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12 जनवरी 2012

उर्वरक की ऊंची लागत से मुनाफे को चपत

कच्चे कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी और विनिमय दरों की विपरीत चाल की वजह से मिश्रित उर्वरकों की कीमतें करीब 25 फीसदी बढ़ी हैं। लिहाजा तीसरी तिमाही में उर्वरक कंपनियों की शुद्ध बिक्री में 20 फीसदी की उछाल की संभावना है। कीमतों में हालिया बढ़ोतरी को शामिल करते हुए गैर-यूरिया उर्वरकों की कीमतें पिछले एक साल में 80 फीसदी से ज्यादा बढ़ी हैं।
बाटलीवाला ऐंड करनानी के विश्लेषक ने कहा कि पश्चिम एशिया में स्थिति सामान्य होने के बाद प्रमुख कच्चे माल मसलन फॉस्फोरिक एसिड का आयात स्थिर हो रहा है। डॉलर में मजबूती के चलते पडऩे वाला प्रभाव थोड़ा कम हुआ है क्योंकि आपूर्ति करने वाली कंपनियां कच्चे माल की कीमतों में दिसंबर 2011 से कटौती पर सहमत हुई हैं।
ऑपरेटिंग मार्जिन पर अभी दबाव है और रुपये में आई गिरावट के चलते यह 1.25 फीसदी नीचे है। इस वजह से आयातित उर्वरकों की लागत में बढ़ोतरी की संभावना है। एक ओर जहां चंबल फर्टिलाइजर, जीएनएफसी और जीएसएफसी के मुनाफे पर ज्यादा दबाव होगा, वहीं टाटा केमिकल्स के मुनाफे में सुधार की संभावना है।
उर्वरक विनिर्माताओं के शुद्ध मुनाफे में महज 2 फीसदी की उछाल की संभावना है और इसकी वजह सब्सिडी के भुगतान में देरी के चलते ब्याज पर बढ़ता खर्च है। शिपिंग कारोबार में चंबल फर्टिलाइजर को नुकसान, कैपरोलेक्टम सेगमेंट में जीएसएफसी का कम मुनाफा और उच्च बेस इफेक्ट के चलते कोरोमंडल इंटरनैशनल, टाटा केमिकल्स और जुआरी एग्रो के शुद्ध मुनाफे में हुई 20 फीसदी की
ज्यादा बढ़ोतरी खत्म हो जाने
की संभावना है।
ऐडलवाइस रिसर्च के मुताबिक कच्चे माल आदि की आसान उपलब्धता के चलते मिश्रित उर्वरक की मात्रा स्थिर रहने की संभावना है, वहीं यूरिया के मामले में यह नरम रह सकता है। आयात के चलते डीएपी व एमओपी की उपलब्धता में सुधार हुआ है, लिहाजा उर्वरकों की विनिर्मित मात्रा नरम रह सकती है, वहीं कारोबारी उर्वरक की मात्रा मजबूत रह सकती है।
इस बीच, आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज रिसर्च की रिपोर्ट में कहा गया है कि नीतिगत मोर्चे पर सरकार ज्यादा काम नहीं कर पाई है। राजकोषीय घाटे की स्थिति में सुधार के लिए पी ऐंड के उर्वरकों पर सब्सिडी में कटौती और इस क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए नई यूरिया निवेश नीति अब तक पटरी पर नहीं आ सकी है।
विश्लेषकों ने कहा कि प्रस्तावित एनपीके सब्सिडी में कटौती यूरिया को विनियंत्रित किए बिना नहीं हो पाएगी और इससे उर्वरक के उपभोग में असंतुलन पैदा हो सकता है क्योंकि सब्सिडी में कटौती के बाद यूरिया के मुकाबले डीएपी छह गुना महंगा हो जाएगा। इससे मिट्टी भी असंतुलित हो सकती है और यह स्थिति 1992 की जैसी होगी जब गैर-यूरिया उत्पाद पूरी तरह विनियंत्रित कर दिए गए थे। (BS Hindi)

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