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29 नवंबर 2012

जूट के एमएसपी में भारी बढ़ोतरी की उम्मीद नहीं

फसल विपणन सीजन (अप्रैल-मार्च) 2012-13 में कच्चे जूट के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में 30 फीसदी से ज्यादा की बढोतरी के बाद अगले सीजन में ऐसी बढो़तरी की संभावना नहीं है। केंद्रीय कृषि विभाग के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक पिछले कुछ वर्षों के दौरान कच्चे जूट का एमएसपी उत्पादन लागत से कम रहा है, जिसे 2012-13 में सही स्तर पर लाया गया। लेकिन इस साल भी इतनी बढ़ोतरी की उम्मीद करना ठीक नहीं है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'जूट के एमएसपी में ज्यादा से ज्यादा पिछले साल की तुलना में 2-5 फीसदी बढ़ोतरी की जा सकती है। इसके अलावा किसानों को उनकी उपज के लिए पर्याप्त क्षतिपूर्ति दी जाती है। जरूरी है कि सरकार उनको बाजार मुहैया कराए।Ó आमतौर पर जूट की बुआई मार्च से मई में होती है और कटाई अगस्त-सितंबर के आसपास। फिलहाल कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) जूट क्षेत्र के कीमत ढांचे पर विचार कर रहा है। सीएसीपी कृषि जिंसों की कीमत तय करने वाली नोडल एजेंसी है। हालांकि एमएसपी कितना बढ़ेगा, इसका अंतिम फैसला कैबिनेट करती है। फसल विपणन सीजन 2012-13 में एक्स-असम ग्रेड के कच्चे जूट टीडी-5 की कीमत में 34 फीसदी की भारी बढ़ोतरी की गई थी। इसकी कीमत 1,675 रुपये से बढ़ाकर 2,250 रुपये प्रति गांठ की गई थी, जो एक दशक में सबसे ज्यादा बढो़तरी थी। जूट की एक गांठ 180 किलोग्राम की होती है। अधिकारी ने कहा, 'पिछले साल कपास की तरह जूट की स्थिति कुछ अलग थी। कीमतों में भारी गिरावट की वजह से जूट किसान संकट में थे। मगर इस साल वैसी स्थिति नहीं है, इसलिए कीमतों में भारी बढ़ोतरी की उम्मीद न के बराबर है।Ó उन्होंने कहा कि उस समय उत्पादन लागत करीब 37 फीसदी बढ़ गई थी, इसलिए बढ़ोतरी जरूरी हो गई थी। कच्चे जूट की कीमतों में भारी बढ़ोतरी न करने का फैसला इसलिए अहम है कि सरकार पैकेजिंग में जूट के इस्तेमाल के प्रावधानों में संशोधन नहीं कर रही है। (BS Hindi)

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