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02 जनवरी 2013

घटती मांग से जूट उद्योग परेशान

साल 2012-13 में कच्चे जूट का उत्पादन करीब 92 लाख गांठ रहने का अनुमान है, जो पिछले साल के 99 लाख गांठ के मुकाबले काफी कम है। हालांकि कम उïत्पादन के बावजूद कीमतों में सुस्ती बने रहने के आसार हैं क्योंकि कैरीओवर स्टॉक की भरमार है और मांग भी कम है। इंडियन जूट मिल्स एसोसिएशन के चेयरमैन मनीष पोद्दार ने कहा, मौजूदा समय में मिलों के पास करीब 40 लाख गांठ जूट का कैरीओवर स्टॉक है जबकि इस साल 92 लाख गांठ जूट के उत्पादन का अनुमान है और पूरे साल जूट की मांग को पूरा करने के लिए इतनी मात्रा पर्याप्त होगी। मौजूदा समय में कच्चे जूट की कीमतें (टीडी-5 किस्म) 2500 रुपये प्रति क्विंटल है, जो नवंबर 2012 के आखिर में 2300 रुपये प्रति क्विंटल था। मिल मालिकों का कहना है कि चीनी मिलों की तरफ से घटती मांग के चलते कीमतें कमोबेश स्थिर हैं। स्पष्ट तौर पर पिछले साल सरकार ने पहली बार जूट पैकेजिंग मैटीरियल एक्ट (जेपीएमए) 1987 के तहत अनिवार्य पैकेजिंग के नियमों में ढील देते हुए इसे 60 फीसदी कर दिया है। इस अधिनियम में चीनी की पैकिंग के लिए सिर्फ जूट की बोरियों के इस्तेमाल को अनिवार्य रखा गया है। हालांकि जूट मिलें अक्सर चीनी मिलों की मांग को समय पर पूरा करने में नाकाम हो जाती हैं। ऐसे में प्लास्टिक उद्योग में पैकिंग के सस्ते विकल्प की उपलब्धता के चलते चीनी मिलों के हक में पैकिंग के नियमों में ढील दी गई है। पोद्दार ने कहा, हमें चीनी मिलों की तरफ से कोई ऑर्डर नहीं मिल रहा है। निर्यात की हिस्सेदारी बढ़ाने और अनाज की पैकिंग के लिए जूट की बोरियों की आपूर्ति में बढ़ोतरी के जरिए होने वाले नुकसान की भरपाई की कोशिशें जारी हैं। सरकार ने कच्चे जूट की टीडी-5 किस्म का न्यूनतम समर्थन मूल्य साल 2012-13 के सीजन के लिए बढ़ाकर 2200 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है जबकि पहले यह 1675 रुपये प्रति क्विंटल था। इस तरह से एमएसपी में करीब 31.34 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है। त्रिपक्षीय समझौता एक ओर जहां मिलें मांग पैदा करने के लिए संघर्ष कर रही हैं, वहीं पश्चिम बंगाल सरकार, मिल मालिकों और कामगारों के बीच हुए त्रिपक्षीय समझौते की समाप्ति फरवरी 2013 में हो जाने से उद्योग में एक और गतिरोध का खतरा मंडरा रहा है। सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) के सूत्रों ने कहा, करीब 20 मिलों के कामगार संघ के प्रतिनिधियों ने हाल में कोलकाता में बैठक ही है और अपनी नई मांग पर विचार-विमर्श किया है। अगली बैठक जनवरी में होने वाली है और इसमें कामगारों की नई मांग की जानकारी मिलने की संभावना है। दूसरी चीजों के अलावा कामगार कम से कम 10,000 रुपये प्रति माह की मजदूरी और जेपीएमए अधिनियम को फिर से लागू करने की मांग कर सकते हैं। दिसंबर 2009 में पश्चिम बंगाल के 52 जूट मिल के कामगार अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए थे। इन्होंने अनुचित व्यवहार को समाप्त करने, वैधानिक बकाये और भत्ते व अन्य बकाये का भुगतान, अनुबंध वाले कामगारों को नियमित करना और वास्तविक मजदूरी पर प्रॉविडेंट फंड के लिए रकम काटने और ईएसआई के योगदान का आकलन करने की मांग की थी। इसके परिणामस्वरूप 14 फरवरी 2010 को एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ था ताकि गतिरोध समाप्त किया जा सके। (BS Hindi)

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