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22 सितंबर 2012

अगले साल रिकॉर्ड स्तर पर होंगी खाद्य कीमतें

कृषि जिंसों की बढ़ती कीमतों के चलते खाद्य पदार्थों की कीमतें साल 2013 में रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचने की संभावना है। साल 2008 में खाद्य पदार्थ के तौर पर इस्तेमाल होने वाले अनाज की किल्लत हुई थी, लेकिन इस साल किल्लत से चारे वाली फसलें प्रभावित होंगी और इस तरह से पशुओं के प्रोटीन और डेयरी उद्योग पर इसके गंभीर असर हो सकते हैं। राबोबैंक के वैश्विक प्रमुख (कृषि जिंस बाजार विश्लेषक) ल्यूक शैंंडलर ने कहा कि गरीब उपभोक्ताओं पर इस साल कम असर होगा क्योंकि खरीदार पशुओं के प्रोटीन की बजाय खाद्य के तौर पर इस्तेमाल होने वाले अनाज मसलन गेहूं व चावल का रुख कर सकते हैं। ये जिंस फिलहाल साल 2008 के उच्चस्तर के मुकाबले करीब 30 फीसदी सस्ते हैं। पशुओं के प्रोटीन व डेयरी उद्योग में उत्पादन की लंबी प्रक्रिया के चलते अनाज की किल्लत का असर ज्यादा रहेगा और खाद्य पदार्थों की कीमतों पर असर डालेगा। हालांकि ऐसे देशों के बजट में खाद्य पदार्थों का अनुपात काफी कम है, ऐसे में साल 2008 के किल्लत के दौर में जिस तरह का असंतोष देखा गया था, वैसा इस वक्त नहीं होने के आसार हैं। राबोबैंक का अनुमान है कि खाद्य व कृषि संगठन का खाद्य कीमत सूचकांक जून 2013 के आखिर तक 15 फीसदी बढ़ेगा। राबोबैंक का अनुमान है कि खास तौर से अनाज व तिलहन की कीमतें उच्च स्तर पर रहेंगी, कम से कम 12 महीने तक। खाद्य पदार्थों की ऊंची कीमतें घटती विकास दर, तेल की कम कीमतें, उपभोक्ताओं के कमजोर विश्वास और डॉलर में नरमी से प्रभावित होंगी। हालांकि नीतियों में सरकारी हस्तक्षेप इस मुद्दे को गरमा सकता है। साल 2012-13 में निर्यात पाबंदी और स्टॉक के भंडारण की संभावना है क्योंकि बढ़ती कीमतों से घरेलू उपभोक्ताओं को बचाने के लिए सरकारें इस तरह का कदम उठा सकती हैं। सरकारी हस्तक्षेप से विश्व में जिंसों और खाद्य पदार्थों की कीमतें और ऊपर जा सकती हैं। स्थानीय तौर पर अनाज का भंडारण करना वैश्विक बाजार के लिए ठीक नहीं होगा। (BS Hindi)

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