे को ज्यादा समय तक सहने में सक्षम होगा। सामान्य रूप से धान का पौधा पांच दिन में सूखने लगता है जबकि सहभागी धान बारह दिन तक बिना पानी के बच सकता है।सहभागी धान की किस्म का फिलहाल पूर्वी झारखंड में बड़े क्षेत्र में परीक्षण चल रहा है। केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (सीआरआरआई) के निदेशक डॉ. टी. के. आध्या ने बिजनेस भास्कर को बताया कि सूखे को सहने की क्षमता वाली किस्मों का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है। डॉ. आध्या ने बताया कि संस्थान द्वारा तैयार की गई सहभागी धान की किस्म का फिलहाल पूर्वी झारखंड में बड़े क्षेत्र में परीक्षण चल रहा है। अभी तक के परीक्षण में इसके नतीजे आशातीत रहे हैं। सहभागी धान लगातार 12 दिनों तक सूखे का प्रकोप झेलने में सक्षम है। अन्य किस्मों का धान पांच दिन भी बिना पानी के बच नहीं पाता है। सूखे के बावजूद सहभागी धान की पैदावार में कोई फर्क नहीं आता है। इस किस्म की पैदावार लगभग 3.5 से 4 टन प्रति हैक्टेयर रहती है। अगले खरीफ मौसम में किसानों को इस किस्म को उगाने के लिए जारी किया जा सकता है। (बिज़नस भास्कर)

कोई टिप्पणी नहीं: