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24 दिसंबर 2009

महंगी दालों से थोड़ी राहत

रकबा बढ़े या घटे दालों और खाद्य तेलों के भाव हुए पहले से थोड़े नरम
सुशील मिश्र / मुंबई December 23, 2009
रबी सीजन में दलहन की अच्छी बुआई से पिछले महीने भर में दाल के दाम करीब 7 फीसदी घट गए हैं।
देश-विदेश से अच्छी पैदावार के संकेतों से अगले एक दो महीनों में इसकी कीमतों में और 10 फीसदी की गिरावट का अनुमान व्यक्त किया जा रहा है। इस बीच आयात में कमी होने की संभावना भी जताई जा रही है।
ताजा आंकड़ों के अनुसार, रबी सीजन में अब तक 1.18 करोड़ हेक्टेयर में दलहन बोई जा चुकी है। पिछले साल इस समय तक 1.126 करोड़ हेक्टेयर में ही दलहन की बुआई हो पाई थी। रबी सीजन में दलहन का औसतन रकबा 1.163 करोड़ हेक्टेयर माना जाता है।
कृषि मंत्रालय का मानना है कि मौसम के बदलाव के चलते इस बार रबी की बुआई थोड़ी देर से चल रही है। इसके बावजूद इसकी बुआई पिछले साल से ज्यादा है। अब तक 77 लाख हेक्टेयर में चने की बुआई हुई है। पिछले साल आलोच्य अवधि तक 72.6 लाख हेक्टेयर में चना बोई गई थी। रबी सीजन में चने का औसतन रकबा 68.5 लाख हेक्टेयर है।
मसूर की बुआई भी पिछले साल से बेहतर है। 15.33 लाख हेक्टेयर में मसूर की बुआई हो चुकी है। पिछले साल इस समय तक 15.29 लाख हेक्टेयर में ही मसूर की बुआई हो पाई थी। दलहन की अच्छी फसल की खबर से दालों के दामों में कमी होना शुरू हो चुका है। 20 नवंबर को थोक बाजार में चना 2,550 रुपये प्रति क्विंटल पर बिक रहा था।
इसके ठीक महीने भर बाद यानी 21 दिसंबर को इसकी कीमत घटकर 2,460 रुपये रह गई। मसूर के भाव भी महीने भर पहले के 4,600 रुपये प्रति क्विंटल से गिरकर इस समय 4,200 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। शेयरखान कमोडिटी के प्रमुख मेहुल अग्रवाल कहते हैं कि पिछले एक महीने में दालों के दाम करीब 7-8 फीसदी गिर चुके हैं।
दलहन का रकबा बढ़ने, मौसम का मिजाज सही होने और देश-विदेश में दलहन की फसल के अच्छी रहने से अगले एक-दो महीने में दाल के दामों में करीब 10 फीसदी की कमी देखने को मिल सकती है। दलहन की नई फसल जनवरी के अंतिम हफ्ते तक बाजार में आनी शुरू हो जाएगी।
दालों के महंगा होने पर हंगामा होने से सरकार दालों का आयात बढ़ा रही है। दाल आयातक संघ के अध्यक्ष के. सी. भारतीय का कहना है कि उत्पादन बढ़ने से इसके आयात में कमी होगी; पर कीमतें कम होने के बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। उनके मुताबिक, पिछले 5 साल में जितनी तेजी से दूसरे जिंसों के दाम बढ़े, उस तेजी से दलहन में बढ़ोतरी नहीं हुई।
इस बार दालों की जो वास्ताविक कीमत होनी चाहिए, वह हो गई। उन्होंने बताया कि 1998-99 में दालों का आयात 4.6 लाख टन था, जो 2008-09 में बढ़कर 20 लाख टन से ज्यादा हो गया। इसकी वजह उत्पादन पर ध्यान न देना है।
सरकार यदि निजी क्षेत्र को भी आयात पर सब्सिडी की सुविधा दे दे तो इसकी किल्लत खत्म हो जाएगी और कीमतें नियंत्रित हो जाएंगी। अनुमान है कि इस साल 30-40 लाख टन दालों का आयात होगा। देश में इस साल अब तक 20 लाख टन दालों का आयात हो चुका है। (बीएस हिन्दी)

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