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14 अप्रैल 2011

रीयल एस्टेट सेक्टर के लिए हो स्वतंत्र नियामक

यदि आप कोई प्लॉट या फ्लैट बुक कराते हैं और किसी कारणवश बुकिंग रद्द करते हैं तो आपको बुकिंग राशि में से एक निश्चित रकम गंवानी पड़ती है। चूंकि बिल्डर के साथ आपके कांट्रैक्ट में ऐसा उल्लेख होता है। दूसरी ओर, यदि कोई बिल्डर कांट्रैक्ट के मुताबिक निर्धारित समय पर फ्लैट या प्लॉट नहीं सौंपता, गुणवत्ता या लोकेशन में हेरफेर करता है और इस आधार पर कोई उपभोक्ता कांट्रैक्ट रद्द कर रिफंड मांगता है तो बिल्डर रिफंड करने से मना कर देता है। रीयल एस्टेट सेक्टर को रेग्युलेट करने के लिए अगल से कानून और स्वतंत्र नियामक नहीं होने से उपभोक्ताओं को ऐसे अनुचित व्यापार का शिकार होना पड़ता है। ऐसे ही एक मामले में शीर्ष उपभोक्ता अदालत ने पीड़ित के पक्ष में फैसला दिया और दोषी सोसायटी को ब्याज सहित रिफंड देने का फैसला दिया।रीयल एस्टेट को रेग्युलेट करने के लिए बने कानूनसचिव, दक्षिण पश्चिम रेलवे हाउसिंग बिल्डिंग कोआपरेटिव सोसायटी बनाम के. वेलयुद्धन (आरपी नं. 454, 2011, फैसला 24 फरवरी 2011) के मामले में शीर्ष उपभोक्ता अदालत ने फैसला दिया कि चूंकि हाउसिंग सोसायटी ने तय वादे के अनुरूप प्लॉट नहीं सौंपा, इसलिए उसे शिकायतकर्ता को रिफंड ही नहीं बल्कि ब्याज भी देना होगा। के. वेलयुद्धन दक्षिण पश्चिम रेलवे हाउसिंग कोआपरेटिव सोसायटी के सदस्य बने और एक प्लॉट के लिए 2.4 लाख रुपये जमा किए। लेकिन जब सोसायटी ने वादे के मुताबिक बिना लेआउट डेवलप किए प्लॉट आवंटित किया तो उन्होंने इसे लेने से इनकार कर दिया। वेलयुद्धन ने सोसायटी से अपनी डिपाजिट राशि जमा तिथि से ब्याज सहित लौटाने को कहा। सोसायटी ने कांट्रैक्ट का हवाला देते हुए ब्याज देने से इनकार कर दिया। सोसायटी ने यह भी तर्क दिया कि चूंकि वह ‘नो प्राफिट, नो लॉस’ के सिद्धांत पर कार्य करती है, इसलिए एडवांस डिपाजिट पर ब्याज लौटाने का कोई प्रावधान नहीं है। इसे नकारते हुए शीर्ष उपभोक्ता अदालत ने निचली अदालतों के फैसले को बरकरार रखा और शिकायतकर्ता को उसकी एडवांस डिपाजिट पर 10 फीसदी ब्याज का भुगतान करने का फैसला दिया। अपने एक ऐतिहासिक फैसले (लखनऊ डेवलपमेंट अथारिटी बनाम एमके गुप्ता, सीए नं. 6237-1990, फैसला 5 नवंबर 1993) में सुप्रीम कोर्ट ने भी स्पष्ट किया है कि चूंकि बिल्डर ने निर्धारित समय पर संपत्ति की सुपुर्दगी नहीं दी, इसलिए उपभोक्ता मुआवजा पाने का हकदार है। ऐसे में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए रीयल एस्टेट सेक्टर को रेग्युलेट करने के लिए कानून और स्वतंत्र नियामक की जरूरत है। (Amar Ujala)

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