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05 नवंबर 2012

गेहूं व चावल पर समान टैक्स के लिए कवायद

समय की मांग इस समय टैक्सों में अंतर होने से प्राइवेट खरीद नगण्य सरकार को ज्यादा गेहूं व चावल खरीदना पड़ता है इससे भंडारण की समस्या हर साल होती है बल्क उपभोक्ता ओएमएसएस के तहत खरीद के लिए करते हैं इंतजार केंद्र सरकार ने राज्यों से गेहूं व चावल खरीद पर एक समान टैक्स लागू करने के बारे में सलाह मांगी है। एक अधिकारी ने बताया कि राज्यों के टैक्सों में विविधता के चलते बाजार में मूल्य प्रभावित होता है और इससे दिक्कतें आती हैं। खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हमने राज्यों को गेहूं व चावल की खरीद पर एक समान टैक्स लगाने के बारे में राज्यों से उनकी राय मांगी है। गेहूं व चावल का उत्पादन करने वाले कुछ राज्यों में ज्यादा टैक्स लगने की वजह से प्राइवेट व्यापारी खरीद करने से निरुत्साहित होते हैं। इस वजह से राज्य व केंद्र सरकार की एजेंसियों को ज्यादा खरीद करनी पड़ती है। अधिकारी के अनुसार टैक्सों पर विचार करने की जरूरत है। अगर राज्यों के टैक्सों में समानता हो तो प्राइवेट व्यापारी सरकार की खुला बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत गेहूं खरीद के लिए इंतजार नहीं करेंगे। वे खुले बाजार से सीजन के दौरान सीधे खरीद करने में दिलचस्पी लेंगे। इस समय बल्क उपभोक्ता जैसे बिस्कुट निर्माता और फ्लोर मिलें ओएमएसएस के तहत सस्ती दरों पर गेहूं खरीद के लिए इंतजार करती हैं। इस समय विभिन्न राज्यों में गेहूं व चावल खरीद पर टैक्स अलग-अलग है। राज्यों के खरीद शुल्क, बिक्री कर, मंडी शुल्क और आढ़तियों के कमीशन में खासा अंतर है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक गेहूं पर टैक्स व कमीशन का सबसे ज्यादा भार पंजाब में करीब 14.5 फीसदी है जबकि मध्य प्रदेश में 9.2 फीसदी और उत्तर प्रदेश में 8.5 फीसदी टैक्स लगता है। इसी तरह पंजाब में चावल पर भी 14.5 फीसदी टैक्स लगता है। आंध्र प्रदेश में 12.5 फीसदी, हरियाणा में 11.5 फीसदी और मध्य प्रदेश में 4.7 फीसदी टैक्स लगता है। अधिकारी ने कहा कि टैक्सों में असमानता होने के कारण सरकार को ज्यादा खरीद करनी पड़ती है। इससे पहले तो भंडारण की समस्या आती है और इसके अलावा खाद्य सब्सिडी का बोढ़ भी बढ़ जाता है। अगर कोई राज्य बोनस की घोषणा करते हैं तो इससे बाजार पर और ज्यादा प्रभाव पड़ता है। अगर कोई राज्य सरकार बोनस देती है तो प्राइवेट व्यापारियों को भी ऊंची कीमत देनी पड़ती है। इससे उनकी खरीद लागत बढ़ जाती है और उनकी खरीद में दिलचस्पी भी घट जाती है। प्राइवेट व्यापारियों की खरीद में भागीदारी न होने से भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) और राज्य सरकार की एजेंसियों को वर्ष 2012-13 के गेहूं खरीद सीजन में 36 फीसदी ज्यादा यानि 381 लाख टन खरीद करनी पड़ी। इसी तरह चावल की खरीद 14.6 फीसदी बढ़कर 400 लाख टन हो गई। (Business Bhaskar)

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