कुल पेज दृश्य

19 दिसंबर 2009

पैसा खर्च करने में ढिलाई पर एफएमसी की खिंचाई

संसदीय समिति ने वायदा बाजार नियामक संस्था (एफएमसी) की इस बात के लिए खिंचाई की है कि वह बाजार विनियमन के लिए जारी किए गए जाने वाले फंड का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पाता है। खाद्य, उपभोक्ता मामले और सार्वजनिक वितरण पर स्थाई कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि योजना आयोग हर वर्ष वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) को बड़ा फंड इसलिए जारी करता है कि वह देश में वायदा कारोबार को ठीक से रेगुलेट कर सके, लेकिन एफएमसी जारी बजट का 50 फीसदी भी खर्च नहीं कर पाता है। वित्त वर्ष 2008-09 के लिए बजट अनुमान 20.70 करोड़ रुपये था जिसे संशोधित अनुमान में घटाकर 3.6 करोड़ कर दिया गया, जबकि वास्तविक खर्च 3.31 करोड़ रुपये ही रहा। इससे पहले यानी वित्त वर्ष 2007-08 में भी यही स्थिति रही थी। कमेटी ने सरकार की उस दलील को भी खारिज कर दिया कि वायदा सौदे (विनियमन) संशोधन विधेयक (एफसीआरए ) के अभाव में यह फंड खर्च नहीं कर पा रही है। पैनल ने एफएमसी को सुझाव दिया कि इस बिल के अभाव में भी वह मौजूदा संसाधनों से अपना प्रदर्शन सुधारे। पैनल ने सरकार को भी सुझाव दिया कि वह विधेयक को संसद में फिर से पेश करे ताकि एफएमसी की स्वायत्तता और विनयमन को मजबूत किया जा सके। एफसीआरए लोकसभा में 2008 में पेश किया गया था ताकि अध्यादेश को अधिनियम में बदला जा सके, लेकिन 14वीं लोकसभा भंग होने के कारण यह संभव नहीं हो सका। एफएमसी में पदों के खाली होने पर भी पैनल ने सख्त रुख दिखाया। पैनल ने कहा कि स्वीकृत 236 पदों में से केवल 83 को ही भरा गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार एफसीआरए के पारित होने का इंतजार किए बिना खाली पदों को भरने के लिए जरूरी कदम उठाए। (बिज़नस भास्कर)

कोई टिप्पणी नहीं: