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07 जनवरी 2013

केंद्र को भी मात देगा छत्तीसगढ़

दिसंबर 2007 में राज्य की राजधानी रायपुर से 100 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद एक शांत गांव सोनाखान में गुनगुनी सी धूप वाली सर्दियों में लोग आंखे बिछाए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह का इंतजार कर रहे थे। इस जगह का नाम इतिहास में भुखमरी, कुपोषण और गरीबी के लिए मशहूर रहा है। सिंह का भाषण बेहद साधारण सा था लेकिन उनका संदेश स्पष्ट था। सिंह का दावा था कि अब छत्तीसगढ़ का कोई भी व्यक्ति भूख से नहीं मरेगा। खनिज संसाधनों से प्रचुर इस राज्य में किसी ने यह कल्पना नहीं की थी कि आयुर्वेद के डॉक्टर से राजनीति में उतरने वाले सिंह एक ऐसी बड़ी योजना पर काम कर रहे हैं जिसकी वजह से यह राज्य पांच सालों में देश में एक मॉडल राज्य के तौर पर उभरेगा। फरवरी 2008 में राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री खाद्य सुरक्षा योजना सोनाखान के जमींदार परिवार के एक सदस्य नारायण सिंह के नाम समर्पित की जिन्होंने 1856 के दौरान इस इलाके में अकाल पडऩे पर अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था। जब 1857 के विद्रोह की आंच छत्तीसगढ़ पहुंची तो यहां की आम जनता ने जेल में बंद नारायण सिंह को अपना नेता मान लिया और उन्हें जेल से छुड़ाया। स्थानीय लोगों को जुटा कर नारायण सिंह ने ब्रिटिश सेना पर सोनाखान के पास ही हमला कर दिया। ब्रिटिश सरकार के अत्याचार और बाद में तबाही मचाने जैसी स्थिति पैदा करने पर नारायण सिंह ने ब्रिटिश सरकार के सामने आत्मसमर्पण कर दिया ताकि लोगों की जिंदगी की रक्षा की जाए। उन्हें 10 दिसंबर 1857 को सार्वजनिक तौर पर फांसी दी गई। सिंह ने कहा, 'राज्य में खाद्य सुरक्षा योजना शहीद वीर नारायण सिंह से प्रेरित है।' इस योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने वाले लोगों (बीपीएल)को तीन रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से 35 किलोग्राम चावल दिया गया। इस योजना में 35 लाख लोगों को शामिल किया गया। यह योजना काफी सफल रही और इसी वजह से दिसंबर 2008 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर सत्ता में वापस लौटी। सिंह ने अब इस योजना को ज्यादा प्रभावी बनाने के तरीकों के बारे में सोचना शुरू कर दिया। वर्ष 2009 में राज्य सरकार ने यह घोषणा की कि अंत्योदय (गरीबों में भी सबसे गरीब) परिवारों को 1 रुपये प्रति किलोग्राम के आधार पर चावल मुहैया कराया जाएगा जबकि बीपीएल परिवारों के लिए कीमतें 3 रुपये से कम करके 2 रुपये प्रति किलोग्राम कर दी गईं। === राज्य के ज्यादातर लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए रमन सिंह सरकार ने छत्तीसगढ़ खाद्य सुरक्षा कानून (सीएफएसए) 2012 पेश किया। इस मामले में राज्य सरकार केंद्र सरकार से आगे रही जो कुछ इसी तरह का कानून लाने की योजना बना रही थी। रमन सिंह ने कहा, 'हम यह संदेश देना चाहते थे कि हम दूसरों के मुकाबले आगे हैं। दूसरे लोग जो कल्पना करते हैं, उनकी सरकार उस पर अमल करती है।' राज्य विधानसभा ने 21 दिसंबर को सीएफएसए को पारित कर दिया ताकि राज्य के लोगों की पौष्टिकता की जरूरतों को पूरा करने के लिए किफायती कीमत पर पर्याप्त मात्रा में अनाज मिले और वे एक सम्मानपूर्ण जिंदगी व्यतीत कर सकें। राज्य के इस कानून को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक का बेहतरीन संस्करण माना जा रहा है जो करीब एक साल से भी ज्यादा वक्त से संसद में लटका हुआ है। इस कानून के मुताबिक छत्तीसगढ़ की करीब 90 फीसदी आबादी को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत अनाज पाने की पात्रता होगी जिनमें से ज्यादातर लोग प्राथमिक और अंत्योदय श्रेणी के तहत नाममात्र की कीमत पर 35 किलोग्राम अनाज हासिल कर पाएंगे। इसके अलावा उन्हें पांच रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से दो किलोग्राम दाल (चना) और मुफ्त आयोडीन युक्त नमक भी दिया जाएगा। यह कानून छह साल से कम उम्र के बच्चों, स्कूली बच्चों, गर्भवती और दूध पिलाने वाली महिलाओं, गरीबों और कमजोर तबके के लिए आंगनबाड़ी, स्कूलों और दूसरे संस्थानों के जरिये मुफ्त पौष्टिक आहार या राशन की गारंटी सुनिश्चित करता है। खाद्य सचिव विकासशील का कहना है, 'सार्वजनिक वितरण प्रणाली, आंगनबाड़ी, नागरिक और पंचायत संस्थाओं के जरिये खाद्य सुरक्षा योजना पर अमल किया जाएगा।' उनका कहना है कि शहरों और ब्लॉक मुख्यालयों के जरिये दाल-भात केंद्र (जहां दाल, चावल और सब्जी का रस 5 रुपये में मिलता है) सेवारत होंगे और फिलहाल 127 केंद्र पहले से ही कार्यरत हैं और यह तादाद बढ़कर 200 हो जाएगी। सरकार यह चाहती है कि पंचायतों के पास हर वक्त करीब एक क्विंटल अनाज का स्टॉक रहे ताकि जरूरत पडऩे पर मुफ्त अनाज तुरंत मुहैया कराया जा सके। गर्भवती और दूध पिलाने वाली महिलाएं, गर्भावस्था और बच्चे के जन्म के छह महीने बाद भी आंगनबाड़ी के जरिये अपने घर राशन ले जा सकती हैं। स्कूली बच्चों को भी मिड-डे मिल के जरिये स्कूल से भोजन मिलेगा। हॉस्टल और आश्रमों में रहने वाले लोगों को भी सब्सिडी वाला अनाज मिलेगा जबकि गरीब तबके से ताल्लुक रखने वाले और बेघर लोगों को दाल-भात कें द्र के जरिये मुफ्त खाना मिलेगा। ऐसे लोग पंचायतों के जरिये अपने घर राशन ले जा सकते हैं। भुखमरी से जूझ रहे घरों को भी दाल-भात कें द्र के जरिये छह महीने की अवधि तक मुफ्त भोजन मिलेगा और वे राशन की दुकान से भी अनाज घर ले जा सकते हैं। इस कानून के तहत ये सभी परिवार हैं न कि कोई ïएक व्यक्ति और राशन कार्ड के लिए परिवार की सबसे बुजुर्ग महिला को घर का मुखिया माना जाता है। अगर किसी परिवार में कोई वयस्क महिला नहीं है तो सबसे बुजुर्ग पुरुष को घर का मुखिया माना जाएगा। इस कानून के तहत इन सेवाओं को छत्तीसगढ़ लोक सेवा गारंटी कानून 2011 के तहत अधिसूचित किया गया है और इसमें समय पर सेवाएं देने तथा अधिकारियों की गलतियों पर दंडशुल्क देने का प्रावधान भी है। अनाज भी राशन की दुकान पर उपलब्ध होगा और लोगों के दरवाजे तक भी इसे पहुंचाने का प्रावधान किया जाएगा। इसके अलावा कंप्यूटर पर भी इसका रिकॉर्ड उपलब्ध होगा। इस कानून के तहत निजी डीलरों को राशन की दुकान चलाने पर मनाही है जिसके जरिये भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। सार्वजनिक संस्थाओं, पंचायत, स्वयं सहायता समूह और सहकारी संस्थाओं को पहले तरजीह दी जाएगी। पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए