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28 अप्रैल 2010

जीएम फसलों के लिए अस्थायी पंजीकरण

नया सीड बिल संसद में गरमा-गरम बहस का एक और मुद्दा बन सकता है। इसमें स्टैंडिंग कमेटी की कई महत्वपूर्ण सिफारिशों को नकार दिया गया है। नए प्रावधानों से न सिर्फ कंपनियां मनमाफिक दामों पर बीज बेचने के लिए स्वतंत्र होंगी, बल्कि उनके लिए जुर्माने की रकम भी घटा दी गई है। बिल को सीड्स एक्ट-2010 नाम दिया गया है और इसे अभी राज्यसभा में पेश किया जाएगा।बिल में आनुवांशिक रूप से परिवर्तित यानि जीएम फसलों की किस्मों के लिए अस्थायी पंजीकरण भी बड़े विवाद का विषय बन सकता है। इसके द्वारा उन जीएम फसलों को भी बाजार में लाने का रास्ता खुल सकता है जिनके परीक्षण पूर नहीं हुए हैं। बिल में बीज पंजीकरण की अवधि को बढ़ा दिया गया है। वार्षिक फसलों के बीजों के पंजीकरण मान्य होने की अवधि दस से बढ़ाकर 15 वर्ष कर दी गई है। द्विवाषिर्क फसलों के बीजों के मामले में इसे 12 से बढ़ाकर 18 वर्ष कर दिया गया है। बिल में बीजों के दाम नियंत्रित करने के लिए किसी भी नियामक संस्था का प्रावधान नहीं किया गया है। इससे कंपनियां मनमाफिक दामों पर बीज बेचने में कामयाब होंगी। बीज शुद्धता की कसौटी पर खरा न उतरने की सूरत में या फिर सही रिकार्ड न रखने पर जुर्माने की अधिकतम सीमा को 30,000 रुपये से घटाकर 25,000 रुपये कर दिया गया है। इसी प्रकार बीज के संबंध में गलत जानकारी देने पर भी जुर्माने की अधिकतक सीमा को एक लाख से घटाकर 50,000 रुपये कर दिया गया है। बिल में किसान को किसी प्रकार के बीज के लेनदेन से नहीं रोका गया है, हालांकि उन्हें बीज को किसी ब्रांड के नाम पर बेचने का अधिकार नहीं होगा।बिल में निजी कंपनियों द्वारा स्थापित प्रयोगशालाओं को भी बीजों की टेस्टिंग के लिए मान्यता देने का प्रावधान है। इसके अनुसार केंद्र या राज्य सरकारें मानकों को पूरा करने वाली किसी भी प्रयोगशाला को केंद्रीय या राज्य टेस्टिंग लैबोरटरी घोषित कर सकती हैं। (बिज़नस भास्कर)

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