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04 अगस्त 2012

सूखे की आशंका से चढ़े जिंस वायदा के भाव

नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) पर आज ज्यादातर कृषि जिंसों में अपर सर्किट लगा। जिंसों के भाव में आई इस तेजी की प्रमुख वजह है भारतीय मौसम विभाग द्वारा सूखे के कारण उत्पादन में कमी आने की आशंका जताया जाना। एनसीडीईएक्स का धान्य सूचकांक 1.23 फीसदी तेजी के साथ 2855.07 पर बंद हुआ। अभी तक देश में मॉनसून की स्थिति उम्मीदों के अनुसार नहीं रही है। 1 अगस्त तक देश भर में 374.1 मिलीमीटर ही रही है, जो सामान्य 461.7 मिलीमीटर बारिश से 19 फीसदी कम है। आलम यह है कि कम बारिश होने की स्थिति से निपटने के लिए बनाए गए जलाशयों में भी पानी निम्नतम स्तर पर है, जो मॉनसून की भरपाई करने के लिए पर्याप्त नहीं है। इन सभी वजहों से इस साल खरीफ फसल के उत्पादन में गिरावट की आशंका है। मौसम विभाग पहले ही आधिकारिक घोषणा कर चुका है कि इस साल मॉनसून लंबी अवधि में सामान्य का 85 फीसदी ही रहेगा। कम औद्योगिक उत्पादन, उच्च स्तर पर बरकरार खाद्य महंगाई, वित्तीय दबाव, रुपये का अवमूल्यन और सख्त मौद्रिक नीति के कारण देश की आर्थिक स्थिति कुछ खास नहीं है और मॉनसून की कमी सरकार के लिए कोढ़ में खाज का काम कर सकती है। केयर रेटिंग्स के प्रमुख अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, 'सूखे का असर कई गुना होगा। खरीफ फसल का उत्पादन कम होगा। दलहन, तिलहन और मोटे अनाज की हालत काफी खस्ता दिख रही है। सरकार के पास भंडार में रखा हुआ चावल इस मोर्चे पर हमारे काम आएगा।' लेकिन अन्य जिंसों के दाम महंगाई बढऩे की आशंका के साथ ही बढ़ेंगे। खासतौर पर खाद्य तेल और दलहन के लिए आयात पर भारत की निर्भरता ने इन उत्पादों के अंतरराष्ट्रीय भाव पर भी दबाव बढ़ा दिया है। इस दौरान भारतीय रिजर्व बैंक पहले ही इस वित्त वर्ष के लिए देश की विकास दर के अनुमान को 7.3 फीसदी से घटाकर 6.5 फीसदी कर चुका है। उन्होंने कहा, 'अमेरिका में भी सूखे जैसे हालात बन रहे हैं और मक्के के साथ इसका असर सोयाबीन पर भी पड़ेगा। इससे इन फसलों का आयात महंगा हो जाएगा। हालांकि खरीफ फसल में होने वाली गिरावट की भरपाई रबी फसलों से पूरी की जा सकती है। लेकिन इससे कीमतों पर पडऩे वाले असर को कम नहीं किया जा सकता है और इस साल के लिए खाद्य महंगाई भी बढ़कर दहाई अंक में जा सकती है। कम उत्पादन से औद्योगिक उत्पादों की मांग पर असर पड़ेगा। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) भी इसके असर से नहीं बचेगा, जो रिजर्व बैंक के अनुमान के मुताबिक 6.5 फीसदी से भी कम रहेगा। खाद्य तेल और दलहन के आयात से व्यापार घाटे और रुपये पर दबाव बढ़ेगा, जिससे जिंसों के भाव में आ रही कमी का फायदा नहीं मिल पाएगा, खासतौर पर कच्चे तेल की।' कम बारिश के कारण क्रिसिल महंगाई के आंकड़े संशोधित करने पर विचार कर रही है। क्रिसिल के अर्थशास्त्री डी के जोशी ने बताया, '90 फीसदी से कम बारिश को सूखा ही समझा जाता है। बारिश सामान्य से 15 फीसदी कम है यानी इसका असर देश के आधे कृषि क्षेत्र पर दिखेगा। इसलिए हम अपने महंगाई के आंकड़े बढ़ाकर 7 फीसदी से ज्यादा करेंगे।' (BS Hindi)

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