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26 सितंबर 2009

घटते-बढ़ते धातुओं के दाम

September 25, 2009
अगर कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो वर्ष 2008 की शुरुआत से धातु और खनिज की कीमतें लगातार उछाल के साथ रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गईं।
लेकिन यह बेहतरीन दौर लंबे समय तक कायम नहीं रह सका और उसके बाद मांग और कीमतों में अचानक गिरावट आनी शुरू हो गई।
भारतीय इस्पात निगम (सेल) के अध्यक्ष सुशील रूंगटा इस बात की ओर इशारा करते हैं कि इस्पात और और इसके निर्माण में प्रयुक्त होने वाले खनिजों के उत्पादन और कीमतों में तत्काल आए बदलाव आर्थिक वातावरण में हुए उलटफेर के प्रति त्वरित प्रतिक्रिया के कारण हैं।
वर्ष 2008 की पहली छमाही में इस्पात, लोहा और कोकिंग कोल की कीमतों में काफी तेजी आई, लेकिन उसके बाद बाजार में अचानक कोहराम सा मच गया और लगभग सभी क्षेत्रों से मांग में खासी गिरावट का दौर शुरू हो गया।
वर्ष 2009 पहली दो तिमाही विश्व के इस्पात निर्माताओं के लिए अत्यंत दुखद रही और पूरे विश्व में इसके उत्पादन में 20 फीसदी से ज्यादा की गिरावट दर्ज की गई। हालांकि, इसके बाद भी इस्पात उद्योग की समस्याएं खासकर विकसित देशों में खत्म होती नजर नहीं आ रही है।
विश्व इस्पात संगठन (डब्ल्यूएसओ) का अनुमान है कि मौजूदा साल में इस्पात के उपयोग में 13 फीसदी तक की कमी आ सकती है। पिछले साल भी मांग में 1.7 फीसदी की गिरावट आई थी और यह घटकर 1,196.2 मिलियन टन रह गया।
हालांकि, जुलाई में विश्व स्तर पर इस्पात उद्योग में पहली बार सुधार होते दिखा और उत्पादन 1000 लाख टन के ऊपर पहुंच गया और रूंगटा को लगा कि हालात अब सुधरने वाले हैं। लेकिन रूंगटा अपनी इस राय पर लंबे समय तक कायम नहीं रह सके और हाल के दिनों में इस्पात के उत्पादन और कीमतों में अनिश्चितता के मद्देनजर रूंगटा अभी भी इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे हैं कि वैश्विक स्तर पर इस्पात की कीमतों में सुधार होना शुरू हो गया है।
जुलाई में इस्पात के उत्पादन में हुई बढ़ोतरी में चीन का बहुत बडा योगदान था और कुल उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी 500 लाख टन थी। विश्व के अन्य देशों के मुकाबले चीन और भारत में इस्पात क्षेत्र में गिरावट कम रही है। बकौल रूंगटा, यह इस बात को प्रदर्शित क रता है कि चीन और भारत विश्व के विकसित देशों के मुकाबले उत्पादन और खपत दोनों दृष्टि से अलग हैं।
लेकिन सवाल पैदा होता है कि भारत और चीन में बुनियादी ढांचे के विकास, निर्माण गतिविधियों और विनिर्माण उद्योग पर अधिक से अधिक जोर दिया जा रहा है लेकिन इसके बाद भी ये दोनों देश अपने को अन्य देशों के रुझान से कैसे अलग रख सके!
पिछले वित्त वर्ष कुछ अपवाद रहा और भारत में इस्पात के होने वाले उपयोग में 1.2 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई। भारत में बुनियादी ढांचों का तेजी से विकास हो रहा है और जनवरी 2009 तक की छह महीने की अवधि में भारत में करीब 37 बुनियादी परियोजनाओं में 70,000 करोड रु पये तक का निवेश हुआ है और इसी तरह की कुछ और परियोजनाएं सरकार से मंजूरी मिलने का इंतजार कर रही हैं।
ऑटोमोबाइल उद्योग में आ रही तेजी से रूंगटा को लगता है कि इस साल इस्पात के उपयोग में 7 फीसदी तक की तेजी आ सकती है। इसमें कोई शक नहीं है कि डब्ल्यूएसए की तुलना में रूंगटा भारत में इस्पात की मांग में आने वाली तेजी को लेकर ज्यादा आशावादी हैं। उल्लेखनीय है कि वित्त वर्ष 2008-09 से पहले ऐसे भी समय रहे हैं जब इस्पात की खपत में सालाना आधार पर 11 से 13 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है।
आर्थिक विकास के इस पडाव पर चीन के बारे में ऐसा ही कहा जा सकता है और यहां इस्पात की खपत बढ़ोतरी सकल घरेलू उत्पाद की दर से कहीं ज्यादा होगी। इस समय भारत में प्रति व्यक्ति इस्पात की खतप 44.3 किलोग्राम है, जबकि विश्व के औसत 150 किलोग्राम की तुलना में काफी क म है। चीन में प्रति व्यक्ति इस्पात की खपत 400 किलोग्राम से भी ज्यादा है।
यह बात निश्चित तौर पर कही जा सकती है कि इस अंतर को पाटने के लिए भारत को काफी लंबी राह तय करनी पड़ेगी। इसी वजह से केंद्रीय इस्पात मंत्री वीरभद्र सिंह नए लौह-अयस्क खानों को खोले जाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं।
इस्पात मंत्री ने यह पहल ऐसे समय में की है जब इस्पात की मांग और इसकी कीमतों में बढ़ोतरी होनी शुरू हो गई है। आने वाले कुछ सप्ताहों में इस्पात निर्माता कंपनियां सपाट उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी कर सकती हैं।
आर्थिक मंदी के कारण लौह-अयस्क और कोयले की कीमतें एक साल पहले की अपेक्षा काफी कम हो गईं हैं। साथ ही इस दौरान भारत के इस्पात उद्योग में तकनीकी और आर्थिक पैमाने पर भी सुधार हुआ है।
हालांकि, रूंगटा जो वित्त वर्ष 2009-10 में 1,000 क रोड रुपये की इन्क्रीमेंटल बढ़त की उम्मीद कर रहे हैं लेकिन, उनके लिए राह इतनी आसान नहीं हो सकती है। यह समय अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने का नहीं है क्योंकि अन्य देशों के इस्पात निर्माता तकनीक और अन्य मानदंडों के मामलों में हमसे कहीं आगे चल रहे हैं। (बीएस हिन्दी)

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