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29 जनवरी 2010

कपास की उत्पादकता में लगातार गिरावट

नई दिल्ली January 28, 2010
कपास की उत्पादकता पिछले दो सालों से लगातार कम हो रही है। वर्ष 2007-08 के दौरान कपास की उत्पादकता प्रति हेक्टेयर 567 किलोग्राम थी जो वर्ष 2008-09 में 526 किलोग्राम हो गई और वर्ष 2009-10 में मात्र 494 किलोग्राम रह गई है। कृषि वैज्ञानिक इस कमी के लिए बारिश की कमी को जिम्मेदार मान रहे हैं। उनका यह भी दावा है कि पिछले साल के मुकाबले कपास की गुणवत्ता में सुधार आया है। अभी कपास के दूसरे चरण की चुनाई बाकी है इसलिए कपास की उत्पादकता में भी थोड़ी-बहुत बढ़ोतरी हो सकती है। हालांकि कपास का उत्पादन पिछले साल के मुकाबले 5 लाख बेल्स (1 बेल = 170 किलोग्राम) अधिक हो चुका है। इस साल अब तक 295 लाख बेल्स कपास का उत्पादन हुआ है। भारतीय कपास निगम के मुताबिक इस साल देश के लगभग सभी प्रमुख कपास उत्पादक राज्यों की उत्पादकता में कमी आई है। गुजरात की उत्पादकता पिछले साल 650 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी जो कि इस साल 615 किलोग्राम के स्तर पर है वहीं पंजाब की उत्पादकता 565 किलोग्राम से घटकर 507 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई है। इसी तरह हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश व कर्नाटक की कपास उत्पादकता में 10-40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की गिरावट दर्ज की गई है। मुंबई के माटुंगा स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के कपास वैज्ञानिक के मुताबिक इस साल पिछले साल के मुकाबले कीड़े लगने की शिकायत भी काफी कम रही परंतु बारिश की कमी से उत्पादकता प्रभावित हो गई। लेकिन बनी बीटी व अन्य किस्मों की गुणवत्ता में पिछले साल के मुकाबले बढ़ोतरी पायी गई है। कपास से जुड़े आईसीएआर के वरिष्ठ वैज्ञानिक चित्रनायक कहते हैं, 'विदर्भ इलाके की 30 एकड़ जमीन पर उगाए गए बनी बीटी कपास पर शोध के बाद अच्छे नतीजे सामने आए है। लंबाई व ताकत दोनों ही लिहाज से ये कपास पिछले साल से बेहतर है।Ó उन्होंने बताया कि पिछले साल बनी बीटी कपास की लंबाई 28-29 मिलीमीटर थी जो कि इस साल 32-33 मिलीमीटर हो गई है वहीं इसकी ताकत 22-23 प्रति टेक्स से बढ़कर 25 प्रति टेक्स हो गई है।कपास की लंबाई अच्छी होने से फाइबर भी उम्दा निकलता है। वैज्ञानिक किसानों को कपास के तने का इस्तेमाल करना भी बता रहे हैं। कपास के तने को काफी मजबूत माना जाता है और उससे कई प्रकार के सामानों का निर्माण हो सकता है। अब तक किसान कपास के तने को बेकार समझ कर जला देते थे। (बीएस हिन्दी)

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