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14 जुलाई 2010

बाढ़ से घटेगा बासमती उत्पादन!

मुंबई July 13, 2010
पंजाब और हरियाणा में पिछले हफ्ते बाढ़ आने से इस साल बासमती चावल का कुल उत्पादन 15 फीसदी तक घट सकता है। हालांकि, फसल के अंतिम आंकड़े आने अभी बाकी हैं, लेकिन विशेषज्ञ दोनों राज्यों में कुल 15-18 फीसदी रकबा घटने का अनुमान लगा रहे हैं। कुल बासमती उत्पादन में इन दोनों राज्यों का योगदान 75 फीसदी है।बासमती चावल किसान और निर्यातक विकास फोरम के परामर्शदाता अनिल मित्तल ने कहा कि हमारा अनुमान है कि फसल का रकबा 2,50,000 हेक्टेयर कम हो सकता है जो हरियाणा में अब भी पानी में डूबा है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा बासमती चावल उत्पादक और निर्यातक देश है। देश में 2009-10 में रिकॉर्ड 45 लाख टन बासमती का उत्पादन हुआ था। एपीडा के आंकड़ों के मुताबिक 2009-10 में बासमती के कुल रकबे में 10 फीसदी इजाफा हुआ था और यह 17 लाख हेक्टेयर रहा था।वित्त वर्ष 2009-10 में निर्यात के लिए कुल 32 लाख टन का सौदा हुआ जिसमें से 25 लाख टन चावल बाहर भेजा गया जो पिछले साल के मुकाबले 60 फीसदी ज्यादा है। बाढ़ से पहले करीब 75 फीसदी रकबे में धान के पौधे लग चुके थे। मित्तल ने कहा कि कुछ देर से बुआई वाली किस्में विकसित की गई हैं जो कम पानी में ज्यादा से ज्यादा उपज देती हैं। इन किस्मों की बुआई तभी संभव है जब पानी का स्तर घटे और बारिश से दोबारा ऐसी स्थिति न पैदा हो। राज्यों में अब भी कुछ इलाकों में कमर तक और बाकी इलाकों में घुटनों तक पानी भरा है जो धान की फसल के लिए नुकसानदेह है। धान के पौधे 72 घंटों से ज्यादा देर पानी में टिक नहीं सकते। दोनों राज्यों में 2,50,000 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पानी में डूबा है, ऐसे में इन इलाकों में एक महीने से पहले धान के पौधों की बुआई संभव नहीं है। लिहाजा इन इलाकों में धान के पौधों की बुआई नहीं हो सकेगी जिससे रकबा घटेगा।दूसरी ओर अखिल भारतीय चावल निर्यातक संघ के अध्यक्ष विजय सेतिया का मानना है कि अगले 15 दिन धान की फसल के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण होंगे। किसान अगले 15 दिनों में धान की खेती के लिए तय भूमि में पौध लगाने का काम पूरा कर लेंगे। पर, उन्होंने स्वीकार किया है निचले इलाके पानी में डूबे रहेंगे और अगर वहां से पानी जल्दी नहीं निकलता, तो पौध लगाने में मुश्किल हो सकती है। हरियाणा के कृषि विभाग का कहना है कि बासमती धान की बुआई जुलाई के अंत तक हो सकती है।ऐसे में अगर पानी अगले दो दिनों में निकल जाता है, तो पौधे लगाए जा सकेगे। लेकिन, नर्सरी की उपलब्धता में मुश्किल होगी। अगर सरकार भी नर्सरी उपलब्ध कराती है, तो किसानों को अतिरिक्त लागत के तौर पर 10,000 रुपये प्रति हेक्टेयर का नुकसान होगा। (बीएस हिंदी)

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