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26 फ़रवरी 2011

नरेगा के बाद राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा पर सोनिया का फोकस

देश में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे लोगों के लिए एक अत्यंत अच्छी खबर है। इस खबर का वास्ता सही अर्थे में काफी गरीब माने जाने वाले लोगों को सस्ता अनाज उपलब्ध कराने से है। हाल ही में संपन्न आम चुनाव के दौरान किए गए इस वादे को पूरा कराने का जिम्मा किसी और ने नहीं, बल्कि खुद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने लिया है। सोनिया के ताजा कदम से इसकी पुष्टि होती है। उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक पत्र लिखकर गरीबों को हर माह तीन रुपये प्रति किलो की दर से 35 किलो अनाज दिए जाने की पुरजोर वकालत की है। असल में, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी एक्ट (नरेगा) स्कीम के बाद अब राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम बनाने के महत्वाकांक्षी प्रस्ताव पर फोकस कर रही हैं। वह चाहती हैं कि यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में यह उसकी प्रमुख (फ्लैगशिप) स्कीम के रूप में उभर कर सामने आए। सोनिया ने अपने पत्र में प्रधानमंत्री से कहा है कि वह इस तरह का कानून बनाने के कांग्रेस के वादे को पूरा करने पर ध्यान दें। यही नहीं, सोनिया ने अपने पत्र में प्रस्तावित कानून की मोटी रूपरेखा भी पेश की है। यूपीए की नई सरकार बनने के बाद यह सोनिया द्वारा प्रधानमंत्री को लिखा गया संभवत: पहला पत्र है। वैसे तो पार्टी ने आम चुनाव के दौरान गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे प्रत्येक परिवार को हर महीने तीन रुपये प्रति किलो की दर से 25 किलो चावल या गेहूं मुहैया कराने का वादा किया था, लेकिन सोनिया ने अपने इस पत्र में उन्हें इसी दर पर हर माह 35 किलो अनाज उपलब्ध कराने का जिक्र किया है। सोनिया ने इस स्कीम का दायरा बढ़ाकर कई और संभावित लाभार्थियों को भी इसमें शामिल करने की बात कही है। इन लाभार्थियों में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे परिवारों और अंत्योदय योजना के दायरे में आने वाले परिवारों के अलावा किसी संकट की स्थिति में भारी मुसीबत में पड़ जाने वाले परिवारों को भी शामिल किया गया है। इस कानून के मसौदे में राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण के बाद सभी जरूरतमंदों को फोटो पहचान कार्ड जारी करने का भी प्रस्ताव किया गया है ताकि उनकी पहचान करने में आसानी हो सके। इसके अलावा प्राकृतिक आपदाओं और सांप्रदायिक हिंसा से प्रभावित लोगों को भी विशेष पहचान कार्ड जारी करने का प्रावधान इसमें है। इसके अलावा सभी राज्यों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के कंप्यूटरीकरण का प्रस्ताव भी इसमें किया गया है ताकि उस पर कड़ी नजर रखी जा सके। हालांकि, सरकारी कवायद के बावजूद एक खास बात को ध्यान में रखने की जरूरत है। इस कानून को लागू करने के लिए सरकार राशन प्रणाली का सहारा लेगी, लेकिन यह वही राशन प्रणाली है जिसके जरिए वितरित हो रहे खाद्यान्न का करीब 50 फीसदी तक हिस्सा कई राज्यों में कालाबाजारी की भेंट चढ़ जाता है। दूसरे, इस योजना का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि सरकार इस समय गरीबों के लिए जो सब्सिडी दे रही है उसमें बढ़ोतरी के बजाय बचत का रास्ता साफ होगा। यानी खाद्य सुरक्षा का यह फामरूला सरकार के लिए फायदे की सौगात लेकर आ रहा है। असल में इसे बहुत सावधानी से तैयार किया गया है।इस समय सरकार गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) के लोगों को 4.15 रुपये किलो की दर से हर माह 35 किलो गेहूं मुहैया कराती है। वहीं, चावल के लिए यह कीमत 5.65 रुपये प्रति किलो है। लेकिन देश के कुल 6.52 करोड़ बीपीएल परिवारों में से ढाई करोड़ निर्धनतम परिवार ऐसे हैं जो अंत्योदय अन्न योजना के तहत आते हैं। इन परिवारों के लिए गेहूं की कीमत दो रुपये किलो और चावल की मौजूदा कीमत तीन रुपये किलो है जबकि मात्रा 35 किलो है। इस तरह से देखा जाए तो सरकार का खाद्य सुरक्षा अधिनियम का गणित उसके पक्ष में जाता है, न कि गरीबों के पक्ष में। प्रस्तावित मात्रा के आधार पर सरकार को सालाना करीब 200 लाख टन खाद्यान्न की जरूरत पड़ेगी, जबकि मौजूदा व्यवस्था में इसके लिए 274 लाख टन खाद्यान्न की जरूरत है। (Business Bhaskar)

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