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28 फ़रवरी 2012

घटती मांग से कपास में बढ़त की संभावना कम

विदेशी बाजारों में मांग और दाम कमजोर रहने तथा देसी धागा मिलों की हल्की खरीदारी से कपास की कीमतें लगातार गिर रही हैं। महीने भर के भीतर हाजिर और वायदा बाजार में इसके भाव 10 फीसदी लुढ़क चुके हैं। हाजिर बाजार में ग्राहक नहीं होने पर किसान सस्ते में माल बेच रहे हैं और वायदा बाजार में बिकवाली की वजह से कपास और कॉटनसीड लोअर सर्किट में फंसे हैं।
मंद मांग के बीच कपास (शंकर-6) का हाजिर भाव महीने भर में 37,100 रुपये से लुढ़कर 34,000 रुपये प्रति कैंडी के नीचे चले गए हैं। वायदा में आज एनसीडीईएक्स पर कपास और कॉटन के सभी अनुबंधों पर 4 फीसदी गिरावट के साथ लोअर सर्किट लगा। दरअसल विदेशी बाजार में कीमत गिर गई हैं और पिछले साल के उतारचढ़ाव झेल चुकी देसी कंपनियां भी ज्यादा खरीदारी नहीं कर रही हैं। वायदा बाजार में एक्सपायरी की तारीख नजदीक होने के कारण निवेशक माल जल्दबाजी में माल बेच रहे हैं।
कोटक कमोडिटी की उपाध्यक्ष प्रेरणा देसाई के मुताबिक यूरोप और चीन से कमजोर मांग का असर देश में भी पड़ रहा है। रुई का वायदा अनुबंध भी अप्रैल तक ही है, जिस कारण निवेशक माल निकालने में जल्दबाजी दिखा रहे हैं और रुई में लोअर सर्किट लग रहा है।
उधर धागा मिल मालिकों का कहना है कि उनके गोदाम भरे पड़े हैं, इसलिए वे माल नहीं खरीद रहे, जबकि माल की आपूर्ति खूब हो रही है। मंडियों में सूत्रों ने बताया कि उत्तर भारत की प्रमुख मंडियों में रोजाना करीब 30,000 गांठ (1 गांठ में 170 किलोग्राम कपाास), गुजरात में 64,000 और महाराष्ट्र की मंडियों में 4,000 गांठ कपास की आवक हो रही है। धागा मिलों के लिए कपास खरीदने वाले विशाल ने बताया कि मिल मालिक पहले 6 महीने का माल गोदाम में रखते थे, लेकिन पिछली बार कीमतों के उतार चढ़ाव में पिटने के बाद अब वे 3 महीने का माल रखते हैं।
कृषि मंत्रालय के दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार इस बार 30.87 लाख गांठ कपास उत्पादन की संभावना है, जो पिछले वर्ष 330 लाख गांठ था। कपास सलाहकार बोर्ड के मुताबिक इस बार 345 लाख टन कपास होगा, जबकि देसी मांग 250-260 लाख गांठ ही होगी। (BS Hindi)

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