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27 अगस्त 2012

जूट बोरियों की कीमतें संशोधित करने का प्रस्ताव खारिज

जूट आयुक्त ने बोरियों की कीमतों में संशोधन की लंबे समय से चली आ रही उद्योग की मांग खारिज कर दी है। जूट बोरियों की कीमतें फिलहाल 55,979 रुपये प्रति टन है और इसका निर्धारण टैरिफ कमीशन के 2001 के फॉर्मूले पर हुआ है। जूट आयुक्त कार्यालय के मुताबिक जूट की बोरियों की मौजूदा कीमतें लाभकारी हैं और टैरिफ आयोग का साल 2011 का कीमत फॉर्मूला वैध है। मौजूदा व्यवस्था के तहत टैरिफ कमीशन से कीमत-फॉर्मूले में संशोधन का प्रस्ताव मिलने के बाद केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय इसकी सिफारिश आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी को कर सकता है। जूट आयुक्त कार्यालय के मुताबिक इस समय कीमतों में संशोधन की कोई दरकार नहीं है। इंडियन जूट मिल्स एसोसिएशन के चेयरमैन मनीष पोद्दार ने कहा - 'टैरिफ कमीशन नया अध्ययन करा रहा है। जब यह पूरा हो जाएगा, तब सिफारिशें केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय को सौंप दी जाएगी और मंत्रालय जूट की बोरियों की कीमतें संशोधित करने पर विचार करेगा। हालांकि वह दो बार पहले ही कीमतों में संशोधन का प्रस्ताव ठुकरा चुका है।' जूट उद्योग का कहना है कि कीमतों के पुराने फॉर्मूले के चलते उसे प्रति टन 4500-5000 रुपये का नुकसान हो रहा है। उद्योग यह मानने को तैयार नहीं है कि कम मानव दिवस (मैन डेज) के चलते वेतन व मजदूरी की लागत में आई कमी से उत्पादन लागत घटी है और बोरियों को कारोबार लाभकारी हो गया है। जूट आयुक्त कार्यालय के अनुमान के मुताबिक मजदूरी की लागत 1596 रुपये प्रति टन घटी है और जूट की बोरियों की मौजूदा कीमतें लाभकारी हैं। इस कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार एक टन जूट की बोरियों के उत्पादन में 38.32 मानव दिवस की दरकार होती है। कीमतों का आकलन जूट मैन्युफैक्चरर्स डेवलपमेंट काउंसिल के उत्पादकता मानकों पर आधारित है, जिसने अनुमान लगाया था कि एक टन जूट की बोरियों के उत्पादन में 42.9 मानव दिवस की दरकार होती है। इसके अतिरिक्त, 13 जूट मिलों के आंकड़ों से पता चलता है कि एक टन जूट बोरियों के उत्पादन में औसतन 40 लोग की दरकार होती है। उद्योग हालांकि टैरिफ कमीशन के 2001 के अप्रचलित कीमत फॉर्मूले पर टिका हुआ है। यहां यह बताना जरूरी है कि 9 फरवरी 2011 को केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय ने जूट आयुक्त कार्यालय को निर्देश दिया था कि वह 2001 के टैरिफ कमीशन रिपोर्ट के नियत कीमत अवयव का दोबारा आकलन करे और इसे महंगाई के साथ जोड़े। केंद्र सरकार ने टैरिफ कमीशन की साल 2009 में सौंपी गई संशोधित रिपोर्ट को दरकिनार कर दिया था क्योंकि तब उसने पाया था कि यह कथित तौर पर सही नहीं है। टैरिफ कमीशन के साल 2009 के कीमत फॉर्मूले को लागू नहीं करने पर उद्योग का एक वर्ग पहले ही सरकार के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटा चुका है। (BS Hindi)

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