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09 फ़रवरी 2012

खाद्य कानून पर उभरे मतभेद

वित्त वर्ष 2012-13 का बजट आने से पहले प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा बिल को लेकर कृषि मंत्रालय और खाद्य मंत्रालय द्वारा अपने मतभेद जाहिर करने के बाद बुधवार को वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने बढ़ती सब्सिडी को लेकर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि एक वित्त मंत्री के तौर पर सरकार द्वारा वर्तमान में झेले जा रहे सब्सिडी के बोझ और भविष्य में आने वाले भार को देखते हुए उनकी नींद उड़ जाती है। उन्होंने कहा, 'वित्त मंत्री होने के नाते जब मैं दी जाने वाली सब्सिडी के बारे में सोचता हूं तो इसमें कोई शक नहीं है कि मेरी रातों की नींद उड़ जाती है।'
उन्होंने कहा कि मनरेगा और शिक्षा के अधिकार जैसे कानूनी हक के जरिये लोगों की सशक्तिकरण की आकांक्षाओं पर खरा उतरना पड़ेगा। मुखर्जी ने कहा, 'अब आजादी के 65 सालों बाद लोग इंतजार नहीं करना चाहते हैं। लोग अब सशक्त होना चाहते हैं। न सिर्फ कागजी तौर पर बल्कि कानूनी हक के जरिये भी। खाद्य सुरक्षा कानून के पीछे भी यही कारण है।' सब्सिडी के बढ़ते बोझ को लेकर वित्त मंत्री का यह बयान और भी महत्त्वपूर्ण इसलिए हो जाता है क्योंकि वर्ष 2012-13 के आम बजट पेश करने के कुछ हफ्तों पहले ही दिया है। सरकार को वर्ष 2011-12 के दौरान सब्सिडी के बोझ के कारण बजट अनुमान से 1 लाख करोड़ रुपये अधिक खर्च करने होंगे। वित्त मंत्री ने बयान से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने में पेश आ रही मंत्रालय की समस्याओं की ओर भी इशारा किया है। कृषि मंत्रालय का अनुमान है कि इस विधेयक से खाद्य सब्सिडी में 1,20,000 करोड़ रुपये का इजाफा हो जाएगा। न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ जाने से खाद्य सब्सिडी में बढ़ोतरी की उम्मीद है। जबकि खाद्य मंत्रालय का मानना है कि सब्सिडी में सिर्फ 28,000 करोड़ रुपये का इजाफा होगा। कृषि मंत्री शरद पवार का कहना है कि खराब सार्वजनिक वितरण प्रणाली के कारण खाद्य सुरक्षा विधेयक कभी अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकेगा। पवार ने किसानों को सरकारी खरीद एजेंसियों द्वारा खाद्य फसलों के उत्पादन के लिए दी जाने वाली गारंटी के न मिल पाने का मामला भी उठाया। जिसके कारण हतोत्साहित होकर किसान गैर अनाज फसलों का उत्पादन कर रहे हैं। सब्सिडी खर्चे के बढ़ जाने के डर से खाद्य सुरक्षा विधेयक को संशय जताए जाने पर खाद्य मंत्री केवी थॉमस कहते हैं कि 2011 की सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना पूरी होने के बाद नये लाभार्थियों के जुड़ जाने के बाद किसी भी हाल में सब्सिडी का खर्च तकरीबन 85,000 करोड़ रुपये बढऩा तय है, चाहे खाद्य कानून बने या नहीं। थॉमस कहते हैं, 'नई जनगणना पूरी होने के बाद खाद्य सब्सिडी का खर्च करीब 85,000 करोड़ रुपये बढऩा तय है। चाहे कानून बने या नहीं।' (BS Hindi)

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