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10 जनवरी 2012

घाटा कम करने के लिए चीनी रिफाइनरियों ने घटाई क्षमता

घरेलू चीनी रिफाइनरियां बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं, क्योंकि स्थानीय बाजार में चीनी की अत्यधिक आपूर्ति के कारण वे अपनी आधी उत्पादन क्षमता पर परिचालित हो रही हैं। पिछले साल के बचे स्टॉक और इस साल ज्यादा उत्पादन से देश में चीनी की उपलब्धता में भारी बढ़ोतरी हुई है। इसके नतीजतन रिफाइनरियां भविष्य में शोधन के लिए घरेलू कच्ची चीनी का स्टॉक कर रही हैं।
आमतौर पर भारत में चीनी रिफाइनरियां अक्टूबर-नवंबर से शुरू होने वाले चीनी सीजन के पहले छह महीनों में कच्ची चीनी का स्टॉक करती हैं। वे कच्ची चीनी का स्टॉक सीजन के शेष छह महीनों के दौरान प्रसंस्करण के लिए करती हैं। यह स्टॉक घरेलू मिलों से खरीद और आयात के जरिए किया जाता है।
श्री रेणुका शुगर्स लिमिटेड (एसआरएसएल) के प्रबंध निदेशक और इस्मा के तात्कालिक पूर्व अध्यक्ष नरेंद्र मुरुकुंबी ने कहा, 'इस समय घरेलू मूल की कच्ची चीनी आयातित कच्ची चीनी से 60 डॉलर प्रति टन सस्ती है। कमजोर सीजन के दौरान चीनी के प्रसंस्करण के लिए अभी कच्ची चीनी का स्टॉक करना तर्कसंगत है। इसलिए हमारी रिफाइनरियां अपनी स्थापित क्षमता के 50 फीसदी पर ही चल रही हैं।'
सामान्य तौर पर पेराई सीजन के दौरान घेरलू रिफाइनरियां अपनी क्षमता के 70-75 फीसदी पर परिचालित होती हैं। विदेशों से भारत में आने वाली कच्ची चीनी की लागत 580 डॉलर प्रति टन आ रही है, जबकि घरेलू स्तर पर यह 520 डॉलर प्रति टन की दर पर उपलब्ध है। इस समय पेराई सीजन चल रहा है और छोटी रिफाइनरियां घरेलू मिलों से कच्ची चीनी खरीदकर रिफाइंड चीनी उत्पादित कर रही हैं। इसके कारण देश में सफेद चीनी की आपूर्ति में भारी बढ़ोतरी हुई है।
देश में चालू सीजन में 31 दिसंबर 2011 तक चीनी का उत्पादन 17 फीसदी बढ़ोतरी के साथ 75.78 लाख टन दर्ज किया गया है, जो पिछले वर्ष की समान अवधि में 64.58 लाख टन था। उत्पादन में प्रमुख बढ़ोतरी भारत के तीन सबसे बड़े उत्पादक राज्यों-महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में दर्ज की गई है। इस्मा द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान उत्पादन में हुई वृद्धि में उत्तर प्रदेश का अहम योगदान रहा है, जहां संदर्भित अवधि में चीनी उत्पादन पिछले साल की समान अवधि से 5 लाख टन अधिक रहा है। महाराष्ट्र में उत्पादन 3 लाख टन और कर्नाटक में 2 लाख टन अधिक रहा है।
31 दिसंबर 2011 को पेराई कर रहीं चीनी फैक्टरियों की संख्या 503 थी, जो पिछले साल इस तारीख को 490 ही थी। आने वाले समय में संभावित नुकसान से बचने के लिए रिफाइनरियों ने चीनी का आयात बंद कर दिया है। एसआरएसएल कच्ची चीनी के आयात के बजाए खुले सामान्य लाइसेंस के तहत रिफाइंड चीनी का निर्यात कर रही है। उद्योग के एक विशेषज्ञ ने कहा, 'कच्ची चीनी का प्रसंस्करण कर इसे सफेद चीनी बनाने के लिए प्रतिस्पर्धी कीमतों का होना जरूरी है। इसलिए वर्तमान घरेलू कीमतों पर स्टॉक को रोके रखना ज्यादा बेहतर है। आज घरेलू कीमतें विश्व में सबसे कम हैं। कीमतों के स्थिर होने या सुधरने से रिफाइनरियां परिचालन क्षमता बढ़ाएंगी।' (BS Hindi)

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