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03 नवंबर 2011

चावल के बल कूटनीति!

नई दिल्ली November 02, 2011
भारत के लिए चावल अपने पूर्वी और दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के साथ संबंधों को मजबूत करने के एक कूटनीतिक हथियार के रूप में उभरा है।यह जिंस इंडोनेशिया, थाईलैंड और बांग्लादेश जैसे देशों के निवासियों का प्रमुख भोजन है। कुछ महीने पहले भारत ने कूटनीतिक आधार पर 20,000 रुपये प्रति टन की स्टैंडर्ड कीमत पर बांग्लादेश को 3,00,000 टन चावल निर्यात करने की मंजूरी दी थी। सरकार एक बार फिर इसी तर्ज पर चावल निर्यात इच्छा जताई है, लेकिन इस बार इंडोनेशिया को। इंडोनेशिया के एक प्रतिनिधिमंडल ने अपनी खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिए खाद्य मंत्री से चावल निर्यात का दबाव बनाने का आग्रह किया है। पिछली बार की तरह इस बार भी चावल निर्यात की सहमति प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पूर्वी एशिया और भारत-आसियान सम्मेलन में भाग लेने बाली जाने से पहले बनी है। प्रधानमंत्री 17 से 20 नवंबर के बीच इंडोनेशिया और सिंगापुर की यात्रा पर रहेंगे। खाद्य मंत्री के वी थॉमस ने एक बयान में कहा कि इस समय भारत के पास खाद्यान्न का भरपूर भंडार है और वह इंडोनेशिया का अनुरोध मान सकता है। इस साल जुलाई में मंत्रियों के समूह ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ढाका यात्रा से ऐन पहले राजनयिक उपाय के जरिए बांग्लादेश को चावल निर्यात की मंंजूरी दी थी। इस राहत के कारण बिल्कुल साफ है। देश में रिकॉर्ड फसल और खरीद के कारण चावल का भंडार जरूरत से ज्यादा है। गैर-बासमती चावल का निर्यात खुले सामान्य लाइसेंस के तहत करने की इजाजत दी गई है। मगर इस पर गैर-सरकारी तौर पर करीब 20 लाख टन की सीमा रहेगी। यह निर्यात निजी व्यापारी कर रहे हैं।आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार एक अक्टूबर 2011 तक देश के केंद्रीय पूल में 5.17 करोड़ टन खाद्यान्न का भंडार था। इसमें चावल का स्टॉक 2.03 करोड़ टन और गेहूं का स्टॉक करीब 3.14 करोड़ टन था। यह स्टॉक इस तारीख तक की बफर स्टॉक और स्ट्रैटजिक रिजर्व जरूरत से दोगुने से अधिक है। वहीं, फसल विपणन वर्ष 2011-12 के लिए खरीद जारी है, इससे स्टॉक पर और दबाव बढ़ेगा। इंडोनेशियाई प्रतिनिधिमंडल इसकी नैशनल लॉजिस्टिक एजेंसी सुरारतो एलीमोसो के चेयरमैन की नेतृत्व में आया है। (BS Hindi)

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