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15 जून 2010

मॉनसून की आहट से भी ठंडी नहीं हुई हल्दी, आवक सुस्त

मुंबई June 13, 2010
अच्छे मॉनसून की आहट से अधिकांश कृषि जिंसों की कीमतों में गिरावट का रुख देखने को मिल रहा है। जबकि दूसरे कृषि उत्पादों के विपरीत हल्दी की सेहत पर मॉनसून की दस्तक का कोई फर्क नहीं पड़ा है। हाजिर बाजार में आवक कमोजर पडऩे और विदेशी मांग की वजह से हल्दी की सेहत और तंदरुस्त होती जा रही है। विदेशी मांग और किसानों के रुख को देखते हुए आने वाले निकट समय में भी हल्दी की कीमतों में बहुत ज्यादा गिरावट के आसार नजर नहीं आ रहे हैं।पिछले सप्ताह की शुरुआत में एनसीडीईएक्स में हल्दी वायदा (जून अनुबंध) 14411 रुपये प्रति क्ंिवटल में खुला और सप्ताह भर उतार चढ़ाव के बाद शनिवार को चार फीसदी के अपर सर्किट लगने के बाद 14662 रुपये प्रति क्ंिवटल में बंद हुआ। हल्दी में पिछले कई महीनों से लोअर और अपर सर्किट का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। हल्दी की कीमतें काबू में करने और सटोरियों की सक्रियता कम करने के लिए मार्च में वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने हल्दी पर मार्जिन बढ़ाकर 33 फीसदी तक कर दिया है। इसके बावजूद कीमतें नीचे आने का नाम नहीं ले रही है। हल्दी की कीमतें कम न होने की प्रमुख वजह सटोरियों की भागीदारी, भारी विदेशी मांग, सरकारी आंकड़ों में फेर बदल और किसानों की बढ़ती समझदारी को माना जा रहा है।ऐंजल ब्रोकिंग की नलिनी राव केअनुसार 2008-09 में देश में 42 लाख बैग (एक बैग बराबर 70 किलोग्राम) का हल्दी का उत्पादन हुआ था, उत्पादन कम होने की वजह से कीमतें बढ़ गई। इस बार 53 लाख बैग का उत्पादन होने का अनुमान व्यक्त किया गया था जिससे कीमतों में थोड़ी गिरावट भी हुई थी लेकिन बाद में इस अनुमान को घटाकर कहा जाने लगा कि इस बार 48 लाख हल्दी का उत्पादन हुआ है। इससे बाजार में संदेश गया कि सरकारी आंकड़ों में जो उत्पादन दिखाया जा रहा है वह वास्तविकता से काफी कम है, कम उत्पादन की आशंका से एक बार फिर कीमतों को बल मिला। दूसरी बात कि अभी भी एक्सपोर्ट मांग बनी हुई है और बाजार में आवक कम हुई है जो कीमतों को नीचे नहीं आने देती हैं। उनका कहना है तीसरी सबसे प्रमुख वजह यह है कि किसान अब कम कीमत पर अपना माल बेचने को तैयार नहीं हैं। हल्दी की सबसे बड़ी मंडी निजामाबाद में किसानों का रुख इस बात को साफ करता है। कारोबारियों का कहना है कि सटोरियों से कही ज्यादा हल्दी के किसान इस समय बाजार की नब्ज पकडऩे में माहिर हो गए हैं और यही वजह है कि हल्दी की कीमतों में जैसे ही थोड़ी गिरावट होती है आवक कमजोर पड़ जाती है। कारोबारियों के अनुसार किसान अपना माल वापस लेकर चले जाते हैं लेकिन कम कीमत पर बेचने को तैयार नहीं होते हैं। कारोबारी मान रहे हैं कि किसानअब बाजार की भाषा समझने लगे हैं, उनको पता है कि दो दिन बाद माल बेचेंगे तो दाम अच्छा मिलेगा। किसानों की इसी समझ का नतीजा है कि पिछले दो साल के अंदर हल्दी की खेती करने वाले किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर हुई है। इस समय निजामाबाद मंडी में औसतन 400-500 बैग प्रति दिन हल्दी की आवक है जबकि इरोड में करीबन 4000 बैग हल्दी हर दिन आ रही है।हल्दी की कीमतों का गुबार मॉनसून तोड़ सकता है। नालिनी राव केअनुसार हल्दी की फसल के लिए ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है। मानसून अच्छा होने की उम्मीद की जा रही है। कीमतें ज्यादा हैं, जिसको देखते हुए हल्दी की बुआई ज्यादा हो सकती है। वर्तमान माहौल को देखते हुए उम्मीद की जानी चाहिए की हल्दी उत्पादक राज्यों के किसान इस बार हल्दी की खेती को प्राथमिकता देंगे जिससे हल्दी का रकबा बढऩा तय माना जा रहा है। रकबा बढऩे का साथ ही इंद्र भगवान ने साथ दे दिया तो उत्पादन भी ज्यादा होगा। उत्पादन बढऩे से पिछले दो साल से हल्दी में चली आ रही तेजी थम सकती है। लेकिन फिलहाल 500 -600 रुपये का उतार चढ़ाव का दौर जारी रहेगा। (बीएस हिंदी)

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