कुल पेज दृश्य

08 जून 2010

वनस्पति घी बाजार में उत्तर भारत की इकाइयां पिछड़ीं

वनस्पति घी उत्पादन के मामले में उत्तर भारत की इकाइयों को लैंडलॉक एरिया की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। सस्ते क्रूड पाम तेल का परिवहन खर्च समुद्र तटीय क्षेत्रों के मुकाबले उत्तर भारतीय राज्यों में ज्यादा होने के कारण यहां की इकाइयों की लागत ज्यादा पड़ रही है। यही वजह है कि उत्तर भारत की वनस्पति इकाइयां अपनी कुल क्षमता के मुकाबले सिर्फ 40 फीसदी उत्पादन कर पा रही हैं। सस्ता होने के कारण वनस्पति घी बनाने में करीब 80 से 90 फीसदी क्रूड पाम तेल का ही उपयोग हो रहा है।वनस्पति मैन्यूफेक्चर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (वीएमए) के अध्यक्ष प्रमोद दुग्गल ने बिजनेस भास्कर को बताया कि वनस्पति बनाने में 80-90 फीसदी क्रूड पाम तेल का इस्तेमाल हो रहा है। इसलिए बंदरगाहों के नजदीक स्थित वनस्पति कंपनियों को आयातित पाम तेल सस्ता पड़ रहा है। विजय सॉल्वेक्स लिमिटेड के मैनेजिंग डायरक्टर विजय डाटा ने बताया कि विदेशी कंपनियों ने बंदरगाहों के पास वनस्पति बनाने की यूनिटें लगा ली हैं। बंदरगाह से क्रूड पाम तेल मिल तक लाने का भाड़ा बहुत कम पड़ता है, जिससे उनकी लागत कम आ रही हैं। दूसरी ओर उत्तर भारत की वनस्पति घी कंपनियों क्रूड पॉम तेल टेंकरों से मंगाना पड़ रहा है। इस पर करीब 2।50 रुपये प्रति किलो भाड़ा आता है। इससे उनकी लागत काफी ज्यादा बढ़ जाती है। तटीय क्षेत्र की इकाइयां उत्तर भारत के बाजार में यहां की इकाइयों को कड़ी टक्कर दे रही हैं। तटीय क्षेत्र से वनस्पति घी उत्तर भारत के बाजारों में लाने पर सिर्फ एक रुपये प्रति किलो भाड़ा पड़ता है क्योंकि वनस्पति घी रेलवे रैक मंगाया जा सकता है।जबकि उत्तर भारत की इकाइयों को वनस्पति घी बनाने के लिए तरल रूप में पाम तेल टैंकरों से मंगाना पड़ता है क्योंकि इसे रेलवे रैक से मंगाना संभव नहीं है। इस वजह से उनकी लागत बढ़ जाती है। बाजार में लागत के मामले में पिछड़ने से उत्तर भारत की कंपनियां अपनी कुल क्षमता के मुकाबले सिर्फ 30-40 फीसदी उत्पादन कर पा रही हैं। बंदरगाहों से भाड़े से बचने के लिए यहां की कई वनस्पति कंपनियां घरेलू रिफाइंड खाद्य तेलों का उत्पादन करनी लगी हैं। उत्तर भारत में इस समय कुछेक बड़ी कंपनियां ही अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल कर पा रही हैं। दिल्ली वेजिटेबिल ऑयल ट्रेडर्स एसोसिएशन के सचिव हेमंत गुप्ता ने बताया कि खाद्य तेलों के मुकाबले वनस्पति घी की मांग बहुत कम है। इसमें बढ़त बहुत मामूली रही है। दस साल पहले देश में वनस्पति घी की सालाना खपत 10 लाख टन होती थी, जोबढ़कर सिर्फ 12.5 लाख टन हुई है। जबकि दस साल पहले देश में 45 लाख टन खाद्य तेलों (रिफाइंड तेलों समेत) की खपत होती थी, जो इस समय बढ़कर 150 लाख टन हो गई है। पिछले कुछ सालों से वनस्पति घी के मुकाबले लोगों का रुझान रिफाइंड खाद्य तेलों की ओर बढ़ रहा है।बात पते कीतटीय इलाइकों की इकाइयों में उत्पादित सस्ता वनस्पति बाजार में आने से उत्तर भारत की इकाइयां अपनी कुल क्षमता के मुकाबले सिर्फ 40 फीसदी उत्पादन कर पा रही हैं। वनस्पति घी बनाने में 90 फीसदी आयातित क्रूड पाम तेल का उपयोग हो रहा है। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)

कोई टिप्पणी नहीं: