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21 सितंबर 2009

कम होने लगेगी चीनी की मिठास!

September 20, 2009
भारत में चीनी के उत्पादन में गिरावट और ब्राजील (दुनियाभर में चीनी के सबसे बड़े उत्पादक देशों में से एक) के गिरते हुए उत्पादन व दुनियाभर में उपभोग में धीरे-धीरे इजाफे की वजह से चीनी की कीमतों में तेजी की दोहरी मार दुनिया और भारत पर पड़ रही है।
इस स्थिति के कारण हो सकता है कि विभिन्न वैश्विक उपभोक्ता अपने माल में कमी को बनाए रखें या अपनी उपभोग की जरूरतों को पूरा करने के लिए चीनी आयात करें। नतीजतन चीनी के वैश्विक स्टॉक में गिरावट होगी। इसलिए उपभोग के लिए स्टॉक के वित्त वर्ष 2007-08 में 44.74 प्रतिशत (या 5.4 महीने) से घटकर वित्त वर्ष 2009-10 में 31.79 प्रतिशत (3.8 महीने) हो जाने की आशंका है।
यह अनुमान वैश्विक चीनी संगठन (आईएसओ) ने लगाया है, जो 20 साल में सबसे कम स्तर को दिखाता है। भारत को देखते हुए विशेषज्ञों का अनुमान है कि समान अवधि में चीनी का स्टॉक 4.3 माह से घटकर 1.14 माह का रह जाएगा।
किसी भी जिंस की संभावनाएं चार मुख्य मापकों पर निर्भर होता है : मांग, आपूर्ति, स्टॉक का स्तर और कीमत। चीनी के मामले में ये मापक कीमतों में इजाफे की ओर संकेत देते हैं। चीनी उत्पादन क्षेत्र की घरेलू कंपनियों के लिए शेयर मूल्यांकन के बढ़ने की उम्मीद है।
उत्पादन की घटती चमक
वर्ल्ड शुगर ट्रेंड् चार्ट बताता है कि चीनी के वैश्विक उत्पादन के वित्त वर्ष 2008-09 और 2009-10 में क्रमश: 1.04 करोड़ टन और 8.4 करोड़ टन उपभोग के लिहाज से कम होने की आशंका है। चीनी का सीजन अक्टूबर से सितंबर होता है।
इसके परिणामस्वरूप जो असर स्टॉक पर होगा, उसमें सितंबर 2010 के अंत तक दो साल में 1.3 करोड़ टन की गिरावट देखी जा रही है। ब्राजील के उत्पादन के अल नीनो की वजह से अत्यधिक बारिश के कारण कम रहने की उम्मीद है।
जहां इसके चलते ब्राजील में उपज और फसलों पर असर होगा, वहीं भारत के चीनी उत्पादन में वित्त वर्ष 2008-09 में 1.5 करोड़ टन गिरावट होने और वित्त वर्ष 2009-10 में मानसून में कमी के कारण 1.55 करोड़ टन पर समान स्थिति बने रहने की उम्मीद है। इसलिए स्टॉक का स्तर उपभोग के लगभग एक महीना कम होते हुए देखा जा रहा है।
इसकी वजह से देश को क्रमश: 25 लाख टन और 80 से 90 लाख टन कच्ची चीनी आयात करनी होगी। इस आयात के चलते वैश्विक चीनी कारोबार पर बोझ पड़ेगा, जिसका कुल सालाना कारोबार 4.5 करोड़ से 5 करोड़ टन तक है।
कीमतों में उछाल
बाजार पहले ही इस बात को भांप चुका है, जिसकी वजह से स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर दानों पर ही चीनी की कीमतों में इजाफा देखने को मिल रहा है। जहां घरेलू कीमतें सितंबर 2007 में 13.5 रुपये प्रति किलोग्राम के अपने निचले स्तर से 130 प्रतिशत चढ़ चुकी हैं और अंतरराष्ट्रीय कीमतें पिछले तीन दशकों के अपने सबसे ऊंचे स्तर के करीब हैं।
