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28 नवंबर 2011

'छोटे कारोबारी हो जाएंगे एफडीआई से तबाह'

खुदरा क्षेत्र में एफडीआई को अनुमति दिए जाने के सरकार के फैसले का भारी विरोध करते हुए फेडरेशन ऑफ एसोसिएशन ऑफ महाराष्ट्र (व्यापार, परिवहन एवं छोटे उद्यम से जुड़े संघों की शीर्ष संस्था) के अध्यक्ष मोहन गुरनानी ने संजय जोग के साथ बाचतीत में कहा कि इस फैसले से सभी क्षेत्रों से जुड़े छोटे कारोबारी पूरी तरह तबाह हो जाएंगे। पेश है प्रमुख अंश. / November 27, 2011
फेडरेशन सरकार के इस निर्णय का विरोध क्यों कर रहा है? वहीं इसके पीछे सरकार की दलील है कि इससे देश के खुदरा बाजार का कायाकल्प होगा। भारत सरकार देश को गुमराह कर रही है। इससे देश के खुदरा बाजार में भारी बदलाव तो आएगा लेकिन इससे छोटे व्यावसायी विशेषकर कपड़े के छोटे कारोबारी पूरी तरह बर्बाद हो जाएंगे। बहुराष्ट्रीय कंपनियां शुरुआत में ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए काफी कम दाम पर सामान बेचेंगी। बाद में जब बाजार पर इनका एकाधिकार हो जाएगा तो वे मनमाने तरीके से दाम बढ़ाएंगी। यानी इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों से पहले छोटे कारोबारियों को और बाद में ग्राहकों को भी नुकसान होगा। क्या आप सरकार के इस तर्क से सहमत नहीं हैं कि इससे देश में बेरोजगारी और विस्थापन की समस्या नहीं उत्पन्न होगी? इसमें कोई दो राय नहीं कि खुदरा क्षेत्र में विदेशी कंपनियों के सीधे प्रवेश से बड़े पैमाने पर छोटे कारोबारियों का धंधा चौपट हो जाएगा और वे बेराजगारी के दलदल में फंस जाएंगे। इससे न केवल छोटे दुकानदारों की रोजी-रोटी खतरे में पड़ेगी बल्कि इसका असर छोटे और मध्यम औद्योगिक इकाइयों, मजदूरों, कारीगरों और आखिरकार उपभोक्ताओं पर भी पड़ेगा। मुझे लगता है इस मामले में सरकार गलत आंकड़े पेश कर रही है। अमेरिका, यूरोप का हाल देखें, वहां छोटी दुकानें और कारोबार पूरी तरह से खत्म हो गए हैं। सरकार का मानना है कि इससे ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के निर्माण में मदद मिलेगी?सरकार किस तरह के बुनियादी ढांचे के निर्माण की बात कर रही है? ये कंपनियां देश में कितने कोल्ड स्टोर बनाएंगी? क्या आपको लगता है कि भारत के लोग कोल्ड स्टोर बनाने में सक्षम नहीं हैं सरकार का कहना है कि वे कृषि उत्पाद खरीदेंगी जिससे किसानों को फायदा होगा। हालांकि इससे छोटे करोबारियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस तर्क से आप कितने सहमत हैं? कंपनियां किसानों से कम दाम पर कृषि उत्पाद खरीदेंगी। शुरुआत में उसे कम दाम पर बाजार में बेचेंगी। जिससे छोटे दुकानदारों के लिए प्रतियोगिता कर पाना मुश्किल होगा। एकल ब्रांड खुदरा दुकानों में 51 फीसदी निवेश करने वाली विदेशी कंपनियों को अपने उत्पाद का काम से कम एक तिहाई हिस्सा छोटे घरेलू उद्योगों या ग्रामीण क्षेत्रों से खरीदना होगा। इस पर आपकी क्या अपत्ति है? केवल एक तिहाई हिस्सा, बाकी दो तिहाई हिस्से का क्या होगा? बाकी हिस्से का सामान कंपनियां अपने देश या किसी अन्य स्रोतों से लाएंगी। क्या इससे देश के छोटे और मझोले उद्योग प्रभावित नहीं होंगे? यानि सरकार के इस फैसले से अपने देश के छोटे कारोबारी समेत छोटे व मध्यम दर्जे के उद्योगों को भी नुकसान होगा। (BS Hindi)

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