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10 जुलाई 2012

खरीफ सीजन में भी जूट बोरी की किल्लत के आसार

बिजनेस भास्कर नई दिल्ली खरीफ सीजन में चावल की सरकारी खरीद में आ सकती है मुश्किल 18.31लाख गांठ जूट बोरियों की आवश्यकता होगी खरीफ विपणन सीजन में 15 लाख गांठ जूट बोरियों की सुलभता होगी जूट मिलों की क्षमता के अनुसार सलाहकार समिति का सुझाव नए पेराई सीजन में चीनी की 20 फीसदी पैकिंग ही जूट बोरों में होनी चाहिए। इससे चावल की सरकारी खरीद के लिए जूट बोरियों की कमी नहीं होगी। जूट बोरियों में पैकिंग पर चीनी मिलों को 40 पैसे प्रति किलो अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ता है। नए फसल वर्ष 2012-13 की खरीफ विपणन सीजन में भी जूट बैगों की कमी होने से सरकारी खरीद में बाधा आ सकती है। मौजूदा रबी विपणन सीजन में बोरियों की कमी होने की वजह से कई राज्यों में गेहूं की खरीद में बाधाएं आई हैं। जूट पर स्थाई सलाहकार समिति (एसएसी) की हाल ही में हुई बैठक में अगले खरीफ विपणन सीजन के दौरान 18.31 लाख गांठ (एक गांठ-500 बोरी) जूट के बोरों की आवश्यकता होने का अनुमान लगाया है जबकि इस दौरान उपलब्धता लगभग 15 लाख गांठ बोरों की होगी। इस कमी की भरपाई के लिए समिति ने चीनी मिलों को जूट बोरियों में पैकिंग की अनिवार्यता से आंशिक छूट देने का सुझाव दिया है। सूत्रों के अनुसार खाद्य मंत्रालय ने अगले खरीफ विपणन सीजन में विभिन्न खरीद एजेंसियों की मांग के आधार पर करीब 18.31 लाख जूट बोरों की आवश्यकता होने रहने का अनुमान लगाया है। जबकि उद्योग की उत्पादन क्षमता को देखते हुए अगस्त से अक्टूबर के दौरान 15 लाख गांठ जूट बोरों की कुल उपलब्धता रहेगी। ऐसे में करीब 3.5 लाख गांठ जूट बोरों की कमी का सामना करना पड़ सकता है। एसएसी ने सरकार को सुझाव दिया है कि विपणन सीजन 2012-13 में जूट बोरों की कमी को देखते हुए लगभग 3.5 लाख गांठ प्लास्टिक बोरों के उपयोग की अनुमति दी जाए। खरीद एजेंसियों द्वारा खरीद गए गेहूं और चावल तथा चीनी मिलों को चीनी की 100 फीसदी पैकिंग जूट बोरो में करना अनिवार्य है। रबी विपणन सीजन में भी कई राज्यों को जूट बोरों की कमी का सामना करना पड़ा था, जिसकी वजह से केंद्र सरकार ने प्लास्टिक बैगों के उपयोग की अनुमति दी थी। एसएसी के अनुसार 50 किलो के जूट के बोरे की कीमत करीब 35 रुपये आती है जबकि प्लास्टिक बैग की कीमत 15 रुपये प्रति बैग है। चीनी की पैकिंग जूट बोरों में करने पर 40 पैसे प्रति किलो का अतिरिक्त खर्च आता है। एसएसी ने सुझाव दिया है कि नए पेराई सीजन में चीनी की 20 फीसदी पैकिंग ही जूट बोरों में अनिवार्य की जाए तथा बाकी पैकिंग के लिए प्लास्टिक बोरों के उपयोग की अनुमति दी जाए। अगर ऐसा नहीं किया गया तो जूट बोरों की कमी के कारण खरीफ विपणन सीजन में खरीद गए खाद्यान्न को खुले में रखना पड़ सकता है। इंडियन जूट मिल एसोसिएशन (इज्मा) के अध्यक्ष मनीष पोद्दार ने भी माना कि अगस्त से अक्टूबर के दौरान करीब 15 लाख गांठ जूट बोरों की उपलब्धता रहेगी। उन्होंने बताया कि अगस्त महीने के बाद जूट की नई फसल की आवक शुरू हो जाएगी तथा जूट का उत्पादन पिछले साल के लगभग बराबर ही रहने का अनुमान है। कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2011-12 में जूट का उत्पादन 108.90 लाख गांठ (एक गांठ-180 किलो) होने का अनुमान है। (Business bhaskar.....R S Rana)

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