आगे के लिए अंतरराष्ट्रीय चीनी संगठन (आईएसओ) के वरिष्ठ अर्थशास्त्री सेर्गी गुदोशनिकोव का कहना है, 'विभिन्न घाटे के चरण उत्पादन की तुलना में वैश्विक उपभोग में अहम इजाफे और स्टॉक में कमी की वजह से शुरू हुए हैं और कारोबार संतुलन में तंगी के आगे भी कम से कम 12 महीने के लिए बने रहने की उम्मीद है।
हालांकि इस सीजन के लिए घाटे के आंकड़ों का अनुमान पिछले फसल वर्ष से कम है, फिर भी आपूर्ति में तंगी के बढ़ने की उम्मीद है, क्योंकि 2006-07 और 2007-08 के सरप्लस सीजनों में इकट्ठा किया गया चीनी का स्टॉक तो पहले घाटे के सीजन में इस्तेमाल हो चुका है। स्टॉक के स्तर में आगे भी गिरावट जारी रहने की उम्मीद है, जो समर्थन वैश्विक बाजार भाव को आगे बढ़ा सकती है।'
वैश्विक चीनी कीमतों में गिरावट के जोखिम जहां ब्राजील के वास्तविक चीनी उत्पादन के 3.2 करोड़ से 3.3 करोड़ टन से अधिक उत्पादन की वजह से है, वहीं, घरेलू बढ़त के जोखिमों में कीमतों पर सीमा लगाने के सरकारी नियम-कायदों, अधिक कोटा रखने और गन्ने के दामों में इजाफा शामिल है। हालांकि विशेषज्ञ को अभी किसी जबरदस्त उपाय की उम्मीद नहीं है।
इनका आगमन अभी हाल में ही हुआ है। एक जोखिम और है, वह है कि बांस की उपलब्धता भी खराब मानसून, कम रकबे (अच्छे दामों की वजह से दूसरी फसलों की तरफ चले जाना) और बांस के दूसरे इस्तेमाल की वजह से प्रभावित होगी।
निष्कर्ष
हालांकि स्थिति आगे भी विविध आयामों और कीमतों के ज्यादा बने रहने के पक्ष में होगी, वहीं इसमें जोखिम के साथ-साथ कीमतों का बोझ भी होगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि बांस आधारित चीनी पर अधिक निर्भरता वाली कंपनियां (जैसे बजाज हिंदुस्तान और बलरामपुर चीनी) चीनी कीमतों और बांस की उपलब्धता को लेकर अधिक उतार-चढ़ाव देखेंगी, वहीं श्री रेणुका शुगर सरीखी कंपनियां, जिनका रिफाइनरी आधारित कारोबार मॉडल है, तुलनात्मक दृष्टि से बेहतर हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर चीनी की कीमतों में मौजूदा उछाल का चलन आगे भी नाममात्र पूंजीगत व्यय के साथ बना रहता है तो लंबे समय में बड़ी कंपनियों के खातों में (दो साल में) कर्ज का अनुपात कम हो जाएगा और उनकी बैलेंस शीट और मजबूत हो जाएगी।
अभी के लिए, सकारात्मक पहलुओं से भरे हुए मूल्यांकनों के साथ शेयरों में अहम इजाफे के लिए बेहद कम जगह है। इसलिए आगे उछाल चीनी की कीमतों की चाल पर प्रमुख रूप से निर्भर करता है। बड़े शेयरों में विशेषज्ञ श्री रेणुका शुगर और बलरामपुर चीनी को तरजीह दे रहे हैं, जिन पर 15 से 25 प्रतिशत रिटर्न की उम्मीद है। इसके अलावा वे धामपुर शुगर और ईआईडी पेरी को तरजीह दे रहे हैं। (बीस हिन्दी)

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