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25 नवंबर 2010

चीनी उद्योग में बदलाव स्वागत योग्य

November 24, 2010
देश में चीनी उद्योग का अर्थशास्त्र बदल रहा है। इसमें जो बदलाव आ रहे हैं उसका स्वागत किया जाना चाहिए। चीनी उद्योग का प्रतिनिधित्व मुख्यत: दो प्रमुख संगठन कर रहे हैं। एक भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) और दूसरा, नैशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज। हाल के दिनों में दोनों ने उद्योग के नेतृत्व में सराहनीय भूमिका निभाई है। यही कारण है कि सरकार भी चीनी जैसी अति संवेदनशील जिंस पर कोई निर्णय लेने के पूर्व पूरी सतर्कता बरत रही है। हाल के दिनों में सरकार और उद्योग संगठन के बीच अच्छा सामंजस्य देखने को मिला है क्योंकि इस्मा में तेजी से नया नेतृत्व उभर रहा है। इस साल की शुरुआत में जब चीनी के दाम आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गए थे तब सरकार और चीनी उत्पादक दोनों एक सीमा के तहत काम करने पर राजी हुए। चीनी सत्र 2009-10 में चीनी उद्योग के लिए बेहद ही खराब अनुभव रहा। सरकारी गोदाम में पहले से ही चीनी का काफी कम भंडार पड़ा था। इसके साथ ही उस साल चीनी उत्पादन में भी भारी गिरावट आई और कुल उत्पादन 1.50 करोड़ टन रहने का अनुमान लगाया गया था। इसको देखते हुए कृषि मंत्रालय और चीनी उद्योग ने मिलकर साझा योजना तैयार करने की रणनीति बनाई। कृषि मंत्री शरद पवार ने हाल ही में चीनी उद्योग की तारीफ करते हुए कहा था कि चीनी मिलों ने 2009-10 के दौरान कुल उत्पादन का 20 फीसदी लेवी के रूप में चीनी देने की हामी भरी थी। जबकि आधिकारिक तौर पर इसकी सीमा 10 फीसदी है। हालांकि चीनी मिलों के साथ हुए इस समझौते के बाद भी सरकार जन वितरण प्रणाली के तहत पर्याप्त चीनी की आपूर्ति करने में नाकाम रही थी। जबकि 2009-10 सत्र के दौरान चीनी का कुल उत्पादन अंतिम रूप से 1.89 करोड़ टन रहा था। अक्टूबर से शुरू हुए चालू चीनी सत्र में आपूर्ति को लेकर सरकार की चिंता जरूर कुछ कम हुई है। इस साल कुल उत्पादन का 10 फीसदी की दर से लेवी उगाही के बाद भी सरकार के पास चीनी का पर्याप्त भंडार रहने का अनुमान है। इसका कारण यह है कि इस साल ट्रांजेक्शन में काफी तेजी आई है। इसके अलावा इस्मा का मजबूत नेतृत्व उभरकर सामने आया है। इसने सरकार को इस बात के लिए मनाया कि कृषि विभाग का 12.5 फीसदी लेवी का प्रस्ताव वर्तमान हालात में तर्कसंगत नहीं है। खराब मौसम की वजह से देश में खाद्य मुद्रास्फीति लगातार बढ़ रही है जिससे सरकार की चिंता बढ़ गई है। इसमें खासकर चीनी की बढ़ती कीमतों का भी अहम योगदान रहा है। क्योंकि थोक मूल्य सूचकांक में चीनी का भारांक 3.6 फीसदी है। यही कारण है कि चीनी की बढ़ती कीमतों का खाद्य मुद्रास्फीति पर ज्यादा असर न पड़े इसके लिए सरकार ने थोक मूल्य सूचकांक की नई प्रणाली में चीनी का भारांक घटाकर 1.74 फीसदी कर दिया गया। जबकि इसमें कुछ नई चीजों को शामिल किया गया। मुद्रास्फीति की गणना की नई प्रणाली सितंबर 2010 से लागू हुई है।
(BS Hindi)

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