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23 सितंबर 2009

सोने ने डराया, हीरे ने लुभाया

चंडीगढ़ September 22, 2009
त्योहारी मौसम की वजह से ज्वैलर्स की आंखों में चमक एक फिर से लौट आई है क्योंकि वे मंदी के दौर के बाद एक बार फिर से बिक्री के बढ़ने की उम्मीद कर रहे हैं।
ज्वैलर्स का ऐसा मानना है कि त्योहारी मौसम और शादी विवाह के मौसम की वजह से एक बार फिर से कारोबार की रौनक लौट सकती है और उन्हें उम्मीद है की आने वाले दिनों में ज्यादा खरीदारी की जाएगी।
हालांकि इस साल ज्वैलर्स ऐसी उम्मीद कर रहे हैं कि सोने की चमक हीरे के गहने के मुकाबले फीकी पड़ सकती है क्योंकि इसमें ज्यादा वृद्धि दिख रही है। गहनों के कारोबारियों के बिक्री के आंकड़ों का जायजा लें तो सोने के बजाय हीरे की खरीदारी का रुझान ज्यादा बढ़ रहा है।
पीसी ज्वैलर्स के प्रबंध निदेशक बलराम गर्ग का कहना है कि पिछले कुछ सालों से सोने की तुलना में हीरे की बिक्री का कारोबार दोगुना हो चुका है। उनका कहना है, 'पिछले कुछ सालों में हीरे के गहनों का बाजार सोने की तुलना में 20 फीसदी बढ़ चुका है।'
गर्ग का कहना है कि सोने के मुकाबले हीरे के गहने में वृद्धि की कई वजहें हैं। सोने की आसमान छूती कीमतों की वजह से लोगों ने अब हीरे को तवज्जो देना शुरू कर दिया है। पिछले कुछ सालों में सोने की कीमतें अब 30-40 फीसदी तक बढ़ चुकी हैं। लेकिन हीरे की कीमतें ज्यादा स्थिर हैं और ग्राहकों को स्थिर कीमतें ज्यादा आर्कषित करती हैं।
अपनी कंपनी पी सी ज्वेलर्स पर टिप्पणी करते हुए गर्ग का कहना है कि हीरे के गहने का हिस्सा 20 फीसदी से बढ़कर 40 फीसदी हो चुकी है और आने वाले साल में उन्हें यह उम्मीद थी कि सोना और हीरे की कीमतें भी लगभग समान हो सकती हैं। इसी बीच गर्ग त्योहारी मौसम पर टिप्पणी करते हुए कहा कि आने वाले त्योहारी मौसम के मुकाबले पी सी ज्वेलर्स में निश्चित रूप से तेजी आई।
उनका कहना है कि नवरात्रि के पहले दो दिनों में गहनों के कारोबार में 30 फीसदी तक की वृद्धि देखी गई। और उन्हें यह उम्मीद है कि आने वाले दिनों में यह ट्रेंड बरकरार रह सकती है। तनिष्क के उत्तरी क्षेत्र के क्षेत्रीय बिजनेस मैनेजर का कहना है कि हीरे को ज्यादा तवज्जो दी जा रही है और हीरे के गहनों के कारोबार में लगभग 50 फीसदी तक की वृद्धि होगी और सोने में लगभग 30 फीसदी तक की बढ़ोतरी होगी।
उनका कहना है कि हीरे की अलग अलग डिजाइनों में मौजूद गहनों की वजह से उनकी ब्रिकी पर फर्क नहीं पड़ा और उन्हें यह यकीन है कि यह चलन अगले साल भी लागू होगा जब अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से उबरेगी। (बीएस हिन्दी)

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