भी प्रावधान किए गए हैं मसलन सतर्कता समिति, सोशल ऑडिट और सार्वजनिक तौर पर सभी दस्तावेज पेश करना भी इस कानून में शामिल है। प्राथमिक और अंत्योदय श्रेणियों के तहत शामिल की गईं विभिन्न श्रेणियों में आने वाले लोगों की तादाद की कोई सीमा नहीं होगी। === राज्य सरकार को छह महीने के भीतर इस योजना को अधिसूचित करना है जिससे कानून में परिभाषित नई पात्रता प्रभावी होगी। मुख्यमंत्री खाद्य सुरक्षा योजना में शामिल लाभार्थियों की तादाद पहले 36.5 लाख थी। अधिकारियों को ऐसा लगता है कि सब्सिडी वाली कीमत पर चावल पाने के प्रावधान की वजह से सीएफएसए में लाभार्थियों की तादाद बढ़कर 42.1 लाख हो जाएगी। सरकार को कानून के इस प्रावधान को प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए करीब 21 लाख टन आनाज की जरूरत होगी। विकासशील का कहना है, 'केंद्र के पास राज्य के लिए 11.6 लाख टन अनाज उपलब्ध है जबकि राज्य 914,000 टन चावल खरीदेगा।' खाद्य सुरक्षा कानून के इस प्रावधान को अमलीजामा पहनाने के लिए राज्य के खजाने पर अतिरिक्त 1,900 करोड़ रुपये का बोझ बढ़ेगा। छत्तीसगढ़ सरकार के लिए सबसे बड़े फायदे की बात यह है कि राज्य में खाद्यान्न के भंडार के लिए बुनियादी ढांचा मौजूद है। भाजपा के एक प्रवक्ता रसिक परमार का कहना है, 'राज्य में सार्वजनिक वितरण प्रणाली व्यवस्था एक मॉडल के तौर पर है जो यह सुनिश्चित करता है कि भ्रष्टाचार न हो और स्मार्ट कार्ड का इस्तेमाल कर राशन की सहूलियत भरी खरीद की जा सके।' केंद्र सरकार या कोई और दूसरा राज्य खाद्य सुरक्षा कानून लागू करता है तो इसे प्रभावी तरीके से लागू करना भी एक दुरूह काम होगा। उनका कहना है, 'उनके पास छत्तीसगढ़ की तरह कोई पर्याप्त वितरण व्यवस्था नहीं है। ऐसे में इस तरह की योजना पर अमल करना दूसरे राज्यों के लिए इतना आसान काम भी नहीं है।' कंप्यूटरीकरण से छत्तीसगढ़ में सार्वजनिक वितरण प्रणाली सही पटरी पर चल रही है। स्मार्ट कार्ड के जरिये लाभार्थी किसी भी आउटलेट से राशन खरीद सकते है ऐसे में किसी विशेष दुकान का एकाधिकार खत्म हो जाएगा। दुकानदारों को भी स्टॉक की पर्याप्त मात्रा रखनी ही होगी ताकि वे ग्राहकों के साथ कोई भ्रष्टाचार न कर सकें। छत्तीसगढ़ की सरकार ने खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा कदम उठाया है लेकिन उसे लाभार्थियों के लिए आवंटित अनाज की मात्रा और गुणवत्ता के लिए सतर्क रहना होगा। रायपुर के नए कपड़ा बाजार में काम करने वाले कालिया और उनके परिवार को खाद्य सुरक्षा मुहैया कराने के लिए पहले की योजना प्रभावी नहीं रही। उनका कहना है, 'मेरे परिवार में 10 सदस्य हैं और 35 किलोग्राम का अनाज हमारे लिए पर्याप्त नहीं है।' परिवार के लोगों के लिए खाने का इंतजाम करने के लिए उन्हें कम से कम 10 किलोग्राम अनाज बाजार से खरीदना पड़ता है। पांडरी कपड़ा बाजार के एक रिक्शा चालक पुन्नु बाबा की अलग दास्तां है। उनका कहना है, 'दिन भर कड़ी मेहनत करने के बाद मैं घर कुछ अच्छा खाने के लिए आता हूं लेकिन मैं बड़ी मुश्किल से आधी प्लेट चावल ही खा पाता हूं।' राशन की दुकान के मिलने वाले चावल की गुणवत्ता ठीक नहीं है। (BS Hindi)

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