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17 अक्तूबर 2011

खाद्य सुरक्षा में रोजगार

September 21, 2011
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने खाद्य सुरक्षा विधेयक, 2011 का जो मसौदा पेश किया है वह प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) के मसौदे के बजाय सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) के मसौदे के ज्यादा समान है। इसके बावजूद सार्वजनिक चर्चा के लिए पेश इस विधेयक का स्वागत किए जाने की उम्मीद कम ही है। एनएसी के मसौदे में मुख्य प्रस्ताव यह है कि प्रस्तावित कानून भारी सब्सिडी पर अनाज मुहैया कराने से आगे निकलकर अभावग्रस्त लोगों को पका भोजन भी मुहैया कराएगा। ऐसे लोगों में गरीब बच्चे, गर्भवती महिलाएं, स्तनपान कराने वाली मांएं और ऐसे लोग भी शामिल होंगे जिनके पास रहने का ठिकाना तक नहीं है। यह काम बगैर लागत और व्यावहारिक कठिनाइयों का खयाल रखे किया जाएगा। अगर सरकार खाद्यान्न अथवा भोजन की आपूर्ति करने में असमर्थ रहती है तो विधेयक में नकद क्षतिपूर्ति का भी प्रावधान है। आश्चर्य की बात नहीं कि इस सारी कार्रवाई का वित्तीय बोझ राज्यों पर डाला गया है! इस बात को देखते हुए कि देश के अधिकांश गरीब उन प्रांतों में रहते हैं जिनके पास पर्याप्त वित्तीय संसाधन नहीं हैं, ऐसे में स्पष्ट नहीं है कि नकदी की तंगी से जूझ रहे राज्य कैसे इसे हकीकत में बदलेंगे। अनुमान है कि 75 फीसदी ग्रामीण और 50 फीसदी शहरी परिवार इस विधेयक के प्रावधानों के दायरे में आएंगे। इनमें से 46 फीसदी ग्रामीण और 28 फीसदी शहरी परिवारों को प्राथमिकता की जरूरत होगी। प्राथमिकता प्राप्त लाभार्थियों को प्रति माह प्रति व्यक्ति 7 किलोग्राम अनाज तथा सामान्य लाभार्थियों को 3 किलो अनाज दिया जाएगा। कृषि और खाद्य मंत्री ने इन प्रस्तावों पर आपत्ति जताई थी। क्योंकि अनाज की आवश्यकता को देखते हुए ऐसे समय में हालत खराब हो सकती है जब मॉनसून की समस्या जैसे कारणों से देश में खाद्यान्न उत्पादन में गिरावट आ जाती है। मसौदा विधेयक में प्राथमिकता वाले परिवारों को चावल 3 रुपये प्रति किलो, गेहूं 2 रुपये प्रति किलो तथा दाल 1 रुपये प्रति किलो की दर पर मुहैया कराने का प्रस्ताव है। सामान्य परिवारों के लिए यह दर न्यूनतम समर्थन मूल्य के 50 फीसदी से अधिक नहीं होगी। कई राज्यों में गरीबों को पहले ही 2 रुपये प्रति किलो की दर पर चावल मिल रहा है। तमिलनाडु में इसकी दर 1 रुपये प्रति किलो है। इतना ही नहीं विधेयक में प्राथमिकता वाले परिवारों की पहचान के मानक भी स्पष्ट नहीं किए गए हैं। इसका निर्धारण केंद्र पर छोड़ दिया गया है। इससे राज्यों में चिढ़ पैदा हो सकती है क्योंकि उन्हें लाभार्थियों की पहचान करके उन तक अन्न या भोजन पहुंचाना होगा। मसौदे में कुछ स्वागतयोग्य उपाय सुझाए गए हैं। खासतौर पर नकद राशि देने के मामले में किसी महिला को परिवार का मुखिया बनाना और इसके क्रियान्वयन के सामाजिक अंकेक्षण की व्यवस्था। इन बातों के अलावा यह भी सच है कि नई योजना का क्रियान्वयन उसी अक्षम और लीकेज की आशंका वाली लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस)के जरिए करना होगा। टीपीडीएस में सुधार के जरिए गड़बडिय़ां रोकने की पहल बहुत कम राज्यों ने की है। मसौदा विधेयक में विशालकाय अतिरिक्त बुनियादी ढांचा चाहा गया है जिसमें राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा आयोग, राज्य खाद्य सुरक्षा आयोग और जिला स्तर पर खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना शामिल है। खाद्य वितरण को लेकर नौकरशाही का ऐसा विस्तार और अधिक रोजगार सृजित करेगा और सार्वजनिक खर्च में भी इजाफा करेगा। यह देखा जाना है कि क्या यह जरूरतमंदों के लिए खाद्य सुरक्षा भी मुहैया करा पाएगा। (BS Hindi)

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