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21 अप्रैल 2010

चावल की 11 नई किस्में जारी

केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (सीआरआरआई) ने ज्यादा पैदावार वाली चावल की 11 किस्में पेश की है। इनमें से पांच ऐसी किस्में हैं जो उड़ीसा की जलवायु में बेहतर तरीके से विकसित हो सकेंगी।सीआरआरआई के निदेशक टी। के. आध्या ने बताया कि वर्ष 1948 मे स्थापना के बाद से संस्थान अब तक चावल की 76 चावल किस्में विकसित करके जारी कर चुका हैं। ये किस्में विभिन्न जलवायु वाले क्षेत्रों में उगाई जा सकती हैं। इनमें से 44 किस्में उड़ीसा के लिए उपयोगी हैं। उन्होंने बताया कि केंद्रीय और राज्य समितियों द्वारा मंजूर की गई हाल में जारी नई किस्में पूर देश में उगाई जा सकती हैं।चावल की सीआर धान-त्तक्ख्, स्त्रक्ख्, सीआर बोरो धान-फ्, सीआर धान-भ्क्ख् और सीआर धान-म्क्ख् किस्में केंद्रीय समिति ने जारी की हैं। ये किस्में बिहार, गुजरात, असम, तमिलनाडु, प. बंगाल व आंध्र प्रदेश में उगाने के लिए उपयुक्त होंगी। जबकि उड़ीसा के लिए सीआर धान-8क्ख्, सीआर धान-भ्क्ख्, सीआर धान-भ्क्फ्, भ्क्ब् और 9क्ख् किस्में जारी की गई हैं। सीआरआरआई के निदेशक ने बताया कि उड़ीसा के लिए जारी की गई पांच किस्मों में से दो किस्में समुद्र तटीय क्षेत्र के जिलों जगतसिंहपुर व केंद्रपाड़ा के लिए ज्यादा उपयोगी होंगी। इनमें पैदावार ब्.म् से भ् टन प्रति हैक्टेयर हो सकती है और फसल ख्म्क् से ख्म्म् दिनों में तैयार होगी।संस्थान ने धान की सुगंधित किस्म सीआर-9क्ख् को भी जारी किया है, जो मुख्य रूप से दक्षिणी उड़ीसा की लोकप्रिय किस्म चीनीकमिनी किस्म के आधार पर विकसित किया गया है। इसकी पैदावार करीब ब्.म् टन प्रति हेक्टेयर रह सकती है। पिछले साल वैज्ञानिकों ने गीताजंलि और केतकीजोहा किस्मों को जारी किया था, जो सुगंधित हैं। ये किस्में भी उड़ीसा के मौसम के अनुकूल हैं और ये काफी लोकप्रिय हुईं। निदेशक ने बताया कि संस्थान चावल की नई किस्मों के अलावा कृषि तकनीक विकसित करने में भी लगा है। इस दिशा में हमनें कम पानी में भी उपजने वाली तीन किस्मों को विकसित किया है। उन्होंने कहा कि कम पानी में उपजने वाले चावल को एरोबिक राइस कहा जाता है। इस चावल की खासियत यह है कि अन्य किस्मों की अपेक्षा इसमें ब्क् से ब्म् प्रतिशत कम सिंचाई की जरूरत होती है। (बिज़नस भास्कर)

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