कुल पेज दृश्य

11 अक्तूबर 2012

कपास की उत्पादकता के लिए तकनीक पर जोर

देश में कपास के रकबे में स्थिरता और उत्पादन की समस्या के समाधान के लिए कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री (सिटी) ने ज्यादा से ज्यादा तकनीक के इस्तेमाल की वकालत की है। सिटी के चेयरमैन एस वी अरुमुगम ने कहा, कपास रकबे में स्थिरता और उत्पादन की समस्या का समाधान तकनीक कर सकती है। देश में कपास का रकबा 110-120 लाख हेक्टेयर के बीच स्थिर है और इस साल कुल उत्पादन घटकर 334 लाख गांठ रह जाने की संभावना है जबकि पिछले साल 353 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था। उत्पादकता में सुधार की एकमात्र रास्ता है, जिससे उद्योग में कपास की जरूरत पूरी होना सुनिश्चित होगा। उन्होंने कहा कि देश में फाइबर के उपभोग में कपास की हिस्सेदारी 60 फीसदी है जबकि निर्यात के लिए होने वाले उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी 80 फीसदी से ज्यादा है। अरुमुगम ने कहा, देश के कपड़ा उद्योग में कपास की अहमियत को देखते हुए उत्पादकता में इजाफे की खातिर तकनीक का इस्तेमाल महत्वपूर्ण है। देश में कपास की उत्पादकता की व्याख्या करते हुए अरुमुगम ने कहा, 1980 के दशक में कुल उत्पादकता 200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी, जो 1990 के दशक में बढ़कर 300 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पर पहुंच गई। सरकार की कपास पर तकनीकी मिशन के तहत कृषि विस्तार और 21वीं सदी की शुरुआत में बीटी तकनीक के आगाज से कुल उत्पादकता करीब 500 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हासिल करने में मदद मिली। मौजूदा समय में देश में कपास का करीब 90 फीसदी रकबा बीटी बीज के दायरे में है और बीटी बीज ने उत्पादकता में सुधार और इसे बनाए रखने में काफी मदद की है। पिछले 10 सालों में हालांकि बीटी बीज ने उत्पादकता बढ़ाने में अहम भूमिका अदा की है, वहीं आने वाले सालों में उत्पादकता में बढ़ोतरी की खातिर अन्य कीटों व अन्य मुद्दों पर ध्यान दिए जाने की तत्काल जरूरत है। विश्व में कपास की उत्पादकता करीब 800 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है और भारत को कपास की उत्पादकता इस स्तर के आसपास लाने की कोशिश करने की दरकार है। नैशनल फाइबर पॉलिसी में परिकल्पना की गई है कि मौजूदा दशक के आखिर तक देश में 480 लाख गांठ कपास की जरूरत होगी जबकि मौजूदा उत्पादन करीब 340 लाख गांठ है। इसके अतिरिक्त कीटों से सुरक्षा, खरपतवार का प्रबंधन और सिंचाई ऐसे महत्वपूर्ण मसले हैं, जिन पर ध्यान देकर उत्पादन का यह स्तर हासिल किया जा सकता है। इसके लिए आवश्यक है कि उपलब्ध आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कपास बीज के विकास और पौधों के प्रबंधन में हो। (BS Hindi)

कोई टिप्पणी नहीं: