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21 अप्रैल 2010

लगातार बढ़ रहा है बीटी कपास का रकबा

नई दिल्ली April 21, 2010
कपास की उत्पादकता भले ही पिछले दो साल से घट रही है, लेकिन हर साल इसकी खेती में बीटी का क्षेत्रफल बढ़ता जा रहा है।
कपास सलाहकार समिति (सीएबी) की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल की 80 फीसदी के मुकाबले इस साल बीटी की हिस्सेदारी 88 फीसदी हो गई। वर्ष 2009-10 में कुल 101 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कपास की खेती की गई।
देश की उत्पादकता 494 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रहने के बावजूद तमिलनाडु की उत्पादकता 977 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक पहुंच गई। जो कि अमेरिका की कपास उत्पादकता के आसपास है। इस साल कुल 295 लाख बेल्स ( एक बेल = 170 किलोग्राम) कपास का उत्पादन बताया जा रहा है जो कि पिछले साल से 5 लाख बेल्स अधिक है।
वर्ष 2009-10 में सबसे अधिक महाराष्ट्र में 35.02 लाख हेक्टेयर, गुजरात में 26.24 लाख हेक्टेयर एवं आंध्र प्रदेश में 13.19 लाख हेक्टेयर में कपास की खेती की गई। महाराष्ट्र की उत्पादकता 325 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, गुजरात की 615 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर एवं आंध्र प्रदेश की 619 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रही।
मुंबई के माटुंगा स्थित केंद्रीय कपास प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों के मुताबिक पिछले साल के मुकाबले इस साल कपास की उत्पादकता में प्रति हेक्टेयर 32 किलोग्राम की कमी है, लेकिन इसके लिए पूर्ण रूप से बारिश की कमी एवं उच्च तापमान जिम्मेदार है।
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक अब सिर्फ उत्तर भारत यानी कि पंजाब, राजस्थान एवं हरियाणा में देसी कपास (वैज्ञानिक भाषा में अरबोरियम का हाइब्रिड) की खेती की जा रही है। बाकी सभी जगहों पर लगभग 100 फीसदी बीटी कपास की खेती हो रही है।
हालांकि पंजाब में कपास से जुड़े किसानों का कहना है कि उनके यहां भी 95 फीसदी इलाके में बीटी कपास की खेती हो रही है। कृषि वैज्ञानिक भी नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं कि असलियत में 95-96 फीसदी इलाके में बीटी की ही खेती की जा रही है।
कपास से जुड़े वरिष्ठ वैज्ञानिक चित्रनायक कहते हैं, 'नहर एवं अन्य सिंचाई की सुविधा करके हम अपनी उत्पादकता को अमेरिकी स्तर तक ले जा सकते हैं। कपास के कुल क्षेत्रफल में 60 फीसदी सिंचाई की सुविधा से वंचित है।'
उन्होंने बताया कि तमिलनाडु में इस साल 87,000 हेक्टेयर में कपास की खेती की गई और पानी की पर्याप्त सुविधा के कारण यहां की उत्पादकता 977 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक पहुंच गई। वे कहते हैं कि इन दिनों जाइलैंड एग्री (कम पानी में खेती) पर शोध चल रहा है ताकि कपास की उत्पादकता को बढ़ाया जा सके।
उत्पादकता में लगातार 2 साल से गिरावट
2007-08 में कपास की उत्पादकता 560 किग्रा प्रति हेक्टेयर रही, 2008-09 में 526 और 2009-10 में उत्पादकता घटकर 494 किग्रा प्रति हेक्टेयर रह गईइस साल बीटी कपास की कुल बुआई में हिस्सेदारी 88 प्रतिशत हो गईतमिलनाडु में इस साल रही सर्वाधिक उत्पादकता (बीएस हिंदी)

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