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02 जून 2011

मुश्किल में हैं बासमती चावल के निर्यातक

चंडीगढ़ May 31, 2011
देश भर के बासमती निर्यातक प्रचुरता की समस्या से दो-चार हो रहे हैं। बासमती उत्पादक क्षेत्रों (पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश) में बासमती धान की बंपर पैदावार के चलते चावल निर्यातकों की सौदेबाजी की शक्ति कमजोर हो गई है क्योंकि ईरान व पश्चिम एशिया के खरीदारों की तरफ से भुगतान की समस्या से जूझ रहे हैं।नवंबर 2008 में पूसा-1121 किस्म को बासमती में शामिल किए जाने के बाद बासमती धान के ज्यादा उत्पादन में काफी मदद मिली है। ऑल इंडिया राइस एक्सपोट्र्स एसोसिएशन के सचिव और डी डी इंटरनैशनल प्राइवेट लिमिटेड (बासमती के अग्रणी निर्यातकों में से एक) के निदेशक गौरव भाटिया के मुताबिक, पूसा-1121 से ज्यादा पैदावार मिलने और इसकी बुआई में कम सिंचाई की आवश्यकता ने ज्यादातर किसानों को इस फसल के प्रति उत्साहित किया है। कम अवधि में इस किस्म ने निर्यात बाजार में अपनी पैठ बना ली है, लेकिन बासमती की अति आपूर्ति ने निर्यातकों की सौदेबाजी की ताकत को प्रभावित किया है।निर्यातकों के पास ज्यादा स्टॉक होने के चलते हर कोई जल्द से जल्द इसका निर्यात कर देना चाहता है और भुगतान के मामले में भी काफी लचीला रुख अपना रहा है। 10 से 15 फीसदी अग्रिम भुगतान की बजाय विभिन्न निर्यातक फिलहाल 120 दिन के लिए उधार दे रहे हैं। चूंकि इस जिंस में मुनाफा काफी कम है, लिहाजा यह इसकी उपयुक्तता को प्रभावित कर रहा है। एल टी फूड्स लिमिटेड के संयुक्त प्रबंध निदेशक रजनीश अरोड़ा ने कहा कि वैश्विक बाजार में मांग में लगातार 10 फीसदी की बढ़ोतरी होती रही है, लेकिन कीमतों पर दबाव है। उन्होंने कहा कि ईरान चावल का सबसे बड़ा खरीदार है और अमेरिका से इसके संबंध मधुर नहीं हैं, लिहाजा ईरान में बैंकिंग गतिविधियां प्रभावित हो रही है। ईरान से भुगतान में देरी की वजह से निर्यातक मुश्किल में फंस गए हैं। उन्होंने कहा कि ईरान की मुद्रा रियाल की कमजोरी और भारतीय रुपये की मजबूती से भी निर्यातकों का मुनाफा सिकुड़ गया है। पिछले साल 1050 करोड़ रुपये का कारोबार करने वाले एल टी फूड्स का इरादा इस साल इसे बढ़ाकर 1250 करोड़ रुपये करने का है और कुल कारोबार में निर्यात का योगदान करीब 50 फीसदी का है। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में भारतीय बाजार की बढ़त दर वैश्विक बाजार के मुकाबले करीब दोगुनी है। ऐसे में निर्यातक थोड़ी अतिरिक्त कोशिश से घरेलू उपभोक्ताओं को अपनी ओर खींच सकते हैं और निर्यात बाजार की कमी की भरपाई कर सकते हैं।कुछ निर्यातक ब्राजील, मैक्सिको और अर्जेंटीना में समानांतर बाजार की तलाश कर रहे हैं। एक निर्यातक ने कहा कि इन बाजारों में माल खप सकता है, लेकिन वहां प्रवेश संबंधी कुछ अवरोध हैं। उन्होंने कहा कि हम इन देशों में रोड शो आयोजित करने की योजना बना रहे हैं ताकि स्थानीय चैनल पार्टनर तक अपनी पहुंच बना सकेंऔर मौजूदा बाजार के विकल्प के तौर पर यहां अपना माल बेच सकें।निर्यातकों के मुताबिक, पिछले तीन साल में वैश्विक बाजार में चावल की कीमत 2500 रुपये प्रति क्विंटल से घटकर 1800 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गई है। यह साल उनके लिए कठिन हो सकता है, लेकिन वे नई रणनीति के जरिए या तो नए बाजार में प्रवेश करने पर विचार कर रहे हैं या फिर खुदरा ब्रांड घरेलू बाजार में पेश करने पर विचार कर रहे हैं। (BS Hindi)

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