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29 नवंबर 2010

मसाला निर्यात में विदेशी चुनौती

कोच्चि November 26, 2010
मसाला निर्यात में वृद्घि की रफ्तार थोड़ी सुस्त पड़ती दिख रही है। अंतरराष्टï्रीय स्तर पर कीमतों को लेकर दूसरे देशों से मिल रही कड़ी प्रतिस्पर्धा के चलते भारतीय मसाला निर्यातकों की चुनौती बढ़ गई है। चालू वित्त वर्ष के पहले सात महीनों में मसाला निर्यात के लक्ष्य का करीब 68 फीसदी हिस्सा पूरा किया जा चुका है लेकिन निर्यात की वृद्घि दर में लगातार हो रही कमी ङ्क्षचता का कारण है। चीन, नाइजीरिया और अन्य देशों के सस्ते मसालों ने भारतीय मसालों की मांग घटा दी है। ऐसे में शेष बचे निर्यात लक्ष्य को हासिल करना आसान नहीं होगा। चालू कारोबारी साल में अप्रैल-अक्टूबर के दौरान कुल 3,685.25 करोड़ रुपये मूल्य के 3,17,800 टन मसाले का निर्यात किया गया जबकि पिछले साल की इसी अवधि के दौरान 3,260.08 करोड़ रुपये मूल्य के कुल 2,99,250 टन मसाले का निर्यात किया गया था। वित्त वर्ष 2009-10 के दौरान कुल 4,65,000 टन मसाला निर्यात का लक्ष्य रखा गया है। जिसकी कुल कीमत 5,100 करोड़ रुपये यानी 112.5 करोड़ डॉलर है। निर्यात की मात्रा के लिहाज से देखें तो चालू कारोबारी साल के पहले सात महीने यानी अप्रैल-अक्टूबर के दौरान करीब 68 फीसदी निर्यात लक्ष्य हासिल किया जा चुका है। जबकि निर्यात मूल्य के आधार पर लक्ष्य का करीब 72 फीसदी हिस्सा पूरा हो चुका है। इस दौरान काली मिर्च का निर्यात करीब 14 फीसदी गिरा। वहीं छोटी इलायची का निर्यात भी पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 25 फीसदी कम रहा। इसी तरह जायफल और जावित्री का निर्यात करीब 58 फीसदी घटा है। आंकड़ों के मुताबिक बड़ी इलायची, हल्दी, जीरा, अजवाइन, मेथी और पुदीना के निर्यात पर भी प्रतिकूल असर दिख रहा है। हालांकि मूल्य वर्धित उत्पाद यानी करी पाउडर और मसाला तेल आदि के निर्यात में मामूली तौर पर वृद्घि का रुझान है। करी पाउडर का निर्यात केवल 1 फीसदी बढ़ा। हालांकि लहसुन का निर्यात मात्रा के आधार पर रिकॉर्ड 127 फीसदी बढ़कर 15,250 टन पहुंच गया जबकि मूल्य के हिसाब से यह रिकॉर्ड 238 फीसदी बढ़ा। कारोबारियों का अनुमान है कि अगले माह भी लहसुन के निर्यात में रिकॉर्ड तेजी जारी रहेगी। मसाला निर्यात में गिरावट की मूल वजह यह है कि आक्रामक निर्यात नीति बनाने में भारत नाकाम रहा है। खासकर मसाले की कीमतों को लेकर जिस तरह दूसरे देशों से कड़ी चुनौती मिल रही है, भारत इससे निपटने में पूरी तरह विफल रहा है। दूसरे देशों की तुलना में भारतीय मसाला महंगा होने से विदेशों में इसके चाहने वाले घट रहे हैं। काली मिर्च के निर्यात की बात करें तो भारत को ब्राजील, वियतनाम और इंडोनेशिया आदि देशों से मूल्य के स्तर पर कड़ी प्रतिस्पर्धा मिल रही है। अक्टूबर के दौरान इंडोनेशिया ने 6,500 टन काली मिर्च का निर्यात किया जबकि ब्राजील ने 2,900 टन, वियतनाम ने 6,296 टन निर्यात किया। वहीं भारत से केवल 1,500 टन काली मिर्च का निर्यात किया गया। साफ जाहिर है कि इन देशों की तुलना में भारत का निर्यात कितना कम रहा। इसी तरह अदरक का निर्यात भी चीन और नाइजीरिया से प्रभावित हो रहा है। कारण यह है कि भारत की तुलना में चीन और नाइजीरिया के अदरक के भाव कम हैं। इसी तरह ग्वाटेमाल सस्ती दरों पर इलायची वैश्विक बाजारों में उतार रहा है। इससे भारतीय इलायची की मांग घट गई है। भारत से वनीला का निर्यात तो इस साल हुआ ही नहीं। हालांकि मसाला बोर्ड ने इस बात का कोई संकेत नहीं दिया है कि इस साल वनीला का निर्यात होगा या नहीं। 2008-09 में 305 टन वैनिला का निर्यात हुआ था जो 2009-10 में यह घटकर 200 टन रह गया था। (BS Hindi)

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