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22 अप्रैल 2010

भारत के प्रतिबंध से चीन को मिलेगी महंगी कॉटन

कॉटन निर्यात पर रोक लगने की खबर चीन के टैक्सटाइल उद्योग के लिए अच्छी नहीं है। भारत में कॉटन निर्यात सौदे के नए पंजीयन पर रोक लगाए जाने से चीन के हाथ से प्रमुख कॉटन सप्लायर निकल गया है। इस वजह से उसे अपने यहां के टैक्सटाइल उद्योग की मांग पूरी करने के लिए दूसर निर्यातक देशों की ओर रुख करना होगा। यही नहीं उसे विश्व बाजार से और महंगी कॉटन खरीदनी होगी।चीन के उद्योग को भारत से सस्ती कॉटन मिल जाती थी लेकिन अब उसे कच्चे माल के लिए ज्यादा खर्च करना होगा। भारत में रोक लगने का फायदा अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, उजबेकिस्तान और अफ्रीका के निर्यातकों को मिलेगा। विश्लेषकों का कहना है कि भारत से कॉटन निर्यात पर नीतिगत बदलाव होने से वैश्विक स्तर पर बाजार में भारी बदलाव आने की पूरी संभावना है। हालांकि भारत चालू सीजन में औसतन वार्षिक निर्यात से भी कहीं ज्यादा विदेश में कॉटन की सप्लाई कर चुका है लेकिन इससे भी विश्वव्यापी मांग पूरी होती नहीं दिखाई दे रही है। चीन की मांग बढ़ने से वैश्विक खपत लगातार बढ़ रही है। चायना कॉटन एसोसिएशन के उप महासचिव यांग जोलियांग ने कहा कि भारत से चीन को कॉटन का आयात घट जाएगा लेकिन कॉटन पर निर्भर उद्योगों की मांग लगातार बढ़ रही है। इस वजह से अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, उजबेकिस्तान और अफ्रीका से खरीद जारी रहेगी। निश्चित ही इन हालातों में कॉटन का मूल्य बढ़ेगा और इन देशों के निर्यातकों को फायदा मिलेगा। अभी तक इन देशों से खरीद धीमी थी।दुनिया का सबसे बड़ा कॉटन उपभोक्ता और आयातक देश चीन हर साल भारत से निर्यात होने वाली 70-80 फीसदी कॉटन खरीदता है। बांग्लादेश, पाकिस्तान और टर्की भी भारत से खरीद करते हैं। इस साल जनवरी से मार्च के दौरान चीन ने कुल 8।46 लाख टन कॉटन आयात किया। यह आयात पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले करीब तीन गुना है। चीन के कस्टम विभाग के अनुसार 47 फीसदी भारत और 26 फीसदी कॉटन का आयात अमेरिका से किया गया। विश्लेषकों के मुताबिक वर्ष के इन महीनों में चीन के लिए अमेरिका सबसे बड़ा सप्लायर होना चाहिए। लेकिन भारत से खरीद कहीं ज्यादा रही है। यांग का कहना है कि भारत से ज्यादा खरीद की मुख्य वजह कॉटन का मूल्य कम होना है। दूसर सप्लायरों के मुकाबले भारत से दूरी भी कम है। (बिज़नस भास्कर)

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