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22 फ़रवरी 2010

जल्दी पकने वाली मटर की नई किस्म

उत्तराखंड के अल्मोड़ा स्थित विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने मटर की अति शीघ्र पकने वाली किस्म विकसित की है। इस किस्म को वी।एल. अगेती मटर 7 नाम दिया गया है। इस किस्म के जल्दी पकने की वजह से किसान जल्दी फसल उगा सकते हैं। संस्थान के फसल सुधार विभाग के अध्यक्ष विनय महाजन ने बताया कि वी.एल. अगेती मटर 7 अति शीघ्र पकने वाली अगेती और बौनी किस्म है, जो अर्किल किस्म से एक सप्ताह पहले पककर तैयार हो जाती है। उनका कहना है कि इसके जल्द पकने के कारण यह किस्म चूर्णिल आसिता रोग से बचाव करने में सक्षम है। इसकी अंकुरण क्षमता ठंड एंव कम नमी में भी अच्छी होती है। इसकी फलियों को अधिक दिन तक रखा जा सकता है। इसके दाने काफी बड़े और स्वाद में अधिक मीठे होते हैं। इस वजह से इसकी बाजार में मांग अधिक रहेगी। ऐसे में किसान इसके दाम अधिक प्राप्त कर सकते है। डॉ. महाजन के अनुसार इस किस्म की औसत उपज 100-125 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है।बुवाई की विधिइस किस्म की बुवाई निचले पर्वतीय क्षेत्रों यानि 3000 फीट ऊंचाई तक के क्षेत्रों में सितंबर के दौरान करनी चाहिए। इसी तरह मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्रों यानि 3000-5000 फीट वाले इलाकों में नवंबर और अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों यानि 5000-7000 फीट ऊंचाई के इलाकों में अगस्त में करनी चाहिए। अधिक पैदावार लेने के लिए एक हैक्टेयर में 80-100 किलोग्राम के हिसाब से बुवाई करनी चाहिए। बीज को बोने से कवकनाशी रसायन कार्बेडाजिम या थायरम की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज का उपचार करते हैं, जिससे कि फसल को बीज जनित रोगों से बचाया जा सके।उर्वरकों का प्रयोगडॉ. महाजन का कहना है कि अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी के हिसाब से उर्वरकों का प्रयोग करना उपयुक्त होता है। खेत तैयार करने के बाद बुवाई से 15 दिन पहले कंपोस्ट या सड़ी गोबर की खाद 20 टन प्रति हैक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला दें। रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी की जांच के आधार पर नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की खाद डालने से अच्छी उपज प्राप्त होती है। उर्वरकों की संपूर्ण मात्रा को अंतिम जुताई के समय खेत में बिखेर कर तैयारी करनी चाहिए।रोग नियंत्रणमटर की इस किस्म का रोग नियंत्रण उचित क्रिया अपनाकर, रसायनिक और जैविक विधियां अपनाकर किया जाता है। पत्ता अंगकारी रोग के नियंत्रण के लिए दो ग्राम मैंकोजेब प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए। सफेद विगलन रोग के लिए एक लीटर में एक ग्राम काबोंडाजिम मिलाकर आवश्यकता के अनुसार 10-15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए। वैसे तो यह किस्म चूर्णिल आसिता रोग को सहने की क्षमता रखती है, फिर भी इस रोग के पाए जाने पर बारीक गंधक का भुरकाव 25 किलो प्रति हैक्टेयर के हिसाब या घुलनशील गंधक का छिड़काव दो ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से करना फायदेमंद है। डॉ. महाजन का कहना है कि फली भेदक और पत्ती सरंगक कीटों के नियंत्रण के लिए एंडोसल्फान नामक दवा की दो मिलीलीटर मात्रा एक लीटर पानी में मिलाकर छिड़कना चाहिए।बीज उत्पादनइस किस्म की बुवाई के किसान खुद भी बीज तैयार कर सकते हैं। इस किस्म से एक हैक्टेयर जमीन में 15 से 20 क्विंटल बीज का उत्पादन किया जा सकता है। उनका कहना है कि व्यावसायिक बीज उत्पादन के लिए संस्थान से अनुबंध कर सकते है। शुद्ध बीज प्राप्त करने के लिए फसल की विभिन्न अवस्थाओं में इसका निरीक्षण करना चाहिए। जिससे कि भिन्न-भिन्न प्रकार और रोगग्रस्त पौधों को समय-समय पर हटाया जा सके है। फलियों के पौधों पर सूखकर भूरी रंग की होने पर तुड़ाई करना बीज निष्कर्षण हेतु किया जाता है। बीजों में 90 फीसदी आद्र्रता रहने पर सूखे बंद डिब्बों या थैलों में भंडारित किया जा सकता है। (बिज़नस भास्कर)

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