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28 जनवरी 2012

चीनी के विनियंत्रण की कोशिश

चीनी उद्योग को विनियंत्रित करने से जुड़े मसलों की समीक्षा के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शुक्रवार को आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी रंगराजन की अध्यक्षता में विशेषज्ञ समिति का गठन किया। यह फैसला ऐसे समय लिया गया है जब देश के सबसे बड़े गन्ना उत्पादक और दूसरे सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव होने को हैं तथा सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय के चुनाव होने जा रहे हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के बयान के मुताबिक, 'यह समिति चीनी उद्योग को विनियंत्रित करने से जुड़े सभी मसलों पर विचार करेगी। समिति को जल्द से जल्द अपना कार्य पूरा कर प्रधानमंत्री को रिपोर्ट सौपने को कहा गया है।' हालांकि समिति को रिपोर्ट सौंपने के लिए कोई समय सीमा नहीं तय की गई है।
इस समिति के अन्य सदस्यों में वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु, कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) के अध्यक्ष अशोक गुलाटी, पूर्व खाद्य एवं कृषि सचिव टी नंद कुमार, केंद्रीय कृषि सचिव और केंद्रीय खाद्य सचिव शामिल हैं। इस फैसले का स्वागत करते हुए उद्योग जगत ने कहा है कि समिति की अनुशंसा महज कागजों तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए जैसा कि पूर्व में टुटेजा समिति और थोराट समिति के साथ हुआ। वर्ष 2010 के मध्य में पूर्व केंद्रीय खाद्य मंत्री शरद पवार की ओर से कुछ कोशिशें की गई थीं, जब वह इस मामले को लेकर प्रधानमंत्री से मिले थे।
बजाज हिंदुस्तान के बाद देश के दूसरे सबसे बड़े चीनी उत्पादक और 10 चीनी मिलों के मालिक बलरामपुर चीनी के प्रबंध निदेशक विवेक सरावगी का कहना है, 'बहुत सारी समितियों और विशेषज्ञों ने पहले चीनी उद्योग के विनियंत्रण के लिए एकमत से सुझाव दिए थे। हालांकि इन सुझावों को सामने ही नहीं आने दिया गया। इस बार समिति की सिफारिशें तेजी से लागू की जानी चाहिए।' इंडियन शुगर मिल एसोसिएशन के महानिदेशक अविनाश वर्मा को लगता है कि इस नई समिति में अनुभवी लोग हैं और वे चीनी उद्योग के बारे में अच्छे से जानते हैं। वह कहते हैं, 'हम उम्मीद करते हैं कि समिति जल्द ही अपने सकारात्मक सुझाव हमारे सामने रखेगी जिसमें उद्योग के साथ-साथ किसानों के हित का भी ध्यान रखा जाएगा।'
चीनी उत्पादन में करीब 45 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाली सहकारी चीनी मिलों ने भी सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है। नैशनल फेडरेशन ऑफ को-ऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज के प्रबंध निदेशक विनय कुमार कहते हैं, 'फिलहाल हम जरूरत से ज्यादा उत्पादन कर रहे हैं इसलिए विनियंत्रण के लिए यह सही समय है। हम उम्मीद करते हैं कि इस बार सुझावों को जरूर लागू किया जाएगा।' चीनी उद्योग देश के सबसे नियंत्रित उद्योगों में से एक है। सरकार पिछले सालों के दौरान स्टील और सीमेंट जैसे उद्योगों के नियंत्रण को सरल कर दिया। चीनी उद्योग पर नियंत्रण कोटे के मासिक आवंटन और लेवी चीनी की व्यवस्था के जरिए किया जाता है। चीनी मिलें सिर्फ कोटे की व्यवस्था के तहत ही खुले बाजार में चीनी बेच सकती हैं। केंद्र सरकार का चीनी निदेशालय हर महीने कोटे का निर्धारण करता है और मिलों के हिसाब से बिक्री कोटा तय करता है। एक महीने के भीतर निर्धारित कोटा न बेच पाने पर पेनल्टी का भी प्रावधान है। लेवी चीनी के तहत मिलों को कुल उत्पादन का 10 फीसदी बाजार से कम कीमतों पर सरकार को बेचना होता है। (BS Hindi)

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