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06 अगस्त 2012

खाद्य तेल व दालों का आयात भी नहीं होगा कारगर

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में सूखे से सरकार का खाद्यान्न प्रबंधन और बिगड़ सकता है। एक तो दाल व तिलहन की घरेलू पैदावार में कमी के आसार हैं, वहीं अंतरराष्ट्रीय बाजार में इन दालों व खाद्य तेलों की उपलब्धता को लेकर भी स्थिति साफ नहीं है। ऐसे में सरकार को इनके आयात के लिए ज्यादा कीमतें चुकानी पड़ेंगी। इससे खाद्य सब्सिडी के साथ महंगाई बढ़ने का खतरा है। घरेलू स्तर पर गेहूं व चावल का भारी स्टॉक है। लेकिन, दाल और तिलहन की कमी ने सरकार की चिंताएं बढ़ा दी हैं। आयात के भरोसे इनकी भरपाई करने का वह दम भले ही भर रही हो, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दालों व खाद्य तेलों की उपलब्धता कम होने से कीमतें अभी से तेज होने लगी हैं। पिछले एक महीने के भीतर खाद्य जिंसों के मूल्य में 10 फीसद से अधिक की तेजी आ गई है। अंतरराष्ट्रीय जिंस बाजार के कारोबारी संजीव गर्ग का कहना है कि दलहन व तिलहन उत्पादक देश भी सूखे से बुरी तरह हलकान हैं। सब जगह पैदावार में गिरावट की आशंका है। दूसरी ओर भारत दालों व खाद्य तेलों का एक बड़ा आयातक देश है। भारत से मांग की संभावना भर से अंतरराष्ट्रीय बाजार तेज होने लगते हैं। घरेलू पैदावार में गिरावट के आसार रकबा घटने की वजह से लगाए जाने लगे हैं। खरीफ सीजन में तिलहन व दलहन की खेती पर सूखे का जबरदस्त असर हुआ है। इससे पैदावार में जहां भारी गिरावट आएगी, वहीं उपभोक्ताओं को खाद्य उत्पादों की महंगाई से जूझना होगा। घरेलू जरूरतों के मद्देनजर भारत को हर साल 30 से 40 लाख टन तक दालों के आयात की जरूरत पड़ती है। इस बार सूखे की वजह से रकबा घटने और पैदावार कम होने से दालों का आयात और बढ़ सकता है। कृषि मंत्रालय के अनुमानों पर ही यकीन करें तो दलहन की पैदावार 1.3 करोड़ टन से भी कम होने वाली है। जबकि दालों की घरेलू खपत 1.8 करोड़ टन से अधिक होती है। मांग व आपूर्ति के इस अंतर को पाटने के लिए आयात ही एकमात्र विकल्प है। लेकिन, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दलहन की कमी आयात को बहुत महंगा बना सकती है। दूसरी ओर सरकार का अनुमान है कि इस बार 80 लाख टन से अधिक खाद्य तेल का आयात करना पड़ेगा। वजह यह है कि तिलहन का रकबा घट गया है और उत्पादन कम होना तय है। देश में खाद्य तेल की खपत तकरीबन 120 लाख टन है। सूखे के कारण विश्व बाजार में खाद्य तेलों के दाम भी बढ़ने लगे हैं। अमेरिका से सोयाबीन तेल आता है, लेकिन वहां सूखे से पैदावार कम हुई है। पाम ऑयल मलेशिया से आता है, लेकिन वहां भी कीमतें बढ़ रही हैं। (Dainik Jagran)

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