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02 जनवरी 2013

मध्य प्रदेश में चलने लगे यूपी के कोल्हू

पिछले पांच साल के दौरान गन्ने की भरपूर फसल वाले उत्तर प्रदेश के करीब 50 फीसदी कोल्हू ने मध्य प्रदेश की राह पकड़ ली है। भारतीय चीनी मिल संगठन (इस्मा) के अनुसार उत्तर प्रदेश में मौजूद कोल्हुओं की संख्या घटकर 22,000 ही रह गई है, जो पांच साल पहले के आंकड़े का 50 फीसदी है। राज्य में चलने वाली खांडसारी इकाइयों में भी ऐसी ही कमी आई है। अक्टूबर से शुरू हुए पेराई सत्र में परिचालन कर रही खांडसारी इकाइयों की संख्या घटकर महज 43 रह गई है। इसकी वजह बेहद स्पष्टï है। उत्तर प्रदेश में हर साल गन्ने का मूल्य बढऩे से चीनी उत्पादन बेहद मुनाफे का सौदा नहीं रह जाता है। राज्य की सत्ता में आने वाला प्रत्येक दल गन्ना किसानों का वोट हासिल करने की खातिर गन्ने के दाम में हर साल इजाफा करता है, जिससे यहां स्थित कोल्हुओं को गुड़ उत्पादन में घाटा उठाना पड़ता है। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से दिया जा रहा राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) केंद्र द्वारा घोषित उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) से काफी ज्यादा है। राज्य में एसएपी पहले ही एफआरपी से दोगुना है इसके बावजूद किसान गन्ने का मूल्य और बढ़ाने की मांग करते हैं, जिससे यहां कच्चा माल काफी महंगा हो जाता है। मध्य प्रदेश में एसएपी तय नहीं किया जाता है। यहां के गन्ना किसानों को एफआरपी के आधार पर ही भुगतान किया जाता है। इसलिए मध्य प्रदेश में कोल्हू चलाना ज्यादा किफायती होता है। कोल्हुओं के यहां आने की एक और वजह है कि उन्हें चीनी मिलों के साथ कच्चे माल की खरीद के लिए प्रतिस्पर्धा नहीं करनी पड़ती है। इस साल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रत्येक चीनी मिल क्षेत्र में करीब 3000 कोल्हू थे। जबकि मध्य उत्तर प्रदेश के लिए यह आंकड़ा प्रति चीनी मिल 130 कोल्हू और पूर्वी उत्तर प्रदेश में 115 कोल्हू का है। आमतौर पर चीनी मिलों में पेराई शुरू होने से पहले करीब 200 दिन तक कोल्हू परिचालन करते हैं। खांडसारी इकाइयों ने भी राज्य से पलायन शुरू कर दिया है, जिसका नतीजा है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में महज 11, मध्य उत्तर प्रदेश में 27 और पूर्वी उत्तर प्रदेश में 5 खांडसारी इकाइयां ही बची हैं। मध्य प्रदेश में बेहतर गन्ना मिलता है, जिससे ज्यादा गुड़ बनता है। इस्मा के महासचिव अविनाश वर्मा कहते हैं, 'मध्य प्रदेश में फिलहाल कोई बड़ी चीनी मिल मौजूद नहीं है जबकि उत्तर प्रदेश में चीनी मिलों की भरमार है। इसलिए कोल्हुओं को यहां आसानी से गन्ने की आपूर्ति हो जाती है।' कोल्हुओं की औसत रिकवरी 8.3 फीसदी होती है। अनुमान है कि चालू पेराई सत्र में यहां 4.3 करोड़ टन गन्ने की पेराई होगी, जिससे 37 लाख टन गुड़ बनेगा। मध्य प्रदेश में गुड़ का उत्पादन दिनोदिन बढ़ता जा रहा है। हापुड़ के गुड़ कारोबारी विजेंद्र कुमार बसंल का अनुमान है कि इस साल गुड़ का उत्पादन पिछले साल के 1 करोड़ टन से ज्यादा रहेगा। इसकी वजह उत्तर प्रदेश में पेराई सत्र का देर से शुरू होना है। पिछले साल गुड़ उत्पादन में 10-15 फीसदी की कमी आई थी क्योंकि उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ना आपूर्ति में चीनी मिलों को तरजीह देने की ताकीद की थी। व्यावहारिकता को देखते हुए चीनी मिलें 7-7.5 फीसदी से कम रिकवरी वाले गन्ने की पेराई नहीं करती हैं। (BS Hindi)

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