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22 फ़रवरी 2011

खेती में छिपे हैं वोटों के बीज

नई दिल्ली भारत में खेती के क्षेत्र में विदेशी निवेश की अनुमति न होने के कारण इसके विकास और आधुनिकीकरण का सारा दारोमदार सरकार पर है। जाहिर है, इस बार के बजट में भी कृषि की बढ़ती चुनौतियों का सामना करने के लिए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी को कई ठोस उपाय करने होंगे। उन्हें चुनावी गणित को ध्यान में रखते हुए इस बात के इंतजाम भी करने होंगे कि खाद्य पदार्थों की कीमत और किल्लत विकास के तमाम दावों पर भारी न पड़ जाए। जाहिर है, वित्त मंत्री के सामने खेतों में छिपे वोटों के बीज सींचने की भी चुनौती है। सीमांत किसान देश में 80 फीसदी से ज्यादा किसानों के पास दो एकड़ से ज्यादा जमीन नहीं है। ऐसे किसानों या खेतिहर मजदूरों की तादाद भी कम नहीं है, जिनके पास कोई जमीन ही नहीं है। ऐेसे किसानों की तादाद भी कम नहीं है जो हर साल फसल खराब होने के कारण मौत को गले लगा लेते हैं। साफ है कि इस विशाल आबादी को ध्यान में रखे बगैर खेती के नाम पर नीतियां बनाने और बजटीय प्रावधान करने का कोई मतलब नहीं है। इस तबके की इस बार के बजट से भी यही उम्मीद है कि उसके दर्द को समझा जाए। उसे अच्छी क्वॉलिटी के बीज, उर्वरक और अन्य जरूरी सामान सस्ते दामों पर मिल जाएं। जरूरत पड़ने पर कम दरों पर लोन मिल जाए और उसकी उपज की खरीद का कोई पुख्ता तंत्र बन जाए, ताकि उसे दो रुपये किलो के हिसाब से प्याज न बेचना पड़े या खेत में खड़े गन्ने को जलाना न पड़े। पिछले बजट में उर्वरकों पर सब्सिडी कम कर दी गई थी। इसे इस बार बढ़ाया जाएगा। जलवायु परिवर्तन हाल के एक अध्ययन में पाया गया है कि पिछले सीजन में तापमान में 2 डि.से. की बढ़ोतरी से देश के उत्तरी इलाकों में पैदावार में 4 फीसदी की कमी आ गई थी। वैज्ञानिकों को आशंका है कि बढ़ता तापमान हर तरह की फसलों पर असर डाल सकता है। इससे मॉनसून पैटर्न पर भी असर पड़ रहा है। संकेत हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग के खतरों को महसूस करते हुए इस बार के बजट में ऐसे बीजों के विकास के लिए अच्छा प्रावधान किया जाएगा जो विपरीत मौसम में भी अच्छी फसल दे सकें। बढ़ते पेट, घटती जमीन खेती की जमीन का कम होते जाना समस्याएं खड़ी कर सकता है। इस बात के इंतजाम जरूरी हंै कि कम जमीन से अधिक से अधिक फसल कैसे हासिल की जाए। इसके लिए देश में ही उन्नत किस्म के बीजों के विकास के साथ ही पेस्ट कंट्रोल और उर्वरकों के इस्तेमाल पर बड़े निवेश की जरूरत है। समझा जाता है इस मामले की गंभीरता को महसूस करते हुए सरकार कृषि क्षेत्र में रिसर्च के लिए मोटी धनराशि देने का इरादा रखती है। बढ़ सकती है लोन की रकम खेती के लिए दिए जाने वाले लोन की दरें पिछली बार 5 प्रतिशत कर दी गई थीं। किसान चाहते हैं कि इस दर को और कम किया जाए। उम्मीद है कि इसमें एक प्रतिशत की कटौती की जा सकती है। पिछली बार कृषि क्षेत्र के ऋण के लिए 3.75 लाख करोड़ रुपये रखे गए थे। इस बार यह राशि सवा चार लाख करोड़ तक हो सकती है। और भी हैं उम्मीदें फूड प्रोसेसिंग : इसके लिए पिछले बजट में 400 करोड़ रुपये का इंतजाम किया गया था। कृषि उपज की बर्बादी न हो , किसानों को अपने उत्पाद औने - पौने दामों में न बेचने पड़ जाएं , इसके लिए फूड प्रोसेसिंग सेक्टर के बजटीय प्रावधानों को दोगुना किया जा सकता है। भंडारण : भंडारण की समुचित सुविधाएं न होने के कारण हर साल लाखों टन अनाज और फल सड़ जाते हैं। सरकार भंडारण और कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं को बढ़ाने के लिए इस बजट में नए उपाय करने और समुचित धनराशि देने का इरादा रखती है। दलहन , तिलहन : दालों और तेलों की मांग और आपूर्ति में भारी अंतर बरकरार है। पिछली बार दलहन विकास के लिए अलग से 300 करोड़ का प्रावधान किया गया था। इसमें कम से कम 20 फीसदी की बढ़ोतरी की जा सकती है। तिलहनों की उपज बढ़ाने के लिए भी नए उपायों की घोषणा हो सकती है। बागवानी : देश के कई राज्यों में फलों की खेती वहां की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाती है। इसके साथ ही देश में फूलों , चाय और विदेशी सब्जियां उगाने को बढ़ावा दिया जा रहा है। इनके उत्पादक इस बार भी सरकार से उम्मीदें लगाए हुए हैं। आशा है बागवानी के लिए आवंटन बढ़ाया जाएगा। ग्रामीण इलाकों में सड़क संपर्कों की बेहतरी के लिए भी अच्छे प्रावधान किए जाने के संकेत हैं। पशुधन : उन्नत प्रजाति के पशुधन , मछली पालन और पोल्ट्री क्षेत्र के विकास और रिसर्च के लिए भी इस बजट में धनराशि बढ़ाए जाने के आसार हैं। साथ ही कृषि उपज की खपत वाली औद्योगिक इकाइयों के लिए पिछले बजट की ही तरह इस बार भी कई नई राहतों की घोषणा किए जाने के पूरे चांस हैं। वित्त मंत्री कृषि क्षेत्र को इस बजट में क्या और कितना देंगे यह तो नहीं बता सकता , लेकिन देश की चिंताओं और उम्मीदों से उनको अवगत करा दिया है। आशा है जो भी प्रावधान होंगे , किसानों और देश के हित में अच्छे ही होंगे। - शरद पवार , केंद्रीय कृषि मंत्री अगर सरकार चाहती है कि किसान जान न दें और खेती का पेशा जीवन की चुनौतियों का सामना करने की ताकत दे सके तो उसे अपनी नीतियों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। उसे कृषि क्षेत्र के लिए बजटीय प्रावधान इस तरह करने चाहिए कि देश का गरीब किसान सम्मान की जिंदगी जी सके। - देवेन्द्र शर्मा , कृषि विशेषज्ञ कृषि उपज में कई कारणों से आ रही कमी से पूरी दुनिया में खाद्य पदार्थों के दामों में कम से 2015 तक तेजी जारी रख सकती है। सभी देशों , खासकर विकासशील मुल्कों ने कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए अब भी कमर नहीं कसी तो दुनिया की खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। - रॉबर्ट बी . जोलिक , प्रेजिडेंट , विश्व बैंैंक साल 2050 तक दुनिया की आबादी 9 अरब से ज्यादा हो जाएगी और इस आबादी का पेट भरने के लिए आज से 70 फीसदी ज्यादा खाद्य पदार्थों की जरूरत पड़ेगी। विकासशील देश , खासकर दक्षिण एशिया के मुल्क , कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए जुट जाएं , वरना आने वाला समय मुश्किलों से भरा हो सकता है। - संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि स ंगठन (Navbharat times)

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