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05 अगस्त 2010

किसानों को सीधे-सीधे सब्सिडी देना बेहतर

August 04, 2010
उपभोक्ता मामलों और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के मंत्रालय ने कृषि मंत्रालय को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में कोई तब्दीली करने के बजाय सीधे-सीधे सब्सिडी देने की कोशिश करने की सलाह दी है।संसद में उठाए गए सवालों पर चर्चा करने के लिए पिछले सप्ताह की गई एक बैठक में यह सलाह दी गई। इस मामले से जुड़े एक अधिकारी ने बताया, 'कम-से-कम दाल जैसी उन फसलों के मामले में जिनके भाव ऊंचे स्तर पर बने हुए हैं। इनका एमएसपी बढ़ाने से भाव में और उछाल आ सकता है।'उपभोक्ता मामलों के विभाग का मानना है कि सरकारी एजेंसियों की ओर से फसलों की खरीदारी करते समय किसानों को सीधे-सीधे सब्सिडी देकर उन्हें वित्तीय फायदा पहुंचाया जाना बेहतर होगा। एक अधिकारी ने कहा, 'सीधे-सीधे सब्सिडी देने का तरीका पहले ही आजमाया जा चुका है और इसकी वजह से मौजूद खरीफ सीजन के दौरान दालों (अरहर, उड़द और मूग) के रकबे में बढ़ोतरी हुई है। यदि रकबा बढऩे के फलस्वरुप दालों का उत्पादन भी बढ़ता है, तो इस तरीके को अन्य फसलों पर आजमाने की कोशिश में कोई बुराई नहीं है।'उन्होंने कहा कि हालांकि कृषि मंत्रालय को ऐसा लगता है कि एमएसपी की वजह से किसान दालों के ज्यादा उत्पादन के लिए उत्साहित होते हैं, जो बहुत पसंदीदा फसल नहीं मानी जाती। ऊंचे भाव पर नियंत्रण का एक विकल्प यह भी हो सकता है कि उपभोक्ताओं तक वितरण में सरकारी हस्तक्षेप के जरिए सब्सिडी दी जाए।एमएसपी बाजार भाव के लिए बेंचमार्क की तरह होता है। फिलहाल ज्यादातर बाजार भाव एमएसपी से ऊपर बने हुए हैं। यह उन फसलों के लिए होता है, जिन्हें अलग-अलग मौसम (खरीफ या रबी-जाड़े की फसल) के दौरान साल में दो बार उगाया जाता है। मंत्रालय के अधिकारियों का यह भी कहना है कि सरकारी विपणन एजेंसियों की ओर से उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक दालों (उड़द, अरहर और मूंग) के भाव पहले के स्तर से नीचे आने लगे हैं।आपूर्ति में मौजूदा गिरावट को देखते हुए उपभोक्ता मंत्रालय ने राज्यों को सलाह दी है कि अन्य उपायों के अलावा वे अगले साल मार्च के बाद भी दालों के लिए स्टॉक सीमा का प्रावधान बनाए रखें। अधिकारियों का कहना है कि यह व्यवस्था कम-से-कम अगले दो वर्षों तक बरकरार रखा जाना चाहिए, जब तक मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर कम नहीं हो जाता।मंत्रालय ने दालों के निर्यात पर प्रतिबंध और इसके शुल्क रहित आयात जारी रखने की भी सिफारिश की है। गौरतलब है कि काबुली चना को छोड़कर दालों के निर्यात पर प्रतिबंध की अवधि पहले ही 31 मार्च, 2011 तक बढ़ा दी गई है। इसी तरह उम्मीद की जा रही है कि दालों के शुल्क रहित आयात की व्यवस्था भी अगले साल 31 मार्च तक बरकरार रखी जाएगी।उल्लेखनीय है कि बढ़ती हुई मांग, जो इस वर्ष 18-19 टन के स्तर पर जा पहुंची है, की आपूर्ति के लिए देश में सालाना तकरीबन 4 टन दालों का आयात किया जाता है। माना जा रहा है कि वर्ष 2009-10 के दौरान दालों का घरेलू उत्पादन स्तर लगभग 15 टन रहेगा। (बीएस हिंदी)

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