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20 जून 2012

एमएसपी की सिफारिश पर घिरा सीएसीपी

कृषि जिंसों के न्यूनतम समर्थन की सिफारिश करने वाली सरकारी एजेंसी मूल्य कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) अनाज, दलहन और तिलहन के एमएसपी में भारी भरकम बढ़ोतरी की सिफारिश पर आलोचनाएं झेल रहा है।
सरकार को सौंपी रिपोर्ट में आयोग ने कई फसलों की उत्पादन लागत में साल 2008-09 से हुई बढ़ोतरी की पृष्ठभूमि में एमएसपी में इजाफे को सही ठहराया है। आयोग ने कहा है कि जिस हिसाब से लागत बढ़ी है, उसके आधे की भी भरपाई एमएसपी के जरिए नहीं हुई है। उदाहरण के तौर पर धान का मामला देखें तो साल 2008-09 से अब तक इसकी उत्पादन लागत में 53 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन इस अवधि में धान के एमएसपी में महज 20 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है।
खाद्यान्न व र्ईंधन की बढ़ती कीमतों के चलते थोक मूल्य पर आधारित महंगाई मई में 7.55 फीसदी पर पहुंच गई जबकि अप्रैल में यह 7.23 फीसदी थी। पिछले हफ्ते कैबिनेट ने सीएसीपी की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए धान की सामान्य किस्म की एमएसपी 15.7 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 1250 रुपये प्रति क्विंटल करने का ऐलान किया था जबकि ए श्रेणी धान की एमएसपी 1280 रुपये प्रति क्विंटल घोषित की थी।
इसी तरह, सीएसपीसी ने अन्य खरीफ फसलों मसलन ज्वार, सोयाबीन, कपास, सूरजमुखी और उड़द की एमएसपी में की गई बढ़ोतरी की सिफारिश को जायज ठहराया। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है - 'साल 2008 के मुकाबले साल 2011 में मजदूरी की लागत करीब 74 फीसदी बढ़ी है, वहीं उर्वरक की कीमतों में जनवरी 2008 से जनवरी 2012 के बीच 30 फीसदी की उछाल आई है। साथ ही डीजल की कीमतें 44 फीसदी जबकि चारे की कीमत इस अवधि में 60 फीसदी बढ़ी है।' आयोग ने कहा है कि अगर सरकारी एजेंसियां उस समय किसानों से अनाज खरीदने में नाकाम रहती है जब बाजार कीमतें एमएसपी से नीचे चली जाती है तो एमएसपी की साख समाप्त हो जाएगी, जैसा कि पिछले साल पूर्वी भारत में हुआ था। इस बात पर भी भ्रम है कि केंद्रीय या राज्य की एजेंसियों की प्राथमिक भूमिका कृषि उत्पादों की खरीद में है या नहीं, ऐसे में केंद्र सरकार को अधिसूचना के जरिए उनकी भूमिका को स्पष्ट करना चाहिए। (BS Hindi)